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  • यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 6
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - भुरिगतिजगती स्वरः - निषादः
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    इन्द्र॒स्यौज॑ स्थ म॒खस्य॑ वो॒ऽद्य शिरो॑ राध्यासं देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः।म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे।म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑स्य। ओजः॑। स्थ॒। म॒खस्य॑। वः॒। अ॒द्य। शिरः॑। रा॒ध्या॒स॒म्। दे॒व॒यज॑न॒ इति॑ देव॒ऽयज॑ने। पृ॒थि॒व्याः ॥ म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रस्यौज स्थ मखस्य वोद्य शिरो राध्यासन्देवयजने पृथिव्याः । मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रस्य। ओजः। स्थ। मखस्य। वः। अद्य। शिरः। राध्यासम्। देवयजन इति देवऽयजने। पृथिव्याः॥ मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा। शीर्ष्णे। मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा। शीर्ष्णे। मखाय। त्वा। मखस्य। त्वा। शीर्ष्णे॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 37; मन्त्र » 6
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন আমি (ইন্দ্রস্য) পরমৈশ্বর্য্যযুক্ত পুরুষের (ওজঃ) পরাক্রমকে (রাধ্যাসম্) সিদ্ধ করি তদ্রূপ (অদ্য) আজ (পৃথিব্যাঃ) ভূমির (দেবযজনে) সেই স্থানে যেখানে বিদ্বান্দিগের পূজা হয় (শিরঃ) উত্তম অবয়বের সমান (বঃ) তোমাদিগকে সিদ্ধ করি । (শীষে্র্×) শির সম্পর্কীয় (মখায়) ধর্মাত্মাদিগের সৎব্যবহারের নিমিত্ত বচন হেতু (ত্বা) তোমাকে (মখায়) প্রিয় আচরণরূপ ব্যবহার সম্পর্কীয় (ত্বা) তোমাকে সিদ্ধ করি । (শীষে্র্×) উত্তম গুণের প্রচারক (মখায়) শিল্পযজ্ঞের বিধান হেতু (ত্বা) তোমাকে (মখস্য) সত্যাচরণ রূপ ব্যবহার সম্পর্কীয় (ত্বা) তোমাকে সিদ্ধ করি (শীষে্র্×) উত্তম (মখায়) বিজ্ঞানের উদ্ভাবন হেতু (ত্বা) তোমাকে এবং (মখস্য) বিদ্যাকে বৃদ্ধি করিবার ব্যবহার সম্পর্কীয় (ত্বা) তোমাকে সিদ্ধ করি, সেইরূপ তোমরাও পরাক্রমী (স্থ) হও ॥ ৬ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে সব মনুষ্য ধর্মযুক্ত কার্য্য করে তাহারা সকলের শিরোমণি হয় ॥ ৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ইন্দ্র॒স্যৌজ॑ স্থ ম॒খস্য॑ বো॒ऽদ্য শিরো॑ রাধ্যাসং দেব॒য়জ॑নে পৃথি॒ব্যাঃ ।
    ম॒খায়॑ ত্বা ম॒খস্য॑ ত্বা শী॒র্ষ্ণে । ম॒খায়॑ ত্বা ম॒খস্য॑ ত্বা শী॒র্ষ্ণে ।
    ম॒খায়॑ ত্বা ম॒খস্য॑ ত্বা শী॒র্ষ্ণে ॥ ৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ইন্দ্রস্যেত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । য়জ্ঞো দেবতা । ভুরিগতিজগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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