अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 9/ मन्त्र 18
सूक्त - अथर्वा
देवता - शतौदना (गौः)
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शतौदनागौ सूक्त
यत्ते॑ म॒ज्जा यदस्थि॒ यन्मां॒सं यच्च॒ लोहि॑तम्। आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । म॒ज्जा । यत् । अस्थि॑ । यत् । मां॒सम् । यत् । च॒ । लोहि॑तम् । अ॒मिक्षा॑म् । दु॒ह्र॒ता॒म् । दा॒त्रे । क्षी॒रम् । स॒र्पि:। अथो॒ इति॑ । मधु॑ ॥९.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते मज्जा यदस्थि यन्मांसं यच्च लोहितम्। आमिक्षां दुह्रतां दात्रे क्षीरं सर्पिरथो मधु ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । मज्जा । यत् । अस्थि । यत् । मांसम् । यत् । च । लोहितम् । अमिक्षाम् । दुह्रताम् । दात्रे । क्षीरम् । सर्पि:। अथो इति । मधु ॥९.१८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 9; मन्त्र » 18
विषय - वेदज्ञान व सात्विक अन्न
पदार्थ -
१. (यत् ते मज्जा) = जो तेरी मज्जा [अस्थि की मींग] है, (यत् अस्थि) = जो हडी है, (यत् मांसम्) = जो मांस है (यत् च लोहितम्) = और जो रुधिर है। (यौ ते बाहू) = जो तेरी भुजाएँ हैं, (ये दोषणी) = जो भुजा के उपरले भाग हैं, (यौ अंसौ) = जो कन्धे है, (या च ते ककुत्) = और जो तेरा कुहान है। (या: ते ग्रीवा:) = जो तेरी गर्दन की हड्डियाँ हैं, (ये स्कन्धा:) = जो तेरे कन्धों की हड्डियाँ हैं, (याः पृष्टी:) = जो पीठ की हड्डियाँ हैं, (याः च पशर्व:) = और जो पसलियाँ हैं। (यौ ते उरू) = जो तेरी जाँचे हैं, (अष्ठीवन्तौ) = जो घुटने हैं, (ये श्रोणी) = जो कूल्हे हैं, (या च ते भसत) = जो तेरा पेड़ है, (यत् ते पुच्छम्) = जो तेरी पूँछ है, (ये ते बाला:) = जो तेरे बाल हैं, (यत् ऊध:) = जो तेरा दुग्धाशय है, (ये च ते स्तना:) = और जो तेरे स्तन हैं। (याः ते जंघा:) = जो तेरी जाँचे है, (याः कुष्ठिका:) = जो कुष्टिकाएँ हैं-खुट्टियाँ हैं [The mouth or openings], छिद्र हैं, (ऋच्छरा:) = खुट्टों के ऊपर के भाग [कलाइयाँ] है, (ये च ते शफा:) = और जो तेरे खुर हैं। हे (शतौदने) = शतवर्षपर्यन्त हमारे जीवनों को आनन्दसिक्त करनेवाली वेदधेनो! (यत् ते चर्म) = जो तेरा चाम है और है (अघ्न्ये) = अहन्तव्ये वेदधेनो! (यानि लोमानि) = जो तेरे लोम हैं। २. ये सब, अर्थात् सब लोक-लोकान्तरों का ज्ञान (दात्रे) = तेरे प्रति अपने को दे डालनेवाले के लिए (आमिक्षाम्) = श्रीखण्ड को, (क्षीरम्) = दूध को, (सर्पिः) = घृत को (अथो मधु) = और मधु को दहताम्-प्रपूरित करें।
भावार्थ -
वेदधेनु के ज्ञानदुग्ध का पान करते हुए हम 'आमिक्षा, क्षीर, सर्पि व मधु' जैसे उत्तम पदार्थों का ही प्रयोग करनेवाले बनते हैं।
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