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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 6/ मन्त्र 20
    सूक्त - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त

    सर्वा॑न्दे॒वानि॒दं ब्रू॑मः स॒त्यसं॑धानृता॒वृधः॑। सर्वा॑भिः॒ पत्नी॑भिः स॒ह ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर्वा॑न् । दे॒वान् । इ॒दम् । ब्रू॒म॒: । स॒त्यऽसं॑धान् । ऋ॒त॒ऽवृध॑: । सर्वा॑भि: । पत्नी॑भि: । स॒ह । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सर्वान्देवानिदं ब्रूमः सत्यसंधानृतावृधः। सर्वाभिः पत्नीभिः सह ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सर्वान् । देवान् । इदम् । ब्रूम: । सत्यऽसंधान् । ऋतऽवृध: । सर्वाभि: । पत्नीभि: । सह । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 20

    पदार्थ -

    १. (विश्वान् देवान्) = [विशन्ति] प्रजाओं में प्रवेश करनेवाले [विचरनेवाले] (देवान्) = सब आसुरभावों को जीतने की कामनावाले, (सत्यसंधान्) = सत्य के साथ मेलवाले व (ऋतावृधः) = ऋत का [समय पर सब कार्यों को करने की वृत्ति का] वर्धन करनेवाले पुरुषों का लक्ष्य करके हम (इदं ब्रूमः) = यह स्तुतिवचन कहते हैं। (ते) = वे सब देव (विश्वाभिः पत्नीभिः सह) = अपने अन्दर प्रविष्ट सब पालनशक्तियों के साथ (न) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पाप व कष्ट से मुक्त करें। २. (सर्वान्) = [whole] पूर्ण स्वस्थ (देवान्) = देवों को (इदं ब्रूमः) = लक्ष्य करके यह स्तुतिवचन कहते हैं, ये देव (सत्यसंधान्) = सत्य प्रतिज्ञावाले व (अस्तावृधः) = ऋत का वर्धन करनेवाले हैं। (सर्वाभिः पत्नीभिः सह) = अपनी सब पालकशक्तियों के साथ (ते) = वे (न:) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पाप से मुक्त करें।

    भावार्थ -

    हम सत्य के साथ मेलवाले व ऋत का पालन करनेवाले देव बनकर पापों व कष्टों से दूर होने का यत्न करें।

     

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