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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 6/ मन्त्र 15
    सूक्त - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त

    पञ्च॑ रा॒ज्यानि॑ वी॒रुधां॒ सोम॑श्रेष्ठानि ब्रूमः। द॒र्भो भ॒ङ्गो यवः॒ सह॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पञ्च॑ । रा॒ज्यानि॑ । वी॒रुधा॑म् । सोम॑ऽश्रेष्ठानि । ब्रू॒म॒: । द॒र्भ: । भ॒ङ्ग: । यव॑: । सह॑: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पञ्च राज्यानि वीरुधां सोमश्रेष्ठानि ब्रूमः। दर्भो भङ्गो यवः सहस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पञ्च । राज्यानि । वीरुधाम् । सोमऽश्रेष्ठानि । ब्रूम: । दर्भ: । भङ्ग: । यव: । सह: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 15

    पदार्थ -

    १. (वीरुधाम्) = लताओं के-विरोहणशील [विरुध्] व रोगों को रोकनेवाली [विरूद] ओषधियों के-(पञ्च) = पाँच (राज्यानि) = रोगों के निवारण के द्वारा प्रजा का रञ्जन करनेवाले राजा [वैद्य] से विनियुज्यमान पत्र-काण्ड-पुष्प-फल-मूलात्मक राज्यों का (ब्रूम:) = हम गुणस्तवन करते हैं। ओषधियों के पाँच राज्य (सोमश्रेष्ठानि) = सोम श्रेष्ठ हैं, अर्थात् इन ओषधियों में सोम सर्वश्रेष्ठ है। इसके बाद (दर्भ: भंगः यवः सह:) = कुश, शण, यव व सहमाना हैं। दर्भ [द विदारणे] रोगों का विदारण करनेवाला है, भंग [भजो आमर्दने] रोगों का आमर्दन कर देता है। [यु अमिश्रणे] रोगों को हमसे दूर करता है और सहस् [षह मर्षणे] रोगों को कुचल देता है । (ते) = वे सब (न:) = हमें (अंहस:) = कष्टों से (मुञ्चन्तु) = मुक्त करें।

    भावार्थ -

    'सोम, दर्भ, भंग, यव, सहस्' आदि ओषधियों का ज्ञानपूर्वक प्रयोग करते हुए हम रोगों का समूल विनाश करते हैं।

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