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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 15
    ऋषिः - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
    179

    पञ्च॑ रा॒ज्यानि॑ वी॒रुधां॒ सोम॑श्रेष्ठानि ब्रूमः। द॒र्भो भ॒ङ्गो यवः॒ सह॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पञ्च॑ । रा॒ज्यानि॑ । वी॒रुधा॑म् । सोम॑ऽश्रेष्ठानि । ब्रू॒म॒: । द॒र्भ: । भ॒ङ्ग: । यव॑: । सह॑: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पञ्च राज्यानि वीरुधां सोमश्रेष्ठानि ब्रूमः। दर्भो भङ्गो यवः सहस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पञ्च । राज्यानि । वीरुधाम् । सोमऽश्रेष्ठानि । ब्रूम: । दर्भ: । भङ्ग: । यव: । सह: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 15
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    हिन्दी (4)

    विषय

    कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (वीरुधाम्) जड़ी-बूटियों के (सोमश्रेष्ठानि) सोम [ओषधिविशेष] को प्रधान रखनेवाले (पञ्च) पाँच [पत्ता, डण्डी, फूल-फल और जड़रूप] (राज्यानि) राज्यों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। [रोगों का] (दर्भः) चीर फाड़ना, (भङ्गः) नाश़ करना, (यवः) मिलाना [भर देना] और (सहः) बल [यह उनके गुण हैं], (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१५॥

    भावार्थ

    मनुष्य सोम आदि जड़ी-बूटियों के पत्ते आदि के गुणों से यथोचित उपकार लेकर रोगनिवृत्ति करके हृष्ट-पुष्ट रहें ॥१५॥

    टिप्पणी

    १५−(पञ्च) पत्रकाण्डपुष्पफलमूलरूपाणि (राज्यानि) राज्ञा भिषजा नियुज्यमानानि कर्माणि (वीरुधाम्) विरोहणशीलानां लतादीनाम् (सोमश्रेष्ठानि) सोम ओषधिविशेषः श्रेष्ठः प्रशस्यतमो येषां तथाविधानि (दर्भः) दॄदलिभ्यां भः। उ० ३।१५१। दॄ विदारणे-भ प्रत्ययः। रोगविदारणगुणः (भङ्गः) भञ्जो आमर्दने-घञ्। नाशनगुणः (यवः) मिश्रणगुणः (सहः) बलम्। प्रभावः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    'सोम, दर्भ, भंग, यव, सहस्'

    पदार्थ

    १. (वीरुधाम्) = लताओं के-विरोहणशील [विरुध्] व रोगों को रोकनेवाली [विरूद] ओषधियों के-(पञ्च) = पाँच (राज्यानि) = रोगों के निवारण के द्वारा प्रजा का रञ्जन करनेवाले राजा [वैद्य] से विनियुज्यमान पत्र-काण्ड-पुष्प-फल-मूलात्मक राज्यों का (ब्रूम:) = हम गुणस्तवन करते हैं। ओषधियों के पाँच राज्य (सोमश्रेष्ठानि) = सोम श्रेष्ठ हैं, अर्थात् इन ओषधियों में सोम सर्वश्रेष्ठ है। इसके बाद (दर्भ: भंगः यवः सह:) = कुश, शण, यव व सहमाना हैं। दर्भ [द विदारणे] रोगों का विदारण करनेवाला है, भंग [भजो आमर्दने] रोगों का आमर्दन कर देता है। [यु अमिश्रणे] रोगों को हमसे दूर करता है और सहस् [षह मर्षणे] रोगों को कुचल देता है । (ते) = वे सब (न:) = हमें (अंहस:) = कष्टों से (मुञ्चन्तु) = मुक्त करें।

    भावार्थ

    'सोम, दर्भ, भंग, यव, सहस्' आदि ओषधियों का ज्ञानपूर्वक प्रयोग करते हुए हम रोगों का समूल विनाश करते हैं।

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    भाषार्थ

    (सोमश्रेष्ठानि) सोम जिन में श्रेष्ठ है ऐसी (वीरुधाम्) विविध रोग रोधक ओषधियों के (पञ्च) पांच (राज्यानि) राज्यों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, -- (दर्भः, भङ्गः, यवः, सहः) दर्भ अर्थात् कुशा, भांग जौं, तथा सह, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) मृत्युकारक रोगों से [हे परमेश्वर] (मुञ्चन्तु) मुक्त करें ।

    टिप्पणी

    [दर्भः=कुशा, जिसे कि पटुआ कहते हैं, जिस से रस्सियां बनाई जाती हैं। सह = सहदेवी ओषध ?। "राज्यानि" द्वारा दो अभिप्राय प्रतीत होते हैं। (१) इन में से प्रत्येक की उत्पत्ति के भूभाग पृथक्-पृथक हैं। (२) ये ५ वर्गरूप हैं, जिन में प्रत्येक की अङ्गोपाङ्गरुप ओषधियां भी अन्तर्गत हैं। अभिप्राय यह है कि कोई भी ओषधि फल प्रदात्री नहीं होती यदि परमेश्वरीय कृपा न हो। यथा "विषमप्यमृतं क्वचिद् भवेदमृतं वा विषमीश्वरेच्छया” अर्थात् “विष भी कहीं अमृत हो जाता है, और अमृत भी विष हो जाता है,-ईश्वर की इच्छा से"। पञ्च राज्यानि =सोम तथा दर्भ आदि चार]।

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    विषय

    पाप से मुक्त होने का उपाय।

    भावार्थ

    (वीरुधाम्) लताओं के (पञ्च) पांच (राज्यानि) राज्यों या श्रेणियों का हम (ब्रूमः) वर्णन करते हैं। (सोमश्रेष्ठानि) जिनमें सबसे श्रेष्ठ सोम है और शेष चार (दर्भः भङ्गः यवः सहः) दर्भ, भङ्ग = षण, यव और सहस्=सहमान ओषधि हैं। अथवा—(वीरुधां) नाना प्रकार से शत्रुओं को रोकने वालों के पांच राज्यों का वर्णन करते हैं जिनमें (सोमश्रेष्ठानि) सोम अर्थात् राजा ही सर्वश्रेष्ठ है। और शेष चार (दर्भः) शत्रुवाती, (भङ्गः) शत्रु के नगर तोड़ने वाले, (यवः) परे हटाने वाले और (सहः) उनको दबाने वाले पुरुष विद्यमान होते हैं। अथवा—लताओं के (पञ्च राज्यानि) राजा-वैद्य द्वारा प्रयुक्त पत्र, काण्ड, पुष्प, फल और मूल पांच अंगों का वर्णन करते है उन में सोम श्रेष्ठ है, दर्भ, भङ्ग, यव और सहस् ये ओषधियां उससे उतर कर हैं। (ते नः अंहसः मुञ्चन्तु) वे हमें पाप से मुक्त करें।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘ब्रूमसि’ (तृ०) ‘भड्गो दर्भों’।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Sin and Distress

    Meaning

    We address five most efficacious ruling aspects of herbs chief of which is soma, their root, stalk, leaves, flowers and fruits, and we address darbha grass, bhanga stimulator, barley, and their power, and pray they may protect us from sin, suffering and disease.

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    Translation

    The five kingdoms of plants, having Soma as their chief (Srestha), we address; the darbha, hemp, barley, saha; let them free us from distress.

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    Translation

    Of five broad groups of herbs from which the Soma is most powerful, we, speak- Darbha, Bhanga-hemp barely and Saha. Let them save us from disease,

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    Translation

    To the five kingdoms of the plants which Soma rules as Lord we speak: Darbha, hemp, barley, saha: may these deliver us from disease.

    Footnote

    Darbha: Kusa grass (Poa cynosuroides) used in sacred ceremonies. Hemp: Bhanga (Cannabis Sativa). Saha: A powerful drug.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १५−(पञ्च) पत्रकाण्डपुष्पफलमूलरूपाणि (राज्यानि) राज्ञा भिषजा नियुज्यमानानि कर्माणि (वीरुधाम्) विरोहणशीलानां लतादीनाम् (सोमश्रेष्ठानि) सोम ओषधिविशेषः श्रेष्ठः प्रशस्यतमो येषां तथाविधानि (दर्भः) दॄदलिभ्यां भः। उ० ३।१५१। दॄ विदारणे-भ प्रत्ययः। रोगविदारणगुणः (भङ्गः) भञ्जो आमर्दने-घञ्। नाशनगुणः (यवः) मिश्रणगुणः (सहः) बलम्। प्रभावः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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