अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
ऋषिः - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
53
पार्थि॑वा दि॒व्याः प॒शव॑ आर॒ण्या उ॒त ये मृ॒गाः। श॒कुन्ता॑न्प॒क्षिणो॑ ब्रूम॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठपार्थि॑वा: । दि॒व्या: । प॒शव॑: । आ॒र॒ण्या: । उ॒त । ये । मृ॒गा: । श॒कुन्ता॑न् । प॒क्षिण॑: । ब्रू॒म॒: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.८॥
स्वर रहित मन्त्र
पार्थिवा दिव्याः पशव आरण्या उत ये मृगाः। शकुन्तान्पक्षिणो ब्रूमस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठपार्थिवा: । दिव्या: । पशव: । आरण्या: । उत । ये । मृगा: । शकुन्तान् । पक्षिण: । ब्रूम: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कष्ट हटाने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(ये) जो (पार्थिवाः) पृथिवी के, (दिव्याः) आकाश के (पशवः) प्राणी (उत) और (आरण्याः) जंगल के (मृगाः) जन्तु हैं [उनको] और (शकुन्तान्) शक्तिवाले (पक्षिणः) पक्षियों को (ब्रूमः) हम पुकारते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥८॥
भावार्थ
मनुष्य प्रयत्न करें कि पृथिवी, जङ्गल और आकाश के सब प्राणी सुखदायक होवें ॥८॥इस मन्त्र का मिलान-अथर्व० ११।५।२१। से करो ॥
टिप्पणी
८−(पार्थिवाः) पृथिवीभवाः (दिव्याः) आकाशे भवाः (पशवः) प्राणिनः (आरण्याः) जङ्गलभवाः (उत) (ये) (मृगाः) जन्तवः (शकुन्तान्) शकेरुनोन्तोन्त्युनयः। उ० ३।४९। शक्लृ शक्तौ-उन्त प्रत्ययः। शक्तियुक्तान् (पक्षिणः) वयांसि। अन्यद् गतम्-म० १ ॥
विषय
पशु-पक्षियों का अहिंसन
पदार्थ
१. (पार्थिवा:) = पृथिवी पर विचरनेवाले, (दिव्या:) = आकाश में गतिवाले, (पशव:) = जो भी मनुष्येतर प्राणी हैं, (उत) = और ये (आरण्या: मृगा:) = वन्य हिरण, शार्दूल, सिंह आदि पशु हैं, तथा (शकुन्तान् पक्षिण:) = शक्तिशाली पक्षियों को (ब्रूमः) = हम स्तुत करते हैं इनकी रचना व स्वभाव आदि का चिन्तन करते हैं। (ते) = वे सब (न:) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पाप व कष्ट से मुक्त करें।
भावार्थ
पशु-पक्षियों की गतिविधियों में हम प्रभु-महिमा को देखते हुए इनके हिंसनरूप पाप से बचें।
भाषार्थ
(पार्थिवाः) पृथिवी के (दिव्याः) तथा द्युलोक के (पशवः) पशु, (उत) तथा (ये) जो (आरण्याः मृगाः) वनों के (मृगाः) मृग हैं, तथा (शकुन्तान्) शक्तिशाली (पक्षिणः) पक्षी हैं उन का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे [हे परमेश्वर !] (नः) हमें (अंहसः) हनन से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें, हमारा हनन न करें, हमें कष्ट न पहुंचाएं।
टिप्पणी
[दिव्याः पशवः = मेष, सिंह, वृश्चिक, मकर आदि नक्षत्रगण]।
विषय
पाप से मुक्त होने का उपाय।
भावार्थ
(पार्थिवाः) पृथिवी के पर्वत नदी आदि उत्तम पदार्थ और (दिव्याः) द्यौः, आकाश के सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, मेघ आदि दिव्य पदार्थ (आरण्याः पशवः) अरण्य के रहने वाले सिंह, हाथी आदि पशु (उत) और (ये मृगाः) जो मृग नाना पशु और (शकुन्तान् पक्षिणः) शक्तिशाली पक्षिगण हैं (ब्रूमः) हम उनका वर्णन करें। (ते) वे सब अपने अपने उत्तम गुणों के प्रभाव से (नः) हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) पाप की प्रवृत्तियों से दूर करें।
टिप्पणी
(प्र०) ‘ये ग्राम्याः सप्तपशवः’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Sin and Distress
Meaning
May the animals of the earth and beasts of the forest and powerful birds of the sky, we address, keep us free from sin and suffering.
Translation
The earthly, the heavenly cattle, also the beasts (mrga) that are of the forest; we address the hawks (cakunta), the birds (paksin); let them free us from distress. `
Translation
We describe and take to our use the qualities of all the creatures both of heavenly region and earth, wild beasts and sylvan animals and powerful birds and let them make us free from disease.
Translation
All creatures both of heaven and earth, wild beasts and sylvan animals and winged birds of air we call: may they deliver us from sin.
Footnote
Creatures of heaven: Sun, Moon. Planets. Creatures of earth: mountains, rivers. Sylvan animals: Tiger, Elephant, Deer.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(पार्थिवाः) पृथिवीभवाः (दिव्याः) आकाशे भवाः (पशवः) प्राणिनः (आरण्याः) जङ्गलभवाः (उत) (ये) (मृगाः) जन्तवः (शकुन्तान्) शकेरुनोन्तोन्त्युनयः। उ० ३।४९। शक्लृ शक्तौ-उन्त प्रत्ययः। शक्तियुक्तान् (पक्षिणः) वयांसि। अन्यद् गतम्-म० १ ॥
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