अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 14
ऋषिः - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
72
य॒ज्ञं ब्रू॑मो॒ यज॑मान॒मृचः॒ सामा॑नि भेष॒जा। यजूं॑षि॒ होत्रा॑ ब्रूम॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठय॒ज्ञम् । ब्रू॒म॒:। यज॑मानम् । ऋच॑: । सामा॑नि । भे॒ष॒जा । यजूं॑षि । होत्रा॑: । ब्रू॒म॒: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
यज्ञं ब्रूमो यजमानमृचः सामानि भेषजा। यजूंषि होत्रा ब्रूमस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठयज्ञम् । ब्रूम:। यजमानम् । ऋच: । सामानि । भेषजा । यजूंषि । होत्रा: । ब्रूम: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कष्ट हटाने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(यज्ञम्) यज्ञ [सङ्गतिकरण आदि व्यवहार], (यजमानम्) यजमान [सङ्गतिकरण आदि व्यवहार करनेवाले], (ऋचः) ऋचाओं [स्तुतिविद्याओं] और (भेषजा) भयनिवारक (सामानि) मोक्षज्ञानों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (यजूंषि) सत्कर्मों के ज्ञानों और (होत्राः) [दान करने और ग्रहण करने योग्य] वेदविद्याओं का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे [पदार्थ] (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१४॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है यज्ञ, यज्ञकर्त्ता और पदार्थों के गुण और मोक्षविद्याओं आदि के तत्त्वज्ञान से आनन्द प्राप्त करें ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(यज्ञम्) सङ्गतिकरणादिव्यवहारम् (यजमानम्) सङ्गतिकरणादिव्यवहारसाधकम् (ऋचः) अ० ६।२८।१। स्तुतिविद्याः (सामानि) अ० ७।५४।१। षो अन्तकर्मणि-मनिन्। मोक्षज्ञाननि (भेषजा) भयनिवारकानि (यजूंषि) अ० ७।५४।२। सत्कर्मज्ञानानि (होत्राः) हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। हु दानादानयोः−त्रन्, टाप्। दानादानयोग्या वेदवाचः। होत्रा वाङ्नाम-निघ० १।११। (ते) पूर्वोक्ताः पदार्थाः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
विषय
यज्ञ, यजु:, होत्रा
पदार्थ
१. (यज्ञं ब्रूम:) = अग्निष्टोम आदि यज्ञों का हम स्तवन करते हैं। (यजमानम्) = यज्ञशील पुरुष का स्तवन करते हैं, (ऋचः) = यज्ञ में विनियुक्त पादबद्ध मन्त्रों का, (सामानि) = प्रगीतमन्त्रों का, (भेषजा) = रोगशान्तिकर वामदेव्य आदि का (यजूंषि) = यजुर्मन्त्रों का तथा (होत्रा:) = सोमयाग में 'होता मैत्रावरुणो ब्राह्मणाच्छंसी पोता नेष्टा अच्छावाक् अग्नीन' आदि वषट्कर्ताओं की क्रियाओं का बमः हम स्तवन करते हैं। (ते) = वे सब (न:) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पापों व कष्टों से बचाएँ।
भावार्थ
यज्ञों में प्रवृत्त हुए-हुए हम पापों व कष्टों से दूर हों।
भाषार्थ
(यज्ञम्) यज्ञ, (यजमानम्) यजमान (ऋषः) ऋचाओं (सामानि) सामवेद के गानों, (भेषजा) विविध ओषधियों का वर्णन करने वाले अथर्ववेद का (ब्रूमः) हम कथन करते रहते हैं। (यजूंषि) यजुर्वेद के मन्त्रों तथा (होत्राः) ऋत्विजों की क्रियाओं का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं— (ते) वे सब [हे परमेश्वर!] (नः) हमें (अंहसः) मरण से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें। भेषजा= अथवा "भेषज" रूपी सामग्री की ओषधियां।
टिप्पणी
[यज्ञादि मृत्यु से रक्षा करते हैं। परन्तु यज्ञ आदि में क्षति या प्रत्यवाय के हो जाने पर आशंकित मृत्यु से बचाव के लिये परमेश्वर से प्रार्थना की गई है। ऐसी प्रार्थनाएं भी मनुष्य स्वभाव के अनुरूप तथा अनुकूल है। "भेषजा" पद द्वारा अथर्ववेद अभिमत हैं। नानाविध ओषधियों का वर्णन अथर्ववेद में है, अतः अथर्ववेद को "भेषजा" कहा है। इस प्रकार मन्त्र में चारों वेदों के नाम पठित हैं]।
विषय
पाप से मुक्त होने का उपाय।
भावार्थ
हम (यज्ञं) यज्ञ, (यजमानं) यजमान, (सामानि) सामवेद के पवित्र गायनों (भेषजा) अथर्ववेद के रोगहारी उपायों और (यजूंषि) यजुर्वेद के कर्म-काण्डों और (होत्रा) आहुति या होम आदि कार्यों का (ब्रूमः) वर्णन करते हैं। (ते नः अंहसः मुञ्चन्तु) वे हमें पापों से मुक्त करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Sin and Distress
Meaning
We address yajna, yajamana, scholars of Rks, Samans and the sanative Atharva, holy men of Yajurveda and their yajnic acts, and pray that they may save us from sin and suffering.
Translation
We address the sacrifice, the sacrificer, the verses (rc), the chants (siman), the remedies; the sacred formulas (yajus) the invocations we address: let them free us from distress.
Translation
We have all praises for the performance of Yajna, the performer of Yajna, Verses and knowledge of Rigveda; Samveda and Yajurveda combined with the Atharvaveda which also gives the knowledge of medicine and all the articles for oblations. Let them be source of saving us from committing sins.
Translation
To sacrifice, to worshipper, Rigvedic hymns, pure songs of the Sāmaveda, healing expedients of the Atharvaveda, we speak, to ceremonial verses of the Yajurveda and priestly acts: may they deliver us from sin.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(यज्ञम्) सङ्गतिकरणादिव्यवहारम् (यजमानम्) सङ्गतिकरणादिव्यवहारसाधकम् (ऋचः) अ० ६।२८।१। स्तुतिविद्याः (सामानि) अ० ७।५४।१। षो अन्तकर्मणि-मनिन्। मोक्षज्ञाननि (भेषजा) भयनिवारकानि (यजूंषि) अ० ७।५४।२। सत्कर्मज्ञानानि (होत्राः) हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। हु दानादानयोः−त्रन्, टाप्। दानादानयोग्या वेदवाचः। होत्रा वाङ्नाम-निघ० १।११। (ते) पूर्वोक्ताः पदार्थाः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
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