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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 13
    ऋषिः - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
    55

    आ॑दि॒त्या रु॒द्रा वस॑वो दि॒वि दे॒वा अथ॑र्वाणः। अङ्गि॑रसो मनी॒षिण॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒दि॒त्या: । रु॒द्रा: । वस॑व: । दि॒वि । दे॒वा: । अथ॑र्वाण: । अङ्गि॑रस: । म॒नी॒षिण॑: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदित्या रुद्रा वसवो दिवि देवा अथर्वाणः। अङ्गिरसो मनीषिणस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आदित्या: । रुद्रा: । वसव: । दिवि । देवा: । अथर्वाण: । अङ्गिरस: । मनीषिण: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (दिवि) विजय की इच्छा में [वर्तमान] (आदित्याः) प्रकाशमान, (रुद्राः) दुःखनाशक, (वसवः) निवास करानेवाले, (देवाः) व्यवहारकुशल (अथर्वाणः) निश्चलस्वभाव, (अङ्गिरसः) ज्ञानी और (मनीषिणः) बुद्धिमान् लोग [जो हैं], (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१३॥

    भावार्थ

    तेजस्वी, महर्षि महात्मा लोग इन्द्रियदमन आदि से बाहिरी और भीतरी दोषों का नाश करते हैं ॥१३॥

    टिप्पणी

    १३−(आदित्याः) अ० १।९।१। आदीप्यमानाः (रुद्राः) अ० २।२७।६। दुःखनाशकाः (वसवः) वासयितारः (दिवि) विजिगीषायाम् (देवाः) व्यवहारकुशलाः (अथर्वाणः) अ० ४।१।७। निश्चलस्वभावाः (अङ्गिरसः) अ० २।१२।४। ज्ञानिनो महर्षयः (मनीषिणः) अ० ३।५।६। मेधाविनः-निघ० ३।१५। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

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    विषय

    आदित्य-रुद्र-वसु

    पदार्थ

    १. (आदित्या:) = सब गुणों का आदान करनेवाले, (रुद्रा:) = रोगों को दूर भगानेवाले, (वसवः) = निवास को उत्तम बनानेवाले, (दिवि देवा:) = जान के प्रकाश में स्थित होनेवाले देव, (अथर्वाण:) = [अ थर्वतिः चरतिकर्मा] स्थिरवृत्तिवाले, (अंगिरस:) = अंग-प्रत्यंग में रसवाले (मनीषिण:) = बुद्धिमान् पुरुष, (ते) = वे सब (नः अहसः मुञ्चन्तु) = हमें पापों व कष्टों से बचाएँ।

    भावार्थ

    हम आदित्य आदि की वृत्ति को अपनाते हुए कष्टों व पापों से ऊपर उठे।

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    भाषार्थ

    (आदित्यः रुद्राः, वसवः) आदित्य, रुद्र और वसु कोटि के ब्रह्मचारी तथा (दिवि) द्युलोक में विद्यमान (अथर्वाणः) निश्चल (देवाः) द्योतमान नक्षत्र, तारागण, तथा (मनीषिणः) मननशील मेधावी (अङ्गीरसः१) राष्ट्र-अङ्गी अर्थात् शरीर के रसरूप शासक - (ते) वे सब [हे परमेश्वर !] (नः) हमें (अंहसः) मरण से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें।

    टिप्पणी

    [प्राकृतिक तथा चेतन देवों द्वारा रक्षा की प्रार्थना परमेश्वर से की गई है। सायणाचार्य ने अथर्वाणः तथा अङ्गिरसः पदों द्वारा अथर्वाङ्गिरस [अथर्ववेद] वेद के ऋषियों का ग्रहण किया है। "अथर्वाणः" को दिविष्ट माना है, अतः ये मनुष्य नहीं अपितु नक्षत्र आदि हैं, जोकि निश्चल रूप से अपने-अपने स्थानों में स्थित हैं]।[१. अङ्गिरसः= अङ्गानां रसरूपाः, प्राणरूपाः, राष्ट्रशासकाः। राष्ट्र सप्ताङ्गी होता है, देखो (मन्त्र ११)]।

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    विषय

    पाप से मुक्त होने का उपाय।

    भावार्थ

    (आदित्याः रुद्राः वसवः) आदित्य के समान ४८ वर्ष के ब्रह्मचारी, (रुद्राः) रुद्र, नैष्ठिक ब्रह्मचारी, (वसवः) वसु २४ वर्ष के ब्रह्मचारी, अथवा—आदित्य १२ मास, रुद्र ११ प्राण और आत्मा, वसु, पृथिवी आदि लोक, (दिवि) जो द्यौः लोक में स्थित या सात्विक स्थिति में विराजमान (देवाः) देवगण, (अथर्वाणः) जगत् के रक्षक विद्वान् गण, (अङ्गिरसः) ज्ञानी, (मनीषिणः) मनस्वी, विचारक लोग हैं (ते) वे सत्र (नः) हमें (अंहसः) पाप के भावों से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें।

    टिप्पणी

    ‘वसवो देवा दैवा अथर्वणः’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Sin and Distress

    Meaning

    Adityas, Rudras and Vasus that provide light, justice and peaceful settlement, Brahmacharis of the Aditya, Rudra and Vasu order, unshaking powers of light in the heavenly region, Angirasas, pranic energies and inspiring leaders, intellectuals and pioneering thinkers all, we pray, may save us from sin and suffering.

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    Translation

    The Adityas, the Rudras, the Vasus, the gods in heaven, the Atharvans, the Angirases full of wisdom; let them free us from distress.

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    Translation

    The men of wisdom having acquired great maturity in knowledge and always active in the sphere of discrimination all the Adity as Rudras, Vasus, Atharvans and Angirasas save us from commiting sins. [N.B.:—Aditya are those who studied 48 years with strict observance arid discipline of continence. Rudras are those who studied 36 or 44 years with strict observance and discipline of continence. Vasus—are those who studied 24 years with strict observance and disciplines of 24 years. Angiras—The scientists who have specialized in prana vidya and the science of heat. Atharvanah—are those enlightened men who are rightly firm in deeds, thought and understanding.]

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    Translation

    Aditya, Rudra, Vasu Brahmcharis, noble persons, steadfast learned people, and wise, reflective persons: may they deliver us from sin.

    Footnote

    Adityas: Who observe celibacy for 48 years. Rudras: Who remain celebate for 36 years. Vasus: Who observe celibacy for 24 years.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(आदित्याः) अ० १।९।१। आदीप्यमानाः (रुद्राः) अ० २।२७।६। दुःखनाशकाः (वसवः) वासयितारः (दिवि) विजिगीषायाम् (देवाः) व्यवहारकुशलाः (अथर्वाणः) अ० ४।१।७। निश्चलस्वभावाः (अङ्गिरसः) अ० २।१२।४। ज्ञानिनो महर्षयः (मनीषिणः) अ० ३।५।६। मेधाविनः-निघ० ३।१५। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

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