अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
ऋषिः - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
39
दिवं॑ ब्रूमो॒ नक्ष॑त्राणि॒ भूमिं॑ य॒क्षाणि॒ पर्व॑तान्। स॑मु॒द्रा न॒द्यो वेश॒न्तास्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठदिव॑म् । ब्रू॒म॒: । नक्ष॑त्राणि । भूमि॑म् । य॒क्षाणि॑ । पर्व॑तान् । स॒मु॒द्रा: । न॒द्य᳡: । वे॒श॒न्ता: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
दिवं ब्रूमो नक्षत्राणि भूमिं यक्षाणि पर्वतान्। समुद्रा नद्यो वेशन्तास्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठदिवम् । ब्रूम: । नक्षत्राणि । भूमिम् । यक्षाणि । पर्वतान् । समुद्रा: । नद्य: । वेशन्ता: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कष्ट हटाने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(दिवम्) आकाश, (नक्षत्राणि) नक्षत्रों, (भूमिम्) भूमि, (यक्षाणि) पुण्य स्थानों, और (पर्वतान्) पर्वतों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (समुद्राः) सब समुद्र, (नद्यः) नदियाँ और (वेशन्ताः) सरोवर [जो हैं, उनका भी], (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१०॥
भावार्थ
मनुष्य आकाश, नक्षत्र, भूमि आदि पदार्थों के गुण कर्म जानकर और उनका यथावत् उपयोग करके आनन्दित रहें ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(दिवम्) आकाशम् (ब्रूमः) (नक्षत्राणि) णक्ष गतौ-अत्रन्। तारागणान् (भूमिम्) (यक्षाणि) यक्ष पूजायाम्-घञ्। पूजास्थानानि। पुण्यक्षेत्राणि (पर्वतान्) शैलान् (समुद्राः) (नद्यः) सरितः (वेशन्ताः) जॄविशिभ्यां झच्। उ० ३।१२६। विश प्रवेशने झच्। अल्पजलाशयाः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
विषय
धुलोक, नक्षत्र, भूमि, यक्ष
पदार्थ
१. (दिवम्) = इस द्योतमान युलोक का हम (ब्रूमः) = स्तवन करते हैं। द्युलोक में आश्रित (नक्षत्राणि) = नक्षत्रों को-जोकि पुण्यकृत् लोगों के धाम हैं [सका वा एतानि ज्योतींषि यन्नक्षत्राणि-तै० अ० ५.५.१.३]. उनका स्तवन करते हैं। (भूमिम्) = भूमि का (यक्षाणि) = भूमि पर स्थित पुण्यक्षेत्रों का [पूज्य स्थानों का], (पर्वतान्) = पर्वतों का गुणस्तवन करते हैं। २. (समुद्रा:) = समुद्रों, (नद्य:) = नदियों व (वेशन्ता:) = जो अल्प सर [तालाब] हैं, उन सबका गुणस्तवन करते हैं। इन सबमें प्रभु की महिमा को देखते हैं। इसप्रकार (ते) = वे सब (न:) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पाप व कष्ट से बचाएँ।
भावार्थ
द्युलोक, नक्षत्र, भूमि, यक्ष, समुद्र, नदी आदि में सर्वत्र प्रभु-महिमा का अवलोकन करते हुए हम पापों से बचें।
भाषार्थ
(दिवम्) द्युलोक, (नक्षत्राणि) नक्षत्रों, (भूमिम्) भूमि, (यक्षाणि) पुण्य क्षेत्रों, (पर्वतान्) तथा पर्वतों का (ब्रूम) हम कथन करते हैं, (समुद्राः) समुद्र, (नद्यः) नदियां, (वेशन्ताः) अल्प जलाशय (ते) वे [हे परमेश्वर !] (नः) हमें (अंहसः) हनन से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें, हमारा हनन न करें, हमें कष्ट न पहुंचाएँ।
टिप्पणी
[अभिप्राय यह कि हम इन स्थानों में कहीं भी जांय, या विमानों द्वारा द्युलोक तथा नक्षत्रों की ओर जायें, तो हमारा न हनन हो, और न इन स्थानों से हमें कष्ट प्राप्त हो। सर्वव्यापक तथा सर्वशक्तिमान परमेश्वर जोकि इन सब स्थानों का शासक है, उस से स्वरक्षा की प्रार्थना की है। यक्षाणि= पुण्यक्षेत्राणि (सायण), "यक्ष पूजायाम्"]।
विषय
पाप से मुक्त होने का उपाय।
भावार्थ
(दिवं) सूर्य (नक्षत्राणि) नक्षत्र (यज्ञाणि) पूज्य स्थान, (पर्वतान्) पर्वत, (समुद्रा:) समुद्र, (नद्यः) नदियें (वेशन्ताः) जलाशय आदि के (ब्रूमः) नाना उत्तम गुण वर्णन करते हैं। (ते नः) वे हमें (अंहस) पाप प्रवृत्तियों और भावों से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘भौमं’ इति पैप्प० सं०। ‘समुद्रान् नद्यो वेशन्तान्’ इति मै ० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Sin and Distress
Meaning
We address the regions of light, constellations of the stars, earth, holy places, mountains and clouds, seas, rivers and lakes, and pray they may be good to us and save us from sin and suffering.
Translation
We address the sky, the asterisms, the earth, the yaksas, the mountains; the oceans, the rivars, the pools -- let them free us from distress.
Translation
We describe the utility of solar energy, stars the earth, mountains, the places giving health, seas, rivers, and lakes and let them make us free from disease.
Translation
We speak to Heaven, constellations, to Earth, to Holy places, and to Hills, to Seas, to Rivers and to Lakes: may they deliver us from sin.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(दिवम्) आकाशम् (ब्रूमः) (नक्षत्राणि) णक्ष गतौ-अत्रन्। तारागणान् (भूमिम्) (यक्षाणि) यक्ष पूजायाम्-घञ्। पूजास्थानानि। पुण्यक्षेत्राणि (पर्वतान्) शैलान् (समुद्राः) (नद्यः) सरितः (वेशन्ताः) जॄविशिभ्यां झच्। उ० ३।१२६। विश प्रवेशने झच्। अल्पजलाशयाः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
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