Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 6 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
    ऋषिः - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
    58

    मु॒ञ्चन्तु॑ मा शप॒थ्यादहोरा॒त्रे अथो॑ उ॒षाः। सोमो॑ मा दे॒वो मु॑ञ्चतु॒ यमा॒हुश्च॒न्द्रमा॒ इति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मु॒ञ्चन्तु॑ । मा॒ । श॒प॒थ्या᳡त् । अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । अथो॒ इति॑ । उ॒षा: । सोम॑: । मा॒ । दे॒व: । मु॒ञ्च॒तु॒ । यम् । आ॒हु: । च॒न्द्रमा॑: । इति॑ ॥८.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मुञ्चन्तु मा शपथ्यादहोरात्रे अथो उषाः। सोमो मा देवो मुञ्चतु यमाहुश्चन्द्रमा इति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मुञ्चन्तु । मा । शपथ्यात् । अहोरात्रे इति । अथो इति । उषा: । सोम: । मा । देव: । मुञ्चतु । यम् । आहु: । चन्द्रमा: । इति ॥८.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (अहोरात्रे) दिन और राति (अथो) और (उषाः) उषा [प्रभात वेला] (मा) मुझे (शपथ्यात्) शपथ में होनेवाले दोष से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें। (देवः) उत्तम गुणवाला (सोमः) ऐश्वर्यवान्, (यम्) जिसको, “(चन्द्रमाः इति) यह चन्द्रमा है”−(आहुः) कहते हैं, (मा) मुझे (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥७॥

    भावार्थ

    मनुष्य दिन-राति और प्रातः-सायं चन्द्रमा के समान शान्तस्वभाव होकर सत्य शपथ आदि वचन करके आनन्द भोगें ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (मा) माम् (शपथ्यात्) शपथे सत्यताकरणाय दिव्यभेदे भवाद् दोषात् (अहोरात्रे) (उषाः) प्रभातवेला (सोमः) ऐश्वर्यवान् (मा) माम् (देवः) उत्तमगुणयुक्तः (मुञ्चन्तु) वियोजयतु (यम्) (आहुः) कथयन्ति (चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अहोरात्र-उषा-सोम

    पदार्थ

    १. (अहोरात्रे) = दिन और रात (अथो) = तथा (उपा:) = उषाकाल (मा) = मुझे (शपथ्यात्) = आक्रोशजनित पाप से (मुञ्चन्तु) = मुक्त करें। मैं किसी भी समय पर-निन्दा में प्रवृत्त में न होऊँ। यह (सोमः देव:) = दिव्य गुणयुक्त प्रकाशमय 'सोम', (यम्) = जिसको 'चन्द्रमा' (इति आहुः) = चन्द्रमा [-आझाद देनेवाला] इस नाम से कहते हैं, (मा मुञ्चतु) = मुझे आक्रोशजनित पाप से मुक्त करे। शीतल ज्योत्स्नाबाले चन्द्र का स्मरण मुझे भी शीतल स्वभाववाला बनाए। 

    भावार्थ

    'दिन, रात, उषा व चन्द्र' ये सब मुझे आक्रोशजनित पाप से मुक्त करे।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (अहोरात्रे) दिन और रात (अथो) तथा (उषाः) उषः काल, (शपथ्यात्) शपथजन्य दुष्परिणामों से (मा) मुझे (मुञ्चन्तु) मुक्त करें तथा (देव) प्रकाशमान (सोमः) सोम, (यम्) जिसे कि (चन्द्रमाः इति) चन्द्रमा इस नाम से (आहुः) कहते हैं वह भी (मा) मुझे (मुञ्चतु) उन दुष्परिणामों से मुक्त करे।

    टिप्पणी

    [शपथ्यात् = मनुष्य प्रायः अपने आप को निरपराधी साबित करने के लिए शपथें खाते हैं, जो कि झूठी होती हैं, सत्यरूप नहीं होतीं। इन शपथों के कारण चित्तवृत्तियां दूषित हो जाती हैं,- यह दुष्परिणाम है। व्यक्ति इस बात को समझ कर शपथों और उन के दुष्परिणामों से अपने आप को मुक्त करना चाहता है। दिन-रात तथा उषः काल में मनुष्य झूठी शपथें खाता रहता है। वह इन्हें त्यागने का अभिलाषी है। अतः इन्हें त्यागने का वह संकल्प करता है, और इस निमित्त परमेश्वर से शक्ति की याचना करता है। चन्द्रमा शब्द द्वारा रात्रि का काल सूचित किया है, और उषाः शब्द द्वारा दिन का काल। “शपथ्य" परिणाम है, और "शपथ" उस का कारण है। परिणाम से छुटकारा चाहने वाला व्यक्ति, सुतरां कारण से भी छुटकारे का अभिलाषी है]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पाप से मुक्त होने का उपाय।

    भावार्थ

    (शपथ्याद्) शपथ्य-पर-निन्दा या दूसरे के विषय में कठोर दुःखदायी वचनों के कहने से उत्पन्न होने वाले पाप से (अहोरात्रे) दिन और रात (अथो उषाः) और उपा (मा मुञ्चन्तु) मुझे मुक्त करें। (सोमः देवः) सोम देव (यम् चन्द्रमा ग्राहुः) जिसको विद्वान् चन्द्रमा कहते हैं वह भी (मा मुञ्चतु) मुझे पाप से मुक्त कर। अर्थात् दिन रात्रि और उपा काल और चन्द्र को पवित्र और शान्तिकारक मनन करके हम अपने चित्त को परनिन्दा और क्रोध से बचावें।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘अथो वृषाः’ (तृ०) ‘आदित्यो’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Sin and Distress

    Meaning

    May the day and night and the dawn free me from the ill effects of evil wishes and intentions of maligners. May the generous Soma whom they call the moon free me from the evil consequences of execrations.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let day and night, likewise dawn, free me from what comes from a curse; let god Soma free me, whom they call the moon.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let day and night and the dawns save us from committing any sin or bad deed and let us save from do in any harm to others the Soma whom learned men call as Chandrama, the moon making all delighted.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May Day and Night and Dawn deliver me from the evil of imprecation. May the pleasant, serviceable Moon, called so by the learned, free me.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (मा) माम् (शपथ्यात्) शपथे सत्यताकरणाय दिव्यभेदे भवाद् दोषात् (अहोरात्रे) (उषाः) प्रभातवेला (सोमः) ऐश्वर्यवान् (मा) माम् (देवः) उत्तमगुणयुक्तः (मुञ्चन्तु) वियोजयतु (यम्) (आहुः) कथयन्ति (चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top