अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 2
ऋषिः - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
68
ब्रू॒मो राजा॑नं॒ वरु॑णं मि॒त्रं विष्णु॒मथो॒ भग॑म्। अंशं॒ विव॑स्वन्तं ब्रूम॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठब्रू॒म: । राजा॑नम् । वरु॑णम् । मि॒त्रम् । विष्णु॑म् । अथो॒ इति॑ । भग॑म् । अंश॑म् । विव॑स्वन्तम् । ब्रू॒म॒: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रूमो राजानं वरुणं मित्रं विष्णुमथो भगम्। अंशं विवस्वन्तं ब्रूमस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठब्रूम: । राजानम् । वरुणम् । मित्रम् । विष्णुम् । अथो इति । भगम् । अंशम् । विवस्वन्तम् । ब्रूम: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कष्ट हटाने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(वरुणम्) श्रेष्ठ (राजानम्) राजा, (मित्रम्) मित्र, (विष्णुम्) कर्मों में व्यापक विद्वान् (अथो) और (भगम्) ऐश्वर्यवान् पुरुष का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (अंशम्) विभाग करनेवाले और (विवस्वन्तम्) विविध स्थान में निवास करनेवाले पुरुष का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥२॥
भावार्थ
धार्मिक राजा और सब विद्वान् पुरुष मिलकर परस्पर रक्षा करके यश प्राप्त करें ॥२॥
टिप्पणी
२−(राजानम्) ईशितारम् (वरुणम्) श्रेष्ठम् (मित्रम्) स्नेहिनम् (विष्णुम्) कर्मसु व्यापकं पण्डितम् (अथो) अपि च (भगम्) भगवन्तम्। ऐश्वर्यवन्तम् (अंशम्) विभाजकम् (विवस्वन्तम्) वि+वस निवासे क्विप्, मतुप् मस्य वः। विविधस्थाने निवासशीलम्। अन्यत् पूर्ववत् म० १ ॥
विषय
'वरुण-विवस्वान्' द्वारा पाप व कष्ट से मोचन
पदार्थ
१. (राजानम्) = शासन करनेवाले व दीप्त, (वरुणम्) = पाप का निवारण करनेवाले, (मित्रम्) = सबके प्रति स्नेहवाले, (विष्णुम्) = व्यापक अथो और (भगम्) = ऐश्वर्यशाली प्रभु को (ब्रूम:) = कहते हैं। इन नामों से प्रभु का स्मरण करते हुए ऐसा ही बनने का प्रयत्न करते हैं। २. (अंशम्) = धनों का संविभाग करनेवाले व (विवस्वन्तम्) = विशिष्ट निवास को प्राप्त करानेवाले प्रभु को (ब्रूम:) = हम स्तुत करते हैं। हम भी धनों का संविभाग करते हुए सबके निवास का साधन बनते हैं। (ते) = वे 'राजा, वरुण, विवस्वान्' आदि सब देव (नः) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पापों व कष्टों से मुक्त करें।
भावार्थ
हम 'राजा, वरुण, मित्र, विष्णु, भग, अंश व विवस्वान्' आदि नामों से क्रियात्मकरूप में प्रभुस्तवन करते हुए पाप व कष्ट से दूर हों।
भाषार्थ
(राजानं वरुणम्) वरुण राजा, (मित्रं विष्णुम) मित्र, विष्णु (अथो) तथा (भगम्) भग का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं; (अंशम्) अंश, (विवस्वन्तम्) विवस्वान् का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं,- (ते) कि वे [हे परमेश्वर !] (नः) हमें (अंहस) हनन से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें, हमारा हनन न करें।
टिप्पणी
[वरुण आदि सूर्य के नाम हैं, जोकि सूर्य की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं के सूचक हैं। वरुण=सूर्य जोकि रश्मियों द्वारा मेघ पैदा कर, उस द्वारा अन्तरिक्ष को आवृत करता है, ढक देता है। मित्र = सूर्य जो कि स्निग्ध करने वाले उदक का अधिष्ठाता है "मिद् स्नेहने"। विष्णु=किरणों से व्याप्त सूर्य। भग=सूर्य, जो कि क्षितिज से उपर आने वाला है, परन्तु अभी आया नहीं। यथा “अन्धो भग इत्याहुः अनुत्सृप्तो न दृश्यते" (निरुत १२।२।१३)। अंश= किरण अर्थात् अंशु, अर्थात् किरणों द्वारा उत्सृप्त सूर्य। विवस्वान = रात्री के अन्धकार का विवासन अर्थात् निरसन करने वाला सूर्य। “रात्रिरादित्यस्योदयेऽन्तर्धीयते" (निरुक्त १२।२।११)]।
विषय
पाप से मुक्त होने का उपाय।
भावार्थ
(राजानम्) सब के राजा, प्रकाशमान (वरुणम्) सर्वश्रेष्ठ, (विष्णुम्) सर्वव्यापक, (मित्रम्) सब के स्नेही मृत्यु से भी त्राणकारी (अथो भगम्) और ऐश्वर्यवान् (अंशम्) सर्वान्तयामी (विवस्वन्तम्) सब लोकों को बसाने हारे, सब के हृदयों में नानारूपों से बसने वाले परमात्मा का या इन गुणों के धारण करने वाले महात्माओं का हम (ब्रूमः) वर्णन करें कि (ते नः अंहसः मुञ्चन्तु) वे हमें अपने गुणों के प्रभाव से पाप से मुक्त करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Sin and Distress
Meaning
We address Varuna, the refulgent sun that forms the cloud, Mitra, the sun that forms delicious waters for us, Vishnu, the all reaching illuminative sun, Bhaga, the sun that brings morning energy, Ansha, pranic energy of the sun that inspires greenery, and Vivasvan, dispeller of darkens s, and we pray to God that we may be free from sin, suffering and disease.
Translation
We address king Varuna, Mitra,- Vibhu, likewise Bhaga: Ansa, Vivasvant we address; let them free us from distress.
Translation
We describe and take to our use the shining oxygen and hydrogen gases, all—pervading sun-light and the refulgence of the rays, dividing power of the sun and let them make us free from diseases.
Translation
We call on the noble king, on a comrade, on a person devoted to deeds, on a dignified person, on the All-pervading God, Who dwells in the hearts of all in diverse forms: may they deliver us from sin.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(राजानम्) ईशितारम् (वरुणम्) श्रेष्ठम् (मित्रम्) स्नेहिनम् (विष्णुम्) कर्मसु व्यापकं पण्डितम् (अथो) अपि च (भगम्) भगवन्तम्। ऐश्वर्यवन्तम् (अंशम्) विभाजकम् (विवस्वन्तम्) वि+वस निवासे क्विप्, मतुप् मस्य वः। विविधस्थाने निवासशीलम्। अन्यत् पूर्ववत् म० १ ॥
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