अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
ऋषिः - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
41
अ॑होरा॒त्रे इ॒दं ब्रू॑मः सूर्याचन्द्र॒मसा॑वु॒भा। विश्वा॑नादि॒त्यान्ब्रू॑म॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । इ॒दम् । ब्रू॒म॒: । सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसौ॑ । उ॒भा । विश्वा॑न् । आ॒दि॒त्यान् । ब्रू॒म॒: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.५॥
स्वर रहित मन्त्र
अहोरात्रे इदं ब्रूमः सूर्याचन्द्रमसावुभा। विश्वानादित्यान्ब्रूमस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठअहोरात्रे इति । इदम् । ब्रूम: । सूर्याचन्द्रमसौ । उभा । विश्वान् । आदित्यान् । ब्रूम: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कष्ट हटाने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(इदम्) अब (अहोरात्रे) दिन और राति का और (उभा) दोनों (सूर्याचन्द्रमसौ) सूर्य और चन्द्रमा का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (विश्वान्) सब (आदित्यान्) प्रकाशमान विद्वानों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥५॥
भावार्थ
मनुष्य विद्वानों के सत्सङ्ग से सूर्य और चन्द्रमा की विद्या और नियम जानकर अपने समय का सुप्रबन्ध करें ॥५॥
टिप्पणी
५−(अहोरात्रे) (इदम्) इदानीम् (ब्रूमः) (सूर्याचन्द्रमसौ) सूर्यचन्द्रविद्यां नियमं च (उभा) उभौ (विश्वान्) सर्वान् (आदित्यान्) अ० १।९।१। आङ् दीपी दीप्तौ-यक्। आदीप्यमानान्। प्रकाशमानान्। विदुषः पुरुषान्। शेषं गतम्-म० १ ॥
विषय
अहोरात्रे-सूर्यचन्द्रमसी
पदार्थ
१. (अहोरात्रे) = दिन और रात्रि का लक्ष्य करके हम (इदं ब्रूम:) = इस स्तुतिवाक्य का उच्चारण करते हैं। (सूर्याचन्द्रमसौ) = सूर्य और चन्द्रमा (उभौ) = दोनों का लक्ष्य करके स्तुतिवचन कहते हैं। इसी प्रकार (विश्वान्) = सब (आदित्यान्) = आदित्यों का स्तवन करते हैं। संक्रान्तिभेद से सूर्यों का भेद होकर ये ('धातार्यमामित्राख्या वरुणांशभगा विप्रवस्यदिन्द्रयुताः। पूषालयपर्जन्यौ त्वष्टा विष्णुश्च भानवः प्रोक्ताः') = धाता, अर्यमा आदि बारह आदित्यों के गुणों का स्तवन करते हैं। (ते) = वे सब (न:) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पाप व कष्ट से मुक्त करें।
भावार्थ
हम दिन व रात के चक्र में, सूर्य व चन्द्रमा की ज्योति में तथा आदित्यों की संक्रान्तियों में प्रभु-महिमा को देखते हुए पापवृत्ति से ऊपर उठें और कष्टों से बचें।
भाषार्थ
(अहोरात्रे) दिन और रात (उभा सूर्याचन्द्रमसौ) तथा सूर्य और चन्द्र दोनों का (इदं ब्रूमः) हम यह कथन करते हैं, तथा (विश्वान्) सभी (आदित्यान्) अदिति अर्थात् अनश्वर प्रकृति से उत्पन्न सब का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं कि (ते) वे (हे परमेश्वर!) (नः) हमें (अहंस) हनन से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें, हमारा हनन न करें।
टिप्पणी
[प्राकृतिक पदार्थों, भिन्न-भिन्न कालों तथा प्राणियों द्वारा सम्भाव्यमान कष्टों तथा मृत्युओं से वचे रहने की प्रार्थनाएं परमेश्वर से इन मन्त्रों में की गई हैं। इन प्रार्थनाओं द्वारा प्रार्थियों की आस्तिक भावनाओं को प्रदर्शित किया है। अदिति = अ + दो (अवखण्डने)= न खण्डित अर्थात् विनष्ट न होने वाली प्रकृति]।
विषय
पाप से मुक्त होने का उपाय।
भावार्थ
(अहोरात्रे) दिन और रात (सूर्याचन्द्रमसौ उभौ) दोनों सूर्य और चन्द्रमा (विश्वान् आदित्यान्) समस्त आदित्यों, १२ मासों का (इदम् ब्रूमः) इस प्रकार से हम वर्णन करें, कि (ते नः अंहसः मुञ्चन्तु) वे हमें अपने सत्य प्रभाव से पाप से मुक्त करें।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘चन्द्रमसा उभा’ (तृ०) ‘आदित्यान् सर्वान्’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Sin and Distress
Meaning
We address the day and night, both sun and moon and all the phases of the sun in the Zodiacs and pray that we may be free from sin and distress.
Translation
Day and night now we address, sun-and moon both; all the Adityas we address; let them free us from distress.
Translation
I describe and take use of this property of day and night both the sun and moon and all the twelve months and let them make us free from disease.
Translation
This word of ours we speak to Day and Night, and to the Sun and Moon, all the learned persons we address: may they deliver us from sin.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(अहोरात्रे) (इदम्) इदानीम् (ब्रूमः) (सूर्याचन्द्रमसौ) सूर्यचन्द्रविद्यां नियमं च (उभा) उभौ (विश्वान्) सर्वान् (आदित्यान्) अ० १।९।१। आङ् दीपी दीप्तौ-यक्। आदीप्यमानान्। प्रकाशमानान्। विदुषः पुरुषान्। शेषं गतम्-म० १ ॥
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