Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
    सूक्त - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त

    पार्थि॑वा दि॒व्याः प॒शव॑ आर॒ण्या उ॒त ये मृ॒गाः। श॒कुन्ता॑न्प॒क्षिणो॑ ब्रूम॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पार्थि॑वा: । दि॒व्या: । प॒शव॑: । आ॒र॒ण्या: । उ॒त । ये । मृ॒गा: । श॒कुन्ता॑न् । प॒क्षिण॑: । ब्रू॒म॒: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पार्थिवा दिव्याः पशव आरण्या उत ये मृगाः। शकुन्तान्पक्षिणो ब्रूमस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पार्थिवा: । दिव्या: । पशव: । आरण्या: । उत । ये । मृगा: । शकुन्तान् । पक्षिण: । ब्रूम: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 8

    पदार्थ -

    १. (पार्थिवा:) = पृथिवी पर विचरनेवाले, (दिव्या:) = आकाश में गतिवाले, (पशव:) = जो भी मनुष्येतर प्राणी हैं, (उत) = और ये (आरण्या: मृगा:) = वन्य हिरण, शार्दूल, सिंह आदि पशु हैं, तथा (शकुन्तान् पक्षिण:) = शक्तिशाली पक्षियों को (ब्रूमः) = हम स्तुत करते हैं इनकी रचना व स्वभाव आदि का चिन्तन करते हैं। (ते) = वे सब (न:) = हमें (अंहसः मुञ्चन्तु) = पाप व कष्ट से मुक्त करें।

    भावार्थ -

    पशु-पक्षियों की गतिविधियों में हम प्रभु-महिमा को देखते हुए इनके हिंसनरूप पाप से बचें।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top