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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 3/ मन्त्र 12
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - चतुरवसाना सप्तपदा भुरिगतिधृतिः सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    बृ॒हद॒न्यतः॑ प॒क्ष आसी॑द्रथन्त॒रम॒न्यतः॒ सब॑ले स॒ध्रीची॑। यद्रोहि॑त॒मज॑नयन्त दे॒वाः। तस्य॑ दे॒वस्य॑ क्रु॒द्धस्यै॒तदागो॒ य ए॒वं वि॒द्वांसं॑ ब्राह्म॒णं जि॒नाति॑। उद्वे॑पय रोहित॒ प्र क्षि॑णीहि ब्रह्म॒ज्यस्य॒ प्रति॑ मुञ्च॒ पाशा॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृ॒हत् । अ॒न्यत॑: । प॒क्ष: । आसी॑त् । र॒थ॒म्ऽत॒रम् । अ॒न्यत॑: । सब॑ले॒ इति॒ सऽब॑ले । स॒ध्रीची॒ इति॑ । यत् । रोहि॑तम् । अज॑नयन्त । दे॒वा: । तस्य॑ । दे॒वस्य॑ ॥ क्रु॒ध्दस्य॑ । ए॒तत् । आग॑: । य: । ए॒वम् । वि॒द्वांस॑म् । ब्रा॒ह्म॒णम् । जि॒नाति॑ । उत् । वे॒प॒य॒ । रो॒हि॒त॒ । प्र । क्ष‍ि॒णी॒हि॒ । ब्र॒ह्म॒ऽज्यस्य॑ । प्रति॑ । मु॒ञ्च॒ । पाशा॑न् ॥३.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहदन्यतः पक्ष आसीद्रथन्तरमन्यतः सबले सध्रीची। यद्रोहितमजनयन्त देवाः। तस्य देवस्य क्रुद्धस्यैतदागो य एवं विद्वांसं ब्राह्मणं जिनाति। उद्वेपय रोहित प्र क्षिणीहि ब्रह्मज्यस्य प्रति मुञ्च पाशान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहत् । अन्यत: । पक्ष: । आसीत् । रथम्ऽतरम् । अन्यत: । सबले इति सऽबले । सध्रीची इति । यत् । रोहितम् । अजनयन्त । देवा: । तस्य । देवस्य ॥ क्रुध्दस्य । एतत् । आग: । य: । एवम् । विद्वांसम् । ब्राह्मणम् । जिनाति । उत् । वेपय । रोहित । प्र । क्ष‍िणीहि । ब्रह्मऽज्यस्य । प्रति । मुञ्च । पाशान् ॥३.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 3; मन्त्र » 12

    पदार्थ -

    १. (बृहत) = यह विशाल आकाश (अन्यतः पक्ष: आसीत्) = एक ओर का पक्ष है (अन्यतः रथन्तरम्) = यह पृथिवी दूसरी ओर का। ये दोनों (सध्रीची) = साथ-साथ चलनेवाले होते हुए (सबले) = बलयुक्त हैं। २. इस रूप में ब्रह्माण्ड को विद्वानों ने देखा (यत्) = जबकि (देवाः) = द्यावापृथिवी के अन्दर स्थित सूर्यादि देवों ने (रोहितम्) = उस सदा से वृद्ध प्रभु को (अजनयन्त) = प्रकट किया। संसार एक शकट है तो धुलोक उसका एक पक्ष है और पृथिवीलोक दूसरा । इस शकट का वहन करनेवाले 'अनड्वान्' प्रभु हैं। इसप्रकार से संसार को देखनेवाले ज्ञानियों का हनन एक महान् पाप है। शेष पूर्ववत्।

    भावार्थ -

    संसाररूप शकट का एक चक्र धुलोक है तो दूसरा चक्र यह पृथिवीलोक है। प्रभु इसका वहन कर रहे हैं। मिलकर गति करते हुए ये दोनों लोक अत्यन्त बलयुक्त हैं। इस अद्भुत शकट के स्वामी व नियन्ता प्रभु है। इनके द्रष्टा ब्रह्मज्ञानियों का हनन प्रभु के प्रति महान् पाप है।

    सूचना -

    शरीर में ये दोनों पक्ष 'प्राण और अपान' है। एक परिवार में ये 'पति व पत्नी' हैं। एक राष्ट्र में 'राजा व प्रजा' हैं। ये मिलकर चलने पर ही सबल होते हैं।

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