अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 3/ मन्त्र 26
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
कृ॒ष्णायाः॑ पु॒त्रो अर्जु॑नो॒ रात्र्या॑ व॒त्सोजा॑यत। स ह॒ द्यामधि॑ रोहति॒ रुहो॑ रुरोह॒ रोहि॑तः ॥
स्वर सहित पद पाठकृ॒ष्णाया॑: । पु॒त्र: । अर्जु॑न: । रात्र्या॑: । व॒त्स: । अ॒जा॒य॒त॒ । स: । ह॒ । द्याम् । अधि॑ । रो॒ह॒ति॒ । रुह॑: । रु॒रो॒ह॒ । रोहि॑त: ॥३.२६॥
स्वर रहित मन्त्र
कृष्णायाः पुत्रो अर्जुनो रात्र्या वत्सोजायत। स ह द्यामधि रोहति रुहो रुरोह रोहितः ॥
स्वर रहित पद पाठकृष्णाया: । पुत्र: । अर्जुन: । रात्र्या: । वत्स: । अजायत । स: । ह । द्याम् । अधि । रोहति । रुह: । रुरोह । रोहित: ॥३.२६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 3; मन्त्र » 26
विषय - 'कृष्णा ' का पुत्र 'अर्जुन' [रात्रि का पुत्र सूर्य]
पदार्थ -
१. [रात्रि कृष्णा शुक्लवत्सा, तस्या असावादित्यो वत्सः-शत० ९.२.३.३] कृष्णायाः रात्र्या:-इस कृष्ण वर्णवाली-चारों ओर अन्धकारमयी रात्रि का अर्जुनः पुत्रः श्वेत वर्ण का यह सन्तानरूप सूर्य (वत्सः) = प्रभु की महिमा का प्रतिपादन करनेवाला [बदति] (अजायत) = हुआ है। यह सूर्य सर्वत्र प्रकाश करता हुआ प्रभु की महिमा का प्रकाश कर रहा है। सूर्य प्रभु की सर्वमहति विभूति है। (सः ह) = यह सूर्य निश्चय से (द्यां अधिरोहति) = इस द्युलोक में आरोहण करता है। यह (रोहित:) = तेजस्वी सूर्य ही (रुहः सः रुरोह) = सब वनस्पतियों को प्रादुर्भूत करता है। सूर्य की किरणों के अभाव में बीज अंकुरित नहीं हो पाते। जहाँ सूर्य की किरण नहीं, वहाँ वनस्पति भी नहीं। सूर्य ही इनका प्रादुर्भाव करता हुआ इनमें प्राणदायी तत्त्वों का स्थापन करता है। यह सूर्य वस्तुतः प्रभु की अद्भुत महिमा का प्रतिपादन करता है।
भावार्थ -
यह भी प्रभु की अद्भुत महिमा है कि एकदम कृष्णवर्ण की रात्रि का पुत्र सन्तान श्वेत सूर्य होता है। यह सूर्य सब वनस्पतियों के प्रादुर्भाव का कारण बनता है। इस सूर्य में ज्ञानी पुरुष ब्रह्म की महिमा को देखता है। अथ चतुर्थोऽनुवाकः
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