अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 136/ मन्त्र 11
म॑हान॒ग्नी म॑हान॒ग्नं धाव॑न्त॒मनु॑ धावति। इ॒मास्तद॑स्य॒ गा र॑क्ष॒ यभ॒ माम॑द्ध्यौद॒नम् ॥
स्वर सहित पद पाठम॒हा॒न् । अ॒ग्नी इति॑ । म॑हान् । अ॒ग्नम् । धाव॑न्त॒म् । अनु॑ । धावति ॥ इ॒मा: । तत् । अ॑स्य॒ । गा: । र॑क्ष॒ । यभ॒ । माम् । अ॑द्धि॒ । औद॒नम् ॥११३६.११॥
स्वर रहित मन्त्र
महानग्नी महानग्नं धावन्तमनु धावति। इमास्तदस्य गा रक्ष यभ मामद्ध्यौदनम् ॥
स्वर रहित पद पाठमहान् । अग्नी इति । महान् । अग्नम् । धावन्तम् । अनु । धावति ॥ इमा: । तत् । अस्य । गा: । रक्ष । यभ । माम् । अद्धि । औदनम् ॥११३६.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 11
विषय - राजा पति है, प्रजा पत्नी
पदार्थ -
१. गतमन्त्र में वर्णित मुख्य राजपुरुष को प्रस्तुत मन्त्र में 'अग्न' कहा गया है-राष्ट्र को आगे और आगे ले-चलनेवाला। (महान्) = महनीय राजा (अग्नी) = सभा व समिति के सदस्यों के (अनुधावति) = पीछे तो जाता ही है, अर्थात् प्रत्येक कार्य में उनका परामर्श तो लेता ही है। यह (महान्) = महनीय राजा (धावन्तम्) = गति के द्वारा प्रजा के जीवन को शुद्ध करते हुए [धाव गतिशुद्धयोः] (अग्नम्) = इस मुख्य राजपुरुष को भी (अनुधावति) = अनुसृत करता है, अर्थात् इस मुख्य राजपुरुष के अनुकूल होता है। २. इस मुख्य राजपुरुष से प्रजाएँ कहती हैं कि (तत्) = सो (अस्य) = इस राजा की (इमा: गा:) = इन भूमियों का तू रक्ष-रक्षण कर । (माम् यभ) = मेरे साथ तेरा निवास हो [co-habit]| प्रजा पत्नी हो तो तू उसका पति बन। पति पत्नी की रक्षा करता है। इसी प्रकार यह मुख्य राजपुरुष प्रजा की रक्षा करनेवाला हो। प्रजारक्षक तू (ओदनम् अद्धि) = ओदन खानेवाला बन। उसी राजा को खाने का अधिकार है जो प्रजा का रक्षण करता है। राजा का भोजन भी सात्त्विक ही होना चाहिए। मांसभोजन राजा की वृत्ति को क्रूर बना देगा-यह राजा प्रजा पर अत्याचार करेगा।
भावार्थ - राजा मुख्य राजपुरुष के अनुकूल होता है। यह राजपुरुष राजा की भूमियों का रक्षण करता है। सदा सात्विक भोजन ही करता है।
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