अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 136/ मन्त्र 3
यद॑ल्पिका॒स्वल्पिका॒ कर्क॑न्धू॒केव॒ पद्य॑ते। वा॑सन्ति॒कमि॑व॒ तेज॑नं॒ यन्त्य॒वाता॑य॒ वित्प॑ति ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । अल्पि॑का॒सु । अ॑ल्पिका॒ । कर्क॑ऽधू॒के । अव॒ऽसद्यते ॥ वास॑न्ति॒कम्ऽइ॑व॒ । तेज॑न॒म् । यन्ति॒ । अ॒वाता॑य॒ । वित्प॑ति ॥१३६.३॥
स्वर रहित मन्त्र
यदल्पिकास्वल्पिका कर्कन्धूकेव पद्यते। वासन्तिकमिव तेजनं यन्त्यवाताय वित्पति ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । अल्पिकासु । अल्पिका । कर्कऽधूके । अवऽसद्यते ॥ वासन्तिकम्ऽइव । तेजनम् । यन्ति । अवाताय । वित्पति ॥१३६.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 3
विषय - गरीब-से-गरीब प्रजा का ध्यान
पदार्थ -
१. (यत्) = जब अल्पिकास (अल्पिका) = छोटों से भी छोटी, अर्थात् बहुत ही हीन अवस्था की प्रजा भी (कर्कन्धूके) = [कर्क fire, धूक-wind] आग या हवा में (अवपद्यते) = अवसन्न होती है, अर्थात् राष्ट्र में यदि गरीब-से-गरीब प्रजा भी आग या हवा के भयों से पीड़ित होती है तो राजपुरुष (इव) = जैस (वासन्तिकम्) = वसन्त ऋतु में होनेवाले (तेजनम्) = [Bamboo, reel] बाँसों व सरकण्डों की ओर (यन्ति) = जाते हैं, अर्थात् इन्हें एकत्र करके उन गरीब प्रजाओं के रहने व वायु आदि से बचाव के लिए झोपड़ियों का निर्माण कराते हैं, उसी प्रकार (अवाताय) = [अवात-unattacked] अग्नि, वायु आदि के आक्रमण न होने देने के लिए (वित्पति) = [विद् ज्ञाने, पत् गतौ] ज्ञान के साथ गति करनेवाले व्यक्ति में (यन्ति) = शरण लेते हैं। इन विद्वानों से अग्नि, वायु आदि के भयों से बचाव के लिए आवश्यक साधनों के प्रचार के लिए प्रार्थना करते हैं।
भावार्थ - राष्ट्र में अग्नि व वायु का उपद्रव होने पर राजपुरुषों द्वारा गरीब प्रजा के निवास के लिए झोपड़ियों का निर्माण करवाया जाए और विद्वानों से उन्हें उचित ढंग से रहने के लिए साधनों का ज्ञान प्राप्त कराया जाए।
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