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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 136

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 136/ मन्त्र 1
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    यद॑स्या अंहु॒भेद्याः॑ कृ॒धु स्थू॒लमु॒पात॑सत्। मु॒ष्काविद॑स्या एज॒तो गो॑श॒फे श॑कु॒लावि॑व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒स्या॒: । अंहु॒ऽभेद्या: । कृ॒धु । स्थू॒लम् । उ॒पऽअत॑सत् ॥ मु॒ष्कौ । इत् । अ॒स्या॒: । ए॒ज॒त॒: । गो॑ऽश॒फे । श॑कु॒लौऽइ॑व ॥१३६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदस्या अंहुभेद्याः कृधु स्थूलमुपातसत्। मुष्काविदस्या एजतो गोशफे शकुलाविव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अस्या: । अंहुऽभेद्या: । कृधु । स्थूलम् । उपऽअतसत् ॥ मुष्कौ । इत् । अस्या: । एजत: । गोऽशफे । शकुलौऽइव ॥१३६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    १. (यत्) = जो कोई भी (अंहुभेद्या:) = पाप का भेदन करनेवाली-पाप से दूर रहनेवाली (अस्या:) = इस प्रजा को (कृधु) = [हस्वम् नि० ३.२] थोड़ा-सा अथवा (स्थूलम्) = अधिक (उपातसत्) = क्षय करता है, अर्थात् प्रजा की छोटी व बड़ी चोरी करता है। चोर के रूप में सेंध लगाकर घर का सामान चुरा ले-जाता है, अथवा परिपन्थी के रूप में व्यापारी को मार्ग में ही रोककर लूट लेता है तो (अस्या:) = इस प्रजा के (मुष्कौ) = मोषण करनेवाले चोर (इत्) = निश्चय से (एजत:) = राजदण्डभय से कॉप उठते हैं। ये चोर इसप्रकार काँप उठते हैं, (इव) = जैसेकि (गोशफे) = गोखुर प्रमाण जल में (शकुलौ) = मछलियाँ काँप उठती है। २. प्रजा जब पापवृत्तिवाली नहीं होती तब चोरियाँ होती ही कम हैं और होती भी हैं तो कठोर राजदण्ड के भय से चोर काँप उठते हैं, फिर इस अशुभ मार्ग की ओर झुकाववाले नहीं होते।

    भावार्थ - प्रजा का झकाव पाप की ओर होने पर कठोर राजदण्डभय से चोर काँप उठते हैं। इसप्रकार राष्ट्र में छोटी व बड़ी चोरियों समाप्त हो जाती है।

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