अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 23/ मन्त्र 5
म॒तयः॑ सोम॒पामु॒रुं रि॒हन्ति॒ शव॑स॒स्पति॑म्। इन्द्रं॑ व॒त्सं न मा॒तरः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठम॒तय॑: । सो॒म॒ऽपाम् । उ॒रुम् । रि॒हन्ति॑ । शव॑स: । पति॑म् ॥ इन्द्र॑म् । व॒त्सम् । न । मा॒तर॑: ॥२३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
मतयः सोमपामुरुं रिहन्ति शवसस्पतिम्। इन्द्रं वत्सं न मातरः ॥
स्वर रहित पद पाठमतय: । सोमऽपाम् । उरुम् । रिहन्ति । शवस: । पतिम् ॥ इन्द्रम् । वत्सम् । न । मातर: ॥२३.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 23; मन्त्र » 5
विषय - सोमपा, उरूं, शवसस्पतिम्, इन्द्रम्
पदार्थ -
१. (मतयः) = हमसे की जानेवाली स्तुतियाँ उस (सोमपाम्) = सोम का रक्षण करनेवाले (उरुम्) = महान् (शवसस्पतिम्) = बल के स्वामी (इन्द्रम्) = सर्वशक्तिमान् प्रभु को (रिहन्ति) = [लिहन्ति] आस्वादित करती हैं-प्राप्त होती हैं। २. हमारी स्तुतियाँ प्रभु को इसप्रकार प्रास होती हैं, (न) = जैसेकि (मातरः) = धेनुएँ (वत्सम्) = बछड़े को अथवा माताएँ बच्चों को, अर्थात् हम बड़े प्रेम से प्रभु का स्तवन करते हैं।
भावार्थ - हम प्रेम से प्रभु-स्तवन करते हुए सोम का शरीर में रक्षण करें, हदय को विशाल बनाएँ, बल प्राप्त करें और परमैश्वर्यवाले हों।
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