अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 17/ मन्त्र 2
सूक्त - मयोभूः
देवता - ब्रह्मजाया
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
सोमो॒ राजा॑ प्रथ॒मो ब्र॑ह्मजा॒यां पुनः॒ प्राय॑च्छ॒दहृ॑णीयमानः। अ॑न्वर्ति॒ता वरु॑णो मि॒त्र आ॑सीद॒ग्निर्होता॑ हस्त॒गृह्या नि॑नाय ॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑: । राजा॑ । प्र॒थ॒म: । ब्र॒ह्म॒ऽजा॒याम् । पुन॑: । प्र । अ॒य॒च्छ॒त् । अहृ॑णीयमान: । अ॒नु॒ऽअ॒र्ति॒ता । वरु॑ण: । मि॒त्र: । आ॒सी॒त् । अ॒ग्नि: । होता॑ । ह॒स्त॒ऽगुह्य॑ । आ । नि॒ना॒य॒ ॥१७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमो राजा प्रथमो ब्रह्मजायां पुनः प्रायच्छदहृणीयमानः। अन्वर्तिता वरुणो मित्र आसीदग्निर्होता हस्तगृह्या निनाय ॥
स्वर रहित पद पाठसोम: । राजा । प्रथम: । ब्रह्मऽजायाम् । पुन: । प्र । अयच्छत् । अहृणीयमान: । अनुऽअर्तिता । वरुण: । मित्र: । आसीत् । अग्नि: । होता । हस्तऽगुह्य । आ । निनाय ॥१७.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
विषय - हस्तगृह्या निनाय
पदार्थ -
१. जीव यद्यपि प्रभु को भूल जाता है तो भी प्रभु उसपर (अहृणीयमानः) क्रोध नहीं करते [हणीयते-to be Angry]| प्रभु राजा-शासक है, परन्तु (सोमः) = अत्यन्त सौम्य हैं, शान्त है। (प्रथम:) = वे अधिक-से-अधिक विस्तारवाले [सर्वव्यापक] हैं। प्रभु इस व्यक्ति के लिए (ब्रह्मजायां पुनः प्रायच्छत) = वेदवाणीरूप पत्नी को फिर से प्राप्त कराते हैं। २. वे प्रभु (वरुण:) = सब बुराइयों का निवारण करनेवाले, (मित्र:) = मृत्यु व पाप से बचानेवाले हैं। वे प्रभु रक्षा के लिए (अन्वर्तिता आसीत्) = हमारे पीछे-पीछे आनेवाले हैं। माता छोटे बच्चे के साथ-साथ चलती है, ताकि गिरने लगे तो वह उसे बचा ले। इसीप्रकार ये वरुण व मित्र प्रभु हमारे साथ-साथ चल रहे हैं। वे होता-सब साधनों के देनेवाले (अग्नि:) = अग्रणी प्रभु (हस्तगृह्या) = हाथ से पकड़कर (निनाय) = मार्ग पर ले-चलते हैं। माता जिस प्रकार बालक की अंगुली पकड़कर चलाती है, उसी प्रकार प्रभु इसे आश्रय देकर आगे ले-चलते हैं।
भावार्थ -
प्रभु शासक होते हुए भी क्रोध नहीं करते। वे प्ररेणा व आश्रय देकर हमें आगे ले-चलते हैं।
इस भाष्य को एडिट करें