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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 17

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 17/ मन्त्र 13
    सूक्त - मयोभूः देवता - ब्रह्मजाया छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त

    न वि॑क॒र्णः पृ॒थुशि॑रा॒स्तस्मि॒न्वेश्म॑नि जायते। यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । वि॒ऽक॒र्ण: । पृ॒थु॒ऽशि॑रा: । तस्मि॑न् । वेश्म॑नि । जा॒य॒ते॒ । यस्मि॑न् । रा॒ष्ट्रे । नि॒ऽरु॒ध्यते॑ । ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या । अचि॑त्त्या ॥१७.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न विकर्णः पृथुशिरास्तस्मिन्वेश्मनि जायते। यस्मिन्राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्त्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । विऽकर्ण: । पृथुऽशिरा: । तस्मिन् । वेश्मनि । जायते । यस्मिन् । राष्ट्रे । निऽरुध्यते । ब्रह्मऽजाया । अचित्त्या ॥१७.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 17; मन्त्र » 13

    पदार्थ -

    १. (यस्मिन् राष्ट्र) = जिस राष्ट्र में (अचित्या) = नासमझी के कारण (ब्रह्मजाया) = प्रभु से प्रादुर्भूत की गई [ब्रह्मण: जायते] यह वेदवाणी (निरुध्यते) = रोकी जाती है, अर्थात् जहाँ वेदज्ञान का प्रचार नहीं होता, वहाँ (अस्य) = इस ब्रह्मजाया का निरोध करनेवाले पुरुष की (जाया) = पत्नी जो शतवाही-घर के सैकड़ों कार्यों को करनेवाली व (कल्याणी) = मङ्गल-साधिका होनी चाहिए थी, वह (न तल्पम् आश्ये) = अपने बिछौने पर नहीं सोती, अर्थात् वह सती न रहकर स्वैरिणी बन जाती है, तब शतवाहीत्व और कल्याणीत्व का तो प्रसङ्ग ही नहीं रहता। २. इसीप्रकार जिस घर में वेदाध्ययन की परिपाटी नहीं रहती (तस्मिन् वेश्मनि) = उस घर में (विकर्ण:) = विशिष्ट श्रोत्रशक्तिवाला-शास्त्रों का खुब ही श्रवण करनेवाला (पृथुशिरा:) = विशाल मस्तिष्कवाला सन्तान (न जायते) = उत्पन्न नहीं होता। माता-पिता जब अध्ययन ही नहीं करेंगे तब सन्तान ज्ञान की रुचिवाले कैसे होंगे?

    भावार्थ -

    जिन घरों में वेदाध्ययन की परिपाटी नहीं रहती, वहाँ स्त्रियों का आचरण ठीक नहीं रहता और सन्तान पठन की रुचिवाले नहीं होते, निर्बल-मस्तिष्क सन्तान उत्पन्न होते हैं।

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