अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 17/ मन्त्र 16
सूक्त - मयोभूः
देवता - ब्रह्मजाया
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
नास्य॒ क्षेत्रे॑ पुष्क॒रिणी॑ ना॒ण्डीकं॑ जायते॒ बिस॑म्। यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
स्वर सहित पद पाठन । अ॒स्य॒ । क्षेत्रे॑ । पु॒ष्क॒रिणी॑ । न । आ॒ण्डीक॑म् । जा॒य॒ते॒ । बिस॑म् । यस्मि॑न् । रा॒ष्ट्रे । नि॒ऽरु॒ध्यते॑ । ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या । अचि॑त्त्या ॥१७.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
नास्य क्षेत्रे पुष्करिणी नाण्डीकं जायते बिसम्। यस्मिन्राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्त्या ॥
स्वर रहित पद पाठन । अस्य । क्षेत्रे । पुष्करिणी । न । आण्डीकम् । जायते । बिसम् । यस्मिन् । राष्ट्रे । निऽरुध्यते । ब्रह्मऽजाया । अचित्त्या ॥१७.१६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 17; मन्त्र » 16
विषय - मद्यशाला नकि पुष्करिणी
पदार्थ -
१. (यस्मिन् राष्ट्र) = जिस राष्ट्र में (अचित्या) = नासमझी के कारण (बह्मजाया निरुध्यते) = प्रभु से प्रादुर्भूत की गई यह वेदवाणी रोकी जाती है, (अस्य क्षेत्रे) = इस राष्ट्र के खेतों में (पुष्करिणी) = कमलोंवाले तलाब (न जायते) = नहीं होते तथा (आण्डीकं बिसम्) = बीजों से युक्त भिस व कमलकन्द नहीं होते, अर्थात् इस राष्ट्र में कमल आदि का उत्पादन न होकर तम्बाकू आदि की खेती होने लगती है। २. इसीप्रकार जिस राष्ट्र में वेदज्ञान के प्रसार की व्यवस्था नहीं होती, उस राष्ट्र के राजा के लिए (पश्नि न विदुहन्ति) = इस वेदवाणी का-ज्ञान-रश्मियों के सम्पर्कवाले ग्रन्थों का दोहन वे लोग नहीं करते (ये) = जोकि (अस्या) = इसके (दोहम्) = दुग्ध का (उपासते) = उपासन करते हैं, अर्थात् ज्ञानी पुरुष इस राजा को ज्ञान देने के लिए यत्नशील नहीं होते। राजा ज्ञान की रुचिवाला न होने से ज्ञान का पात्र ही नहीं रहता।
भावार्थ -
जिस राष्ट्र में ज्ञान का प्रसार नहीं होगा, वहाँ लोग पुष्करिणियों के निर्माण के स्थान में मद्यशालाओं का निर्माण करेंगे, कमलों का स्थान तम्बाकू ले-लेगा। राजा ज्ञानियों से घिरा हुआ होने के स्थान में खुशमदियों में घिरा हुआ होगा।
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