यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 11
दे॒वस्य॒ चेत॑तो म॒हीं प्र स॑वि॒तुर्ह॑वामहे। सु॒म॒तिꣳ स॒त्यरा॑धसम्॥११॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वस्य॑। चेत॑तः। म॒हीम्। प्र। स॒वि॒तुः। ह॒वा॒म॒हे॒। सु॒म॒तिमिति॑ सुऽम॒तिम्। स॒त्यरा॑धसमिति॑ स॒त्यऽरा॑धसम् ॥११ ॥
स्वर रहित मन्त्र
देवस्य चेततो महीम्प्र सवितुर्हवामहे । सुमतिँ सत्यराधसम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
देवस्य। चेततः। महीम्। प्र। सवितुः। हवामहे। सुमतिमिति सुऽमतिम्। सत्यराधसमिति सत्यऽराधसम्॥११॥
विषय - हिरण्यपाणि सविता । आज्ञापक का स्वरूप।
भावार्थ -
(सवितुः) सबके शासक, (चेततः) सबको चैतन्य अर्थात् सावधान करने वाले ज्ञानी, (देवस्य) दानशील राजा की ( महीम् ) बड़ी भारी (सत्यराधसम् ) सत्य, धर्मानुकूल ऐश्वर्यं देने वाली ( सुमतिम् ) उत्तम मति, शासन शक्ति की (प्र हवामहे) हम स्तुति करते हैं ।
ईश्वर पक्ष में – चित्स्वरूप, सर्वोत्पादक परमेश्वर देव के सत्य ज्ञान, ऐश्वर्ययुक्त उत्तम ज्ञानमयी वेदवाणी की याचना करते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गायत्री । षड्जः ।।
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal