यजुर्वेद - अध्याय 22/ मन्त्र 31
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - मासा देवताः
छन्दः - भुरिगत्यष्टिः
स्वरः - गान्धारः
1
मध॑वे॒ स्वाहा॒ माध॑वाय॒ स्वाहा॑ शु॒क्राय॒ स्वाहा॒ शुच॑ये॒ स्वाहा॒ नभ॑से॒ स्वाहा॑ नभ॒स्याय॒ स्वाहे॒षाय॒ स्वाहो॒र्जाय॒ स्वाहा॒ सह॑से॒ स्वाहा॑ सह॒स्याय॒ स्वाहा॒ तप॑से॒ स्वाहा॑ तप॒स्याय॒ स्वाहा॑हसस्प॒तये॒ स्वाहा॑॥३१॥
स्वर सहित पद पाठमध॑वे। स्वाहा॑। माध॑वाय। स्वाहा॑। शु॒क्राय॑। स्वाहा॑। शुच॑ये। स्वाहा॑। नभ॑से। स्वाहा॑। न॒भ॒स्या᳖य। स्वाहा॑। इ॒षाय॑। स्वाहा॑। ऊ॒र्जाय॑। स्वाहा॑। सह॑से। स्वाहा॑। सह॒स्या᳖य। स्वाहा। तप॑से। स्वाहा॑। त॒प॒स्या᳖य। स्वाहा॑। अ॒ꣳह॒सः॒प॒तये॑। स्वाहा॑ ॥३१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मधवे स्वाहा माधवाय स्वाहा शुक्राय स्वाहा शुचये स्वाहा नभसे स्वाहा नभस्याय स्वाहाहेषाय स्वाहोर्जाय स्वाहा सहसे स्वाहा सहस्याय स्वाहा तपसे स्वाहा तपस्याय स्वाहाँहसस्पतये स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
मधवे। स्वाहा। माधवाय। स्वाहा। शुक्राय। स्वाहा। शुचये। स्वाहा। नभसे। स्वाहा। नभस्याय। स्वाहा। इषाय। स्वाहा। ऊर्जाय। स्वाहा। सहसे। स्वाहा। सहस्याय। स्वाहा। तपसे। स्वाहा। तपस्याय। स्वाहा। अꣳहसःपतये। स्वाहा॥३१॥
विषय - नक्षत्र आदि के सुखकारी होने की भावना ।
भावार्थ -
(मघवे स्वाहा) मधुरादि गुणों के उत्पादक 'मधु' नाम चैत्र को हम सुखकारी बनावें । इसी प्रकार ( माधवाय, शुक्राय, शुचये, नभसे, नभस्याय, इषाय, ऊर्जाय, सहसे, सहस्याय, तपसे, तपस्याय, स्वाहा ) वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्र, आश्विन, कार्त्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन इन समस्त मासों को हम सुखकारी बनायें और (अंहसः पतये स्वाहा ) सब मासों में अवशिष्ट तिथियों के रूप में सटे हुए काल के पालक,१३ वें मल मास को भी हम सुखदायी बनावें । इसके अतिरिक्त संवत्सर के समान प्रजापति के ये द्वादश मासों के समान द्वादश अधिकारी और तदनुसार प्रजापति राजा के १३ स्वरूपों के भी क्रम से ये नाम हैं ।
मधुर स्वभाव होने से 'मधु', अन्न आदि मधु या उनका उत्पादक प्रबन्धक 'माधव' शुद्धि करने एवं तेजस्वी होने से 'शुक्र', ज्योतिष्मान्, सत्य व्यवहारवान् होने से 'शुचि', जलवर्षक होने या सबको बांधने वाला प्रबन्धक होने से 'नभस्', उस कार्य में उत्तम सहायक 'नभस्य' अन्नोत्पादक होने से 'इप', बलोत्पादक या पराक्रमी होने से 'ऊर्ज', शत्रुदमनकारी बलवान् ‘सहस्’, उसका उत्तम सहयोगी 'सहस्य' शत्रुतापक 'तपस्', उसका उत्तम सहयोगी 'तपस्य' और पापी पुरुषों का अध्यक्ष जेलर 'अंहसस्पति' ये राजपदाधिकारी समझने चाहियें । उनका उत्तम आदर हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - मध्वादयो देवताः । भुरिगत्यष्टिः । गान्धारः ॥
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