अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 4/ मन्त्र 22
सूक्त - चातनः
देवता - इन्द्रासोमौ, अर्यमा
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुदमन सूक्त
उलू॑कयातुं शुशु॒लूक॑यातुं ज॒हि श्वया॑तुमु॒त कोक॑यातुम्। सु॑प॒र्णया॑तुमु॒त गृध्र॑यातुं दृ॒षदे॑व॒ प्र मृ॑ण॒ रक्ष॑ इन्द्र ॥
स्वर सहित पद पाठउलू॑कऽयातुम् । शु॒शु॒लूक॑ऽयातुम् । ज॒हि । श्वऽया॑तुम् । उ॒त । कोक॑ऽयातुम् । सु॒प॒र्णऽया॑तुम् । उ॒त । गृध्र॑ऽयातुम् । दृ॒षदा॑ऽइव । प्र । मृ॒ण॒ । रक्ष॑: । इ॒न्द्र॒ ॥४.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
उलूकयातुं शुशुलूकयातुं जहि श्वयातुमुत कोकयातुम्। सुपर्णयातुमुत गृध्रयातुं दृषदेव प्र मृण रक्ष इन्द्र ॥
स्वर रहित पद पाठउलूकऽयातुम् । शुशुलूकऽयातुम् । जहि । श्वऽयातुम् । उत । कोकऽयातुम् । सुपर्णऽयातुम् । उत । गृध्रऽयातुम् । दृषदाऽइव । प्र । मृण । रक्ष: । इन्द्र ॥४.२२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 4; मन्त्र » 22
विषय - दुष्ट प्रजाओं का दमन।
भावार्थ -
हे (इन्द्र) राजन् ! (दृषदा) जिस प्रकार पत्थर से मिट्टी का बर्त्तन तोड़ डाला जाता है उसी प्रकार तू (उलूक-यातुम्) उल्लुओं के समान चाल चलनेवाले, रात के समय लोगों पर छापा मारने वाले (शुशुलूक-यातुम्) छोटे उल्लू के समान चाल चलने वाले, अप्रत्यक्ष में कर्ण कटु बोलने वाले और जन्तुओं की आंखें निकालने वाले या उनकी आंखों में धूल झोंकने वाले, चुगलखोर, (श्व-यातुम्) कुत्तों के समान चाल चलने वाले, कमज़ोरों पर गुर्रा गुर्रा कर उनको फाड़ खा जाने वाले (उत) और (कोक-यातुम्) भेड़िये के समान चाल चलने वाले, पीछे से आक्रमण करके निर्दयता से लूटने पीटने वाले, (सुपर्णयातुम्) बाज के समान चाल चलनेवाले, अपने से कमज़ोरों पर टूटकर उनके बच्चों और जान माल को लूट खसोटने वाले और (गृध्र-यातुम्) गीध के समान चाल चलने वाले, मरते सिसकतों की भी खाल खैंचने या उनपर अत्याचार करके उनका धनापहरण करने वालों को (प्र मृण) अच्छी प्रकार विनष्ट कर, उनको दण्ड दे और उनका बल तोड़ डाल।
टिप्पणी -
‘शिशुलूकयातु’ इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - चातन ऋषिः। इन्द्रासोमौ देवते। रक्षोहणं सूक्तम्। १-३, ५, ७, ८, २१, २४ विराट् जगती। ८-१७, १९, २२, २४ त्रिष्टुभः। २०, २३ भृरिजौ। २५ अनुष्टुप्। पञ्चविंशर्चं सूक्तम्॥
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