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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 12
    सूक्त - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - पञ्चपदा विराडतिशक्वरी सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त

    मधु॑म॒न्मूलं॒ मधु॑म॒दग्र॑मासां॒ मधु॑म॒न्मध्यं॑ वी॒रुधां॑ बभूव। मधु॑मत्प॒र्णं मधु॑म॒त्पुष्प॑मासां॒ मधोः॒ सम्भ॑क्ता अ॒मृत॑स्य भ॒क्षो घृ॒तमन्नं॑ दुह्रतां॒ गोपु॑रोगवम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधु॑ऽमत् । मूल॑म् । मधु॑ऽमत् । अग्र॑म् । आ॒सा॒म् । मधु॑ऽमत् । मध्य॑म् । वी॒रुधा॑म् । ब॒भू॒व॒ । मधु॑ऽमत् । प॒र्णम् । मधु॑ऽमत् । पुष्प॑म् । आ॒सा॒म् । मधो॑: । सम्ऽभ॑क्ता: । अ॒मृत॑स्य । भ॒क्ष: । घृ॒तम् । अन्न॑म् । दु॒ह॒ता॒म् । गोऽपु॑रोगवम् ॥७.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधुमन्मूलं मधुमदग्रमासां मधुमन्मध्यं वीरुधां बभूव। मधुमत्पर्णं मधुमत्पुष्पमासां मधोः सम्भक्ता अमृतस्य भक्षो घृतमन्नं दुह्रतां गोपुरोगवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मधुऽमत् । मूलम् । मधुऽमत् । अग्रम् । आसाम् । मधुऽमत् । मध्यम् । वीरुधाम् । बभूव । मधुऽमत् । पर्णम् । मधुऽमत् । पुष्पम् । आसाम् । मधो: । सम्ऽभक्ता: । अमृतस्य । भक्ष: । घृतम् । अन्नम् । दुहताम् । गोऽपुरोगवम् ॥७.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 12

    भावार्थ -
    (आसाम्) इन (वीरुधाम्) ओषधियों का (मूलम्) मूल (मधुमत्) मधु के समान मधुर रसयुक्त है, (आसां अग्नं मधुमत्) इन ओषधियों का अग्रभाग, कोंपल मधुर रस से युक्त है, (आसां मध्यं मधुमत्) इन ओषधियों का मध्यभाग मधुर रस से युक्त (बभूव) होता है, इसी प्रकार (आसां पर्णं मधुमत्) इन ओषधियों का पत्ता मधुरस से युक्त होता है, (आसां पुष्पं मधुमत्) इन का फूल मधुरस से युक्त होता है, इस कारण से ये सब ओषधियें (मधोः संभक्ताः) मधु, अमृत से सिची हुई हैं, इनमें मधु का अंश सर्वत्र व्यापक है। इससे ये अमृतमय ओषधियें (अमृतस्य भक्षः) अमृत के बने भोजन के समान दीर्घायुप्रद हैं। हे पुरुषो ! ये ओषधियां ही खाद्य पदार्थ (घृतम्) घी आदि (अन्नम्) अन्न को (दुहताम्) पूर्ण करतीं, बढ़ातीं और प्रदान करती हैं, जिन में (गोपुरोगवम्) गाय का दूध सब से मुख्य है। नाना प्रकार की ओषधियां हैं जिन में से किसी की जड़ मधुर, किसी की कोंपल, किसी का पत्ता, किसी का फूल, फलतः इन में मधु मानो नाना प्रकार से प्राप्त है। यही सब अमृत का भोजन है, घी, अन्न और दूध, जिन में दूध सबसे मुख्य है। ये ओषधियां ही ये सब भोजन हम को प्राप्त करावें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः ओषधयो देवता। १, ७, ९, ११, १३, १६, २४, २७ अनुष्टुभः। २ उपरिष्टाद् भुरिग् बृहती। ३ पुर उष्णिक्। ४ पञ्चपदा परा अनुष्टुप् अति जगती। ५,६,१०,२५ पथ्या पङ्क्तयः। १२ पञ्चपदा विराड् अतिशक्वरी। १४ उपरिष्टान्निचृद् बृहती। २६ निचृत्। २२ भुरिक्। १५ त्रिष्टुप्। अष्टाविंशर्चं सूक्तम्।

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