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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 12
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - पञ्चपदा विराडतिशक्वरी सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
    55

    मधु॑म॒न्मूलं॒ मधु॑म॒दग्र॑मासां॒ मधु॑म॒न्मध्यं॑ वी॒रुधां॑ बभूव। मधु॑मत्प॒र्णं मधु॑म॒त्पुष्प॑मासां॒ मधोः॒ सम्भ॑क्ता अ॒मृत॑स्य भ॒क्षो घृ॒तमन्नं॑ दुह्रतां॒ गोपु॑रोगवम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधु॑ऽमत् । मूल॑म् । मधु॑ऽमत् । अग्र॑म् । आ॒सा॒म् । मधु॑ऽमत् । मध्य॑म् । वी॒रुधा॑म् । ब॒भू॒व॒ । मधु॑ऽमत् । प॒र्णम् । मधु॑ऽमत् । पुष्प॑म् । आ॒सा॒म् । मधो॑: । सम्ऽभ॑क्ता: । अ॒मृत॑स्य । भ॒क्ष: । घृ॒तम् । अन्न॑म् । दु॒ह॒ता॒म् । गोऽपु॑रोगवम् ॥७.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधुमन्मूलं मधुमदग्रमासां मधुमन्मध्यं वीरुधां बभूव। मधुमत्पर्णं मधुमत्पुष्पमासां मधोः सम्भक्ता अमृतस्य भक्षो घृतमन्नं दुह्रतां गोपुरोगवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मधुऽमत् । मूलम् । मधुऽमत् । अग्रम् । आसाम् । मधुऽमत् । मध्यम् । वीरुधाम् । बभूव । मधुऽमत् । पर्णम् । मधुऽमत् । पुष्पम् । आसाम् । मधो: । सम्ऽभक्ता: । अमृतस्य । भक्ष: । घृतम् । अन्नम् । दुहताम् । गोऽपुरोगवम् ॥७.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (आसाम् वीरुधाम्) इन ओषधियों का (मूलम्) मूल (मधुमत्) मधुर, (अग्रम्) सिरा (मधुमत्) मधुर, (मध्यम्) मध्य (मधुमत्) मधुर, (पर्णम्) पत्र (मधुमत्) मधुर, (पुष्पम्) फूल (मधुमत्) मधुर (बभूव) हुआ था, (आसाम्) इनका (अमृतस्य) अमृत का (भक्षः) भोजन [है], (मधोः) मधुरता में (संभक्ताः) पूरी तत्पर वे [ओषधें] (गोपुरोगवम्) गौ को अग्रगामी [प्रधान] रखनेवाले (घृतम्) घी, और (अन्नम्) अन्न को (दुह्रताम्) भरपूर करें ॥१२॥

    भावार्थ

    मनुष्य अन्न, तृण आदि ओषधियों के भागों के गुणों से यथावत् उपकार लेकर गौ आदि जीवों की रक्षा करके घृत अन्न आदि परिपूर्ण करें ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(मधुमत्) माधुर्योपेतम् (मूलम्) (अग्रम्) उपरिभागः (पर्णम्) पत्रम् (पुष्पम्) पुष्प विकाशे-अच्। कुसुमः (मधोः) मधुनः। माधुर्य्यस्य (संभक्ताः) भज सेवायाम्-क्त। सम्यक् तत्पराः (अमृतस्य) अमरणस्य (भक्षः) भक्ष अदने-घञ्। भोजनम् (घृतम्) आज्यम् (अन्नम्) (दुह्रताम्) अ० ७।८२।६। प्रपूरयन्तु (गोपुरोगवम्) गमेर्डोः। उ० २।६७। गम्लृ गतौ-डो। गच्छतीति गौः। गोरतद्धितलुकि। पा० ५।४।९२। पुरोगो−टच्। पुरोगच्छतीति पुरोगवः। गावो धेनवः पुरोगव्यः प्रधाता यस्य तत्। अन्यत् स्पष्टम् ॥

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    विषय

    मधोः संभक्ता

    पदार्थ

    १. (आसां वीरुधाम्) = इन ओषधिभूत वीरुधों [बेलों] का (मूलं मधुमत्) = मूल माधुर्यवाला है, (अगं मधुमत्) = अग्रभाग माधुर्यवाला है, (मध्यं मधुवत् बभूव) = मध्यभाग भी माधुर्यवाला है। (आसाम्) = इनका (पर्णम्) = पत्ता भी (मधुमत्) = माधुर्यवाला है, (पुष्पं मधुमत्) = फूल भी माधुर्य को लिये हुए हैं। ये वीरुध तो (मधो: संभक्ताः) = मधु से संभक्त है-सम्यक् सेवित हुई हैं। २. इन वीरुधों में मधु का अशं सर्वत्र व्यापक है, अत: ये अमृतमय ओषधियाँ (अमृतस्य भक्ष:) = अमृतमय भोजन हैं। अमृत के बने भोजन के समान दीर्घ आयुप्रद हैं। ये ओषधियों (गो-पुरोगवम्) = गाय जिसमें अग्रगामी हैं-सबसे प्रथम स्थान में रक्खी हैं, ऐसे (घृतं अन्नं दुहताम्) = घृत और अन्न का हमारे लिए दोहन करें। इन ओषधियों का सेवन करनेवाली गौओं से हमें दूध और घी प्राप्त हो तथा ये ओषधियाँ तथा वनस्पतियाँ हमारा उत्तम अन्न बने।

    भावार्थ

    प्रभु से उत्पादित ओषधियों का मूल, मध्य व अग्नभाग, इनके पत्ते व फूल सब मधु के समान मधुर-[गुणकारी]-रस से परिपूर्ण है। ये मधुसिक्त ओषधियाँ हमें गोदुग्ध के साथ घृत व अन्न प्राप्त करानेवाली हों।

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    भाषार्थ

    (आसाम्, वीरुधाम्) इन विरोहणशील लता आदि का (मूलम्, मधुमत्) मूल अर्थात् जड़ मधुर, (अग्रम्) अगला भाग (मधुमत्) मधुर, (मध्यम्, मधुमत्) मध्यभाग मधुर (बभूव) हुआ है। (आसाम्) इन का (मधुमत् पर्णम्) पत्ता मधुर, (पुष्पम् मधुमत्) फूल मधुर है; (मधोः संभक्ता) मधु-भीनी तथा मधु देने वाली ये ओषधियां (अमृतस्य भक्षः) अमृतभोजन रूप हैं, ये ओषधियां (गोपुरोगवम्) गोदुग्ध जिन मे अग्रगामी है ऐसे (घृतम्, अन्नम्) घी और अन्न का (दुह्रताम्) दोहन करें, प्रदान करें।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में घृत, अन्न, तथा गोदुग्ध को अमृतभोजन कहा है। इन में भी गोदुग्ध सर्वश्रेष्ठ है। गोपुरोगवम् = गो (दुग्ध) + पुरः, गवम्)। यथा "अथाप्यस्यां ताद्धितेन कृत्स्नवन्निगमा भवन्ति "गोभिः श्रीणीत मत्सरम्" (ऋ० ९।४६।४) इति पयसः" (निरुक्त २।२।५)। सभी ओषधियों के अङ्ग-प्रत्यङ्ग, यद्यपि आस्वादन में मधुमत् नहीं होते, परन्तु यतः इन का सेवन, मधुर परिणामी होता है, अतः इनका वर्णन मधुमत् रूप में हुआ है]

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    विषय

    औषधि विज्ञान।

    भावार्थ

    (आसाम्) इन (वीरुधाम्) ओषधियों का (मूलम्) मूल (मधुमत्) मधु के समान मधुर रसयुक्त है, (आसां अग्नं मधुमत्) इन ओषधियों का अग्रभाग, कोंपल मधुर रस से युक्त है, (आसां मध्यं मधुमत्) इन ओषधियों का मध्यभाग मधुर रस से युक्त (बभूव) होता है, इसी प्रकार (आसां पर्णं मधुमत्) इन ओषधियों का पत्ता मधुरस से युक्त होता है, (आसां पुष्पं मधुमत्) इन का फूल मधुरस से युक्त होता है, इस कारण से ये सब ओषधियें (मधोः संभक्ताः) मधु, अमृत से सिची हुई हैं, इनमें मधु का अंश सर्वत्र व्यापक है। इससे ये अमृतमय ओषधियें (अमृतस्य भक्षः) अमृत के बने भोजन के समान दीर्घायुप्रद हैं। हे पुरुषो ! ये ओषधियां ही खाद्य पदार्थ (घृतम्) घी आदि (अन्नम्) अन्न को (दुहताम्) पूर्ण करतीं, बढ़ातीं और प्रदान करती हैं, जिन में (गोपुरोगवम्) गाय का दूध सब से मुख्य है। नाना प्रकार की ओषधियां हैं जिन में से किसी की जड़ मधुर, किसी की कोंपल, किसी का पत्ता, किसी का फूल, फलतः इन में मधु मानो नाना प्रकार से प्राप्त है। यही सब अमृत का भोजन है, घी, अन्न और दूध, जिन में दूध सबसे मुख्य है। ये ओषधियां ही ये सब भोजन हम को प्राप्त करावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः ओषधयो देवता। १, ७, ९, ११, १३, १६, २४, २७ अनुष्टुभः। २ उपरिष्टाद् भुरिग् बृहती। ३ पुर उष्णिक्। ४ पञ्चपदा परा अनुष्टुप् अति जगती। ५,६,१०,२५ पथ्या पङ्क्तयः। १२ पञ्चपदा विराड् अतिशक्वरी। १४ उपरिष्टान्निचृद् बृहती। २६ निचृत्। २२ भुरिक्। १५ त्रिष्टुप्। अष्टाविंशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    Honey sweet is the root of these herbs and plants, honeyed their germination, honeyed their middle part, honeyed their leaf, honeyed the flower. Soaked in honey, nectar their food and nectar they as food, may they give us nutriments for life, cow’s milk first and supreme, ghrta and food.

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    Translation

    The root of these plants is rich in sweetness; rich in sweetness is their top, and rich in sweetness their middle. Their leaf is sweet and the flower sweet. Born (sam- bhakta) of sweetness, they are food for immortality. May they yield purified butter and food, preceded by cows.

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    Translation

    The root of these herb is sweet, the top-portion of them is. sweet, the interim portion of them is sweet, the leaf of them is sweet, the flower of them is also sweet, these are combined with sweet these are the food filled with nectar or immortality and let them make the ghee and cereal preparations of which the milk of cow is first and best, wholesome (when mixed in them).

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    Translation

    Sweet is their root, sweet are these plants, top branches, sweet also is their intermediate portion; sweet is their foliage, and sweet their blossom. All these plants are combined with sweetness. They conduce to longevity. They bestow butter and food, of which all the cow’s milk is the best.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(मधुमत्) माधुर्योपेतम् (मूलम्) (अग्रम्) उपरिभागः (पर्णम्) पत्रम् (पुष्पम्) पुष्प विकाशे-अच्। कुसुमः (मधोः) मधुनः। माधुर्य्यस्य (संभक्ताः) भज सेवायाम्-क्त। सम्यक् तत्पराः (अमृतस्य) अमरणस्य (भक्षः) भक्ष अदने-घञ्। भोजनम् (घृतम्) आज्यम् (अन्नम्) (दुह्रताम्) अ० ७।८२।६। प्रपूरयन्तु (गोपुरोगवम्) गमेर्डोः। उ० २।६७। गम्लृ गतौ-डो। गच्छतीति गौः। गोरतद्धितलुकि। पा० ५।४।९२। पुरोगो−टच्। पुरोगच्छतीति पुरोगवः। गावो धेनवः पुरोगव्यः प्रधाता यस्य तत्। अन्यत् स्पष्टम् ॥

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