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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 22
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
    49

    तस्या॒मृत॑स्ये॒मं बलं॒ पुरु॑षं पाययामसि। अथो॑ कृणोमि भेष॒जं यथास॑च्छ॒तहा॑यनः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्य॑ । अ॒मृत॑स्य । इ॒मम्। बल॑म् । पुरु॑षम् । पा॒य॒या॒म॒सि॒ । अथो॒ इति॑ । कृ॒णो॒मि॒ । भे॒ष॒जम् । यथा॑ । अस॑त् । श॒तऽहा॑यन: ॥७.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्यामृतस्येमं बलं पुरुषं पाययामसि। अथो कृणोमि भेषजं यथासच्छतहायनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्य । अमृतस्य । इमम्। बलम् । पुरुषम् । पाययामसि । अथो इति । कृणोमि । भेषजम् । यथा । असत् । शतऽहायन: ॥७.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (तस्य) उस (अमृतस्य) अमर [पुष्टिकारक मेघ] का (बलम्) बल [सार] (इमम् पुरुषम्) इस पुरुष को (पाययामसि) हम पिलाते हैं। (अथो) और (भेषजम्) चिकित्सा (कृणोमि) करता हूँ (यथा) जिससे वह (शतहायनः) सौ वर्षवाला (असत्) होवे ॥२२॥

    भावार्थ

    मनुष्य मेघ से उत्पन्न हुए पदार्थ अन्न आदि का सेवन करके पूरा जीवन भोगें ॥२२॥

    टिप्पणी

    २२−(तस्य) पूर्वोक्तस्य (अमृतस्य) अमरणस्य। पुष्टिकरस्य पर्जन्यस्य (इमम्) (बलम्) सारम् (पुरुषम्) प्राणिनम् (पाययामसि) पानेन पोषयामः (अथो) अपि च (कृणोमि) करोमि (भेषजम्) चिकित्साम् (यथा) येन प्रकारेण (असत्) भवेत् (शतहायनः) अ० ८।२।८। शतसंवत्सरायुर्युक्तः ॥

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    विषय

    शतहायन:

    पदार्थ

    १. (तस्य अमृतस्य) = गतमन्त्र में वर्णित उस मेघ के अमृत [जल] के उस जल से उत्पन्न (इमं बलम्) = [बल shoot, sprout] इस अंकुरभूत औषध को (पुरुषं पाययामसि) = पुरुष को पिलाते हैं। (अथो) = और इसप्रकार (भेषजं कृणोमि) = इसके रोगों की प्रतिक्रिया [चिकित्सा] करते हैं। (यथा) = जिससे कि यह पुरुष नीरोग रहता हुआ (शतहायनः असत्) = सौ वर्ष तक जीनेवाला हो।

    भावार्थ

    मेघजल से उत्पन्न औषध इस पुरुष को नीरोग व शतवर्ष के दीर्घजीवनवाला बनाएँ।

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    भाषार्थ

    (तस्य) उस (अमृतस्य) रसामृत का (बलम्) बल (इमम्, पुरुषम्) इस पुरुष को (पाययामसि) हम पिलाते हैं। (अथो) अब (भेषजम् कृणोमि) इस की चिकित्सा मैं करता हूं, (यथा) जिस से कि (शतहायनः) सौ वर्षो का यह (असत्) होवे।

    टिप्पणी

    ["तस्य" द्वारा मन्त्र (१८) में निर्दिष्ट "संभृतम्” एकत्रित रसामृत का निर्देश हुआ है। रसामृत को बल का कारण न कह कर बलरूप कहा है। अथवा "अमृतम् उदकनाम" (निघं० १।१२); वर्षाप्राप्त उदक ओषधियों में जा कर जो अमृतरूप हो गया है]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    We give to this man, this patient, the immortal drink of the nectar power of showers and herbs, and that’s how I do the curative treatment so that he may live the full hundred years of his life.

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    Translation

    The strength of that nectar we make this man to drink. Then I administer the medicine, so that he may liva a hundred years.

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    Translation

    We, the physicians give the essence of that cloud or rain (in the form of this medicinal plant) to this man to drink. Thus 1, the physician prepare remedy that he may live hundred years.

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    Translation

    We give the essence of that stream of nectar to this man to drink so I prepare a remedy that he may live a hundred years.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२−(तस्य) पूर्वोक्तस्य (अमृतस्य) अमरणस्य। पुष्टिकरस्य पर्जन्यस्य (इमम्) (बलम्) सारम् (पुरुषम्) प्राणिनम् (पाययामसि) पानेन पोषयामः (अथो) अपि च (कृणोमि) करोमि (भेषजम्) चिकित्साम् (यथा) येन प्रकारेण (असत्) भवेत् (शतहायनः) अ० ८।२।८। शतसंवत्सरायुर्युक्तः ॥

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