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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 27
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
    66

    पुष्प॑वतीः प्र॒सूम॑तीः फ॒लिनी॑रफ॒ला उ॒त। सं॑मा॒तर॑ इव दुह्राम॒स्मा अ॑रि॒ष्टता॑तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पुष्प॑ऽवती: । प्र॒सूऽम॑ती: । फ॒लिनी॑: । अ॒फ॒ला । उ॒त । सं॒मा॒तर॑:ऽइव । दु॒ह्रा॒म् । अ॒स्मै । अ॒रि॒ष्टऽता॑तये ॥७.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुष्पवतीः प्रसूमतीः फलिनीरफला उत। संमातर इव दुह्रामस्मा अरिष्टतातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुष्पऽवती: । प्रसूऽमती: । फलिनी: । अफला । उत । संमातर:ऽइव । दुह्राम् । अस्मै । अरिष्टऽतातये ॥७.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 27
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (पुष्पवतीः) पुष्प रखनेवाली, (प्रसूमतीः) सुन्दर कोंपलवाली, (फलिनीः) फलवाली (उत) और (अफलाः) फलरहित [ओषधियाँ] (संमातरः इव) संमिलित माताओं के समान (अस्मै) इस [पुरुष] को (अरिष्टतातये) कुशल करने के लिये (दुह्राम्) दूध देवें ॥२७॥

    भावार्थ

    मनुष्य सब प्रकार की ओषधियों से उपकार लेकर स्वस्थ रहें ॥२७॥

    टिप्पणी

    २७−(पुष्पवतीः) प्रशस्तपुष्पयुक्ताः (प्रसूमतीः) कोमलपल्लववत्यः (फलिनीः) उत्तमफलवत्यः (उत) अपि च (संमातरः इव) सम्मिलितजनन्यो यथा (दुह्राम्) दुहन्तु। दुग्धं ददतु (अस्मै) मनुष्याय (अरिष्टतातये) अ० ३।५।५। क्षेमकरणाय ॥

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    विषय

    संमातरः इव

    पदार्थ

    १. (पुष्पवती:) = पुष्पोंवाली प्रसूमती:-सुन्दर कोंपलवाली, फलिनी:-फलवाली उत-और अफला:-फलरहित सब ओषधियाँ संमातरः इव-सम्मिलित माताओं के समान अस्मै अरिष्ट तातये-इस पुरुष के रोग-निवारणरूप कौशल के लिए दहाम्-रस का दोहन करें।

    भावार्थ

    विविध ओषधियाँ माताओं के समान हमारे लिए पुष्टिकर रस का दोहन करें।

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    भाषार्थ

    (पुष्पवतीः) फूलों वाली, (प्रसूमतीः) नवीन कोपलों वाली, (फलिनी) फलों वाली, (उत) तथा (अफलाः) फलों से रहित [ओषधियां], (संमातरः) मिल कर, माताओं के (इव) सदृश, (अस्मै) इस के लिये (अरिष्टतातये) अहिंसा अर्थात् स्वास्थ्य के विस्तार के निमित्त (दुह्राम्) दुग्ध के सदृश रसों का दोहन करें, प्रदान करें।

    टिप्पणी

    [अरिष्टतातये= अथवा "अरिष्टकरणाय", "शिवशमरिष्टस्य करे" (अष्टा० ४।४।१४३) + तातिल्]।

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    विषय

    औषधि विज्ञान।

    भावार्थ

    (पुष्पवतीः) फूलों वाली (प्र-सूमतीः) नवपल्लव, नयी शाखाओं, नयी जड़ों को उत्पन्न करने वाली (फलिनीः) फलों वाली (उत) और (अफलाः) फलरहित ओषधियों को (मातरः इव) सम्मान पद पर विराजमान माताओं या गौवों के समान (अस्मा) इस पुरुष के (अरिष्टतातये) कल्याण के लिये (दुहाम्) दोह लूं, प्राप्त करूं।

    टिप्पणी

    अत्र द्वितीयार्थे प्रथमा।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः ओषधयो देवता। १, ७, ९, ११, १३, १६, २४, २७ अनुष्टुभः। २ उपरिष्टाद् भुरिग् बृहती। ३ पुर उष्णिक्। ४ पञ्चपदा परा अनुष्टुप् अति जगती। ५,६,१०,२५ पथ्या पङ्क्तयः। १२ पञ्चपदा विराड् अतिशक्वरी। १४ उपरिष्टान्निचृद् बृहती। २६ निचृत्। २२ भुरिक्। १५ त्रिष्टुप्। अष्टाविंशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    May all herbs, plants and trees with flowers, buds and tender leaves, fruits and without fruit, together like mothers for the child give the milk of life for the health and well being of this man.

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    Translation

    Those rich in flowers, those rich in shoots, those bearing fruit and also those bearing no fruit, like good mothers, may they yield their milk to this man for freedom from suffering.

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    Translation

    Let the herbaceous plants with flowers, with buds, with fruits and without fruits yield their health-restoring power for the perfect health of this man like the mother to her children.

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    Translation

    Let plants with flower and plants with bud, the fruitful and the fruitiest, all, like nice mothers, yield their stores for this man’s perfect health.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २७−(पुष्पवतीः) प्रशस्तपुष्पयुक्ताः (प्रसूमतीः) कोमलपल्लववत्यः (फलिनीः) उत्तमफलवत्यः (उत) अपि च (संमातरः इव) सम्मिलितजनन्यो यथा (दुह्राम्) दुहन्तु। दुग्धं ददतु (अस्मै) मनुष्याय (अरिष्टतातये) अ० ३।५।५। क्षेमकरणाय ॥

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