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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
    76

    जी॑व॒लां न॑घारि॒षां जी॑व॒न्तीमोष॑धीम॒हम्। अ॑रुन्ध॒तीमु॒न्नय॑न्तीं पु॒ष्पां मधु॑मतीमि॒ह हु॑वे॒ऽस्मा अ॑रि॒ष्टता॑तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जी॒व॒लाम् । न॒घ॒ऽरि॒षाम् । जी॒व॒न्तीम् । ओष॑धीम् । अ॒हम् । अ॒रु॒न्ध॒तीम् । उ॒त्ऽनय॑न्तीम् । पु॒ष्पाम् । मधु॑ऽमतीम् । इ॒ह । हु॒वे॒ । अ॒स्मै । अ॒रि॒ष्टऽता॑तये ॥७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जीवलां नघारिषां जीवन्तीमोषधीमहम्। अरुन्धतीमुन्नयन्तीं पुष्पां मधुमतीमिह हुवेऽस्मा अरिष्टतातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जीवलाम् । नघऽरिषाम् । जीवन्तीम् । ओषधीम् । अहम् । अरुन्धतीम् । उत्ऽनयन्तीम् । पुष्पाम् । मधुऽमतीम् । इह । हुवे । अस्मै । अरिष्टऽतातये ॥७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (जीवलाम्) जीवन देनेवाली, (नघारिषाम्) न कभी हानि करनेवाली, (जीवन्तीम्) जीव रखनेवाली, (अरुन्धतीम्) रोक न डालनेवाली, (उन्नयन्तीम्) उन्नति करनेवाली, (पुष्पाम्) बहुत पुष्पवाली, (मधुमतीम्) मधुर रसवाली (ओषधीम्) तापनाशक [अन्न आदि ओषधि] को (इह) यहाँ (अस्मै) इस [पुरुष] को (अरिष्टतातये) शुभ करने के लिये (अहम्) मैं (हुवे) बुलाता हूँ ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को परीक्षणपूर्वक उत्तम-उत्तम पदार्थों का सेवन करना चाहिये ॥६॥ यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है-अ० ८।२।६ ॥

    टिप्पणी

    ६−(अरुन्धतीम्) अ० ४।१२।१। अवारयित्रीम् (उन्नयन्तीम्) उन्नतिकरीम् (पुष्पाम्) अर्शआद्यच्, टाप्। बहुपुष्पवतीम् (मधुमतीम्) माधुर्योपेताम्। अन्यत्पूर्ववत्-अ० ८।२।६ ॥

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    विषय

    जीवन्ती, अरुन्धती, पुष्पा [ मधुमती]

    पदार्थ

    १. (अहम्) = मैं (अस्मै अरिष्टतातये) = इसी रोगी पुरुष को स्वास्थ्य लाभ कराने के लिए (इह) = यहाँ (जीवलाम्) = जीवनप्रद (न-घा-रिषाम्) = निश्चय से हानि नहीं पहुँचानेवाली (जीवन्तीम् ओषधीम्) = जीवनी नामक ओषधि को (हुवे) = पुकारता हूँ। २. (उन्नयन्तीम्) = बिस्तर पर पड़े रोगी को फिर से उठा देनेवाली (अरुन्धतीम्) = अरुन्धती नामक ओषधि को पुकारता हूँ तथा (मधुमतीम्) = मधुर रस से परिपूर्ण इस (पुष्पाम्) = पुष्पा नामक ओषधि को पुकारता हूँ।

    भावार्थ

    'जीवन्ती'ओषधि इस रोगी को पुनः प्राणशक्ति प्राप्त कराती है, अरुन्धती' उसके सब रोगों का निरोध करती हुई इसे ऊपर उठा देती है और 'पुष्पा' इसके जीवन में माधुर्य का संचार करती है।

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    भाषार्थ

    (जीवलाम्) प्राणप्रदा, (नघारिषाम्) न हनन और न हिंसन करने वाली, (जीवन्तीम्) जीवित (ओषधीम्) ओषधि को, तथा (अरुन्धतीम्) अभिमतफल का अवरोध न करने वाली, या घावों को भरने वाली (उन्नयन्तीम्) स्वास्थ्यवर्धनी (पुष्पाम्) जीवन को विकसित करने वाली, (मधुमतीम्) मधुर ओषधि को (इह) इस चिकित्सा कर्म में (अहम्) मैं (हुवे) आहूत करता हूं, (अस्मै अरिष्टतातये) इस रुग्ण के लिये, अहिंसार्थ।

    टिप्पणी

    [जीवलाम् = "जीव" प्राणधारणे + "ला" आदाने। जीवन्तीम्= ताजी नकि शुष्क हुई। अरुन्धतीम् = अ + रुधिर् आवरणे (रुधादिः)। न अवरोध करने वाली, सफलता प्रदान करने वाली या अरुस्= घाव + धेट् (पाने) घाव को पीजाने वाली। पुष्पाम् = पुष्प विकासे (दिवादिः)। अथवा "जीवलाम्" आदि पृथक्-पृथक् ओषधियां हैं। हुवे= इन का आह्वान = इन्हें प्राप्त करना। कविता में "हुवे" पद प्रयुक्त है। अथवा "अन्तः संज्ञा भवन्त्येते सुखदुःखविवर्जिताः" (मनु०) मनु के इस कथनानुसार ओषधियों को चेतन जान कर “हुवे" पद का प्रयोग हुआ है]।

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    विषय

    औषधि विज्ञान।

    भावार्थ

    (अस्मै) इस रोगी पुरुष के (अरिष्टतातये) स्वास्थ्यलाभ कराने के लिये (अहम्) मैं वैद्य (जीवलाम्) आयुप्रद,(नघारिषाम्) किसी प्रकार की हानि न पहुँचानेवाली, (जीवन्तीम् ओषधिम्) जीवन्ती नामक ओषधि को और (उन्नयन्तीम्) रोगी की दशा को उत्तम रूप में ला देनेवाली, उसकी दशा को सुधारनेवाली (अरुन्धतीम्) ‘अरुन्धती’ नामक ओषधि को और (मधुमतीम्) मधुर रस वाली (पुष्पाम्) ‘पुष्पा’ ओषधि को (हुवे) बतलाता हूँ, उसके सेवन का उपदेश करता हूं. वैद्य रोगी के रोग दूर करने, उसे पुष्ट करने और उसके चित्त प्रसादन के लिये उचित ओषधियों का नुसखा बना कर रोगी को दे।

    टिप्पणी

    अथर्व० [ ८। २। ६ ] इत्यत्रापि द्रष्टव्यम्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः ओषधयो देवता। १, ७, ९, ११, १३, १६, २४, २७ अनुष्टुभः। २ उपरिष्टाद् भुरिग् बृहती। ३ पुर उष्णिक्। ४ पञ्चपदा परा अनुष्टुप् अति जगती। ५,६,१०,२५ पथ्या पङ्क्तयः। १२ पञ्चपदा विराड् अतिशक्वरी। १४ उपरिष्टान्निचृद् बृहती। २६ निचृत्। २२ भुरिक्। १५ त्रिष्टुप्। अष्टाविंशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    Here for the recovery and freedom of this patient from disease, I invoke and administer the living, animating, life giving, elevating, blooming Jivantu herb of honeyed efficacy which will never harm him, never obstruct him, but will ever energise him to go forward.

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    Translation

    To keep this man out of harm’s way, I administer to him the herb Jivanti, bestower of new life, producing no bad after-effect, making painful wounds to heal, leading upwards, nourishing and very sweet.

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    Translation

    I, the physician prescribe for the health of this man the Jivanti plant which gives new life, which is harmless, rescuing, strengthening, flowery and full of sweet juice.

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    Translation

    For restoring this patient to health, I use the strength-infusing harmless, life-prolonging health-maintaining, healing, flowery, sweet medicine.

    Footnote

    Some commentators consider Jivanti and Arundhati as names of medicines. Jivanti means life-prolonging. Arundhati means a medicine that prevents the body from decaying. I: A learned physician.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(अरुन्धतीम्) अ० ४।१२।१। अवारयित्रीम् (उन्नयन्तीम्) उन्नतिकरीम् (पुष्पाम्) अर्शआद्यच्, टाप्। बहुपुष्पवतीम् (मधुमतीम्) माधुर्योपेताम्। अन्यत्पूर्ववत्-अ० ८।२।६ ॥

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