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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 26
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
    62

    याव॑तीषु मनु॒ष्या भेष॒जं भि॒षजो॑ वि॒दुः। ताव॑तीर्वि॒श्वभे॑षजी॒रा भ॑रामि॒ त्वाम॒भि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याव॑तीषु । म॒नु॒ष्या᳡: । भे॒ष॒जम् । भि॒षज॑: । वि॒दु: । ताव॑ती: । वि॒श्वऽभे॑षजी: । आ । भ॒रा॒मि॒ । त्वाम्‌ । अ॒भि ॥७.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यावतीषु मनुष्या भेषजं भिषजो विदुः। तावतीर्विश्वभेषजीरा भरामि त्वामभि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यावतीषु । मनुष्या: । भेषजम् । भिषज: । विदु: । तावती: । विश्वऽभेषजी: । आ । भरामि । त्वाम्‌ । अभि ॥७.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (भिषजः) वैद्य (मनुष्याः) लोग (यावतीषु) जितनी [ओषधियों] में (भेषजम्) चिकित्सा (विदुः) जानते हैं, (तावतीः) उतनी (विश्वभेषजीः) सब रोगों की जीतनेवाली [ओषधियों] को (त्वाम् अभि) तेरे लिये (आभरामि) मैं लाता हूँ ॥२६॥

    भावार्थ

    वैद्य लोग विद्वानों से विद्या प्राप्त करके चिकित्सा करें ॥२६॥

    टिप्पणी

    २६−(यावतीषु) (मनुष्याः) मानवाः (भेषजम्) चिकित्साम् (भिषजः) अ० २।९।३। यद्वा भिषज् चिकित्सायाम्-क्विप्। वैद्याः (विदुः) जानन्ति (तावतीः) (विश्वभेषजीः) सर्वरोगजेत्रीः (आभरामि) आहरामि (त्वाम्) (अभि) प्रति ॥

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    विषय

    विश्वभेषजी: [वीरुधः]

    पदार्थ

    १. (यावतीषु) = जितनी बीरुधों में (भिषजः मनुष्या:) = वैद्य लोग (भेषजं विदु:) = रोग की चिकित्सा करनेवाले औषध को जानते हैं, (तावती:) = उतनी (विश्वभेषजी:) = सब रोगों का प्रतीकार करनेवाली वीरुधों को (त्वां अभि आभरामि) = तुझे चारों ओर से प्राप्त कराता हैं।

    भावार्थ

    औषध-निर्माण के लिए साधनभूत सब लताएँ हमारे लिए सुलभ हों।

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    भाषार्थ

    (यावतीषु) जितनी [वीरुधों] में (मनुष्याः भिषजः) चिकित्सक मनुष्य (भेषजम्) औषध (विदुः) जानते हैं; (विश्वभेषजी:) सब रोगों की औषधरूप (तावतीः) उन सब को (त्वाम् अभि) तेरे प्रति (आभरामि) मैं लाता हूं।

    टिप्पणी

    [हुवे (मन्त्र २३, २४) और आभरामि का समान अभिप्राय है। आभरामि = आहरामि]।

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    विषय

    औषधि विज्ञान।

    भावार्थ

    (यावतीषु) जितनी ओषधियों में (भिषजः मनुष्याः) रोग दूर करने का कार्य करने वाले मनुष्य, वैद्य, डाक्टर लोग (भेषजम्) रोग दूर करने के गुण को (विदुः) जानते हैं (तावतीः) उतनी (विश्व-भेषजीः) सब रोगहारी ओषधियों को (त्वाम्) तेरे लिये हे पुरुष ! (आ भरामि) ले आता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः ओषधयो देवता। १, ७, ९, ११, १३, १६, २४, २७ अनुष्टुभः। २ उपरिष्टाद् भुरिग् बृहती। ३ पुर उष्णिक्। ४ पञ्चपदा परा अनुष्टुप् अति जगती। ५,६,१०,२५ पथ्या पङ्क्तयः। १२ पञ्चपदा विराड् अतिशक्वरी। १४ उपरिष्टान्निचृद् बृहती। २६ निचृत्। २२ भुरिक्। १५ त्रिष्टुप्। अष्टाविंशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    O man, O patient, as many herbs as people in general know, the medicinal herbs which physicians know, all those medicinal herbs of the world I collect and bring for you.

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    Translation

    As many medicinal herbs as the human physicians know of, so many herbs, curing all diseases, I shall bring to you.

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    Translation

    I, the physician bring here for you, O man! all those curing herbs wherein the physicians have discovered healing or health-restoring power.

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    Translation

    Hitherward unto thee I bring the plants that cure all maladies, all plants wherein physicians have discovered health-bestowing power.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २६−(यावतीषु) (मनुष्याः) मानवाः (भेषजम्) चिकित्साम् (भिषजः) अ० २।९।३। यद्वा भिषज् चिकित्सायाम्-क्विप्। वैद्याः (विदुः) जानन्ति (तावतीः) (विश्वभेषजीः) सर्वरोगजेत्रीः (आभरामि) आहरामि (त्वाम्) (अभि) प्रति ॥

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