ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 123/ मन्त्र 2
ऋषिः - दीर्घतमसः पुत्रः कक्षीवान्
देवता - उषाः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
पूर्वा॒ विश्व॑स्मा॒द्भुव॑नादबोधि॒ जय॑न्ती॒ वाजं॑ बृह॒ती सनु॑त्री। उ॒च्चा व्य॑ख्यद्युव॒तिः पु॑न॒र्भूरोषा अ॑गन्प्रथ॒मा पू॒र्वहू॑तौ ॥
स्वर सहित पद पाठपूर्वा॑ । विश्व॑स्मात् । भुव॑नात् । अ॒बो॒धि॒ । जय॑न्ती । वाज॑म् । बृ॒ह॒ती । सनु॑त्री । उ॒च्चा । वि । अ॒ख्य॒त् । यु॒व॒तिः । पु॒नः॒ऽभूः । आ । उ॒षाः । अ॒ग॒न् । प्र॒थ॒मा । पू॒र्वऽहू॑तौ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पूर्वा विश्वस्माद्भुवनादबोधि जयन्ती वाजं बृहती सनुत्री। उच्चा व्यख्यद्युवतिः पुनर्भूरोषा अगन्प्रथमा पूर्वहूतौ ॥
स्वर रहित पद पाठपूर्वा। विश्वस्मात्। भुवनात्। अबोधि। जयन्ती। वाजम्। बृहती। सनुत्री। उच्चा। वि। अख्यत्। युवतिः। पुनःऽभूः। आ। उषाः। अगन्। प्रथमा। पूर्वऽहूतौ ॥ १.१२३.२
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 123; मन्त्र » 2
अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
या पूर्वहूतौ पुनर्भूर्वाजं जयन्ती बृहती सनुत्री प्रथमा युवतिर्यथोषा विश्वस्माद् भुवनात् पूर्वाऽबोधि। उच्चा व्यख्यत् तथा आगन्त्सा विवाहे योग्या भवति ॥ २ ॥
पदार्थः
(पूर्वा) (विश्वस्मात्) अखिलात् (भुवनात्) जगत्स्थात्पदार्थसमूहात् (अबोधि) बुध्यते (जयन्ती) जयशीला (वाजम्) विज्ञानम् (बृहती) महती (सनुत्री) (विभाजिका) (उच्चा) उच्चानि वस्तूनि (वि) (अख्यत्) ख्यापयति। अत्रान्तर्गतण्यर्थः। (युवतिः) (पुनर्भूः) या विवाहितपतिमरणानन्तरं नियोगेन पुनः सन्तानोत्पादिका भवति सा (आ) (उषाः) (अगन्) गच्छति। अत्र लङि प्रथमैकवचने बहुलं छन्दसीति शपो लुक् संयोगत्वेन तलोपे मो नो धातोरिति मस्य नकारादेशः। (प्रथमा) (पूर्वहूतौ) पूर्वेषां विद्यावृद्धानां हूतिराह्वानं यस्मिन् गृहाश्रमे तस्मिन् ॥ २ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सर्वाः कन्याः शतस्य चतुर्थांशं वयो विद्याभ्यासे व्यतीत्य पूर्णविद्या भूत्वा स्वसदृशं पतिमुदुह्य प्रभातवत्सुरूपा भवन्तु ॥ २ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
(पूर्वहूतौ) जिसमें वृद्धजनों का बुलाना होता उस गृहस्थाश्रम में जो (पुनर्भूः) विवाहे हुए पति के मर जाने पीछे नियोग से फिर सन्तान उत्पन्न करनेवाली होती वह (वाजम्) उत्तम ज्ञान को (जयन्ती) जीतती हुई (बृहती) बड़ी (सनुत्री) सब व्यवहारों को अलग-अलग करने और (प्रथमा) प्रथम (युवतिः) युवा अवस्था को प्राप्त होनेवाली नवोढा स्त्री जैसे (उषाः) प्रातःकाल की वेला (विश्वस्मात्) समस्त (भुवनात्) जगत् के पदार्थों से (पूर्वा) प्रथम (अबोधि) जानी जाती और (उच्चा) ऊँची-ऊँची वस्तुओं को (वि, अख्यत्) अच्छे प्रकार प्रकट करती, वैसे (आ, अगन्) आती है, वह विवाह में योग्य होती है ॥ २ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब कन्या पच्चीस वर्ष अपनी आयु को विद्या के अभ्यास करने में व्यतीत कर पूरी विद्यावाली होकर अपने समान पति से विवाह कर प्रातःकाल की वेला के समान अच्छे रूपवाली हों ॥ २ ॥
विषय
वाज - विजय, सनुत्री उषा
पदार्थ
१. यह (उषा विश्वस्मात् भुवनात्) = सब लोगों से (पूर्वा) = पहले (अबोधि) = जागरित होती है । उषाकाल हुआ' ऐसा जानकर ही तो पीछे सब प्राणी प्रबुद्ध होते हैं । यह उषा जागनेवालों के लिए (वाजम्) = शक्ति व धन का (जयन्ती) = विजय करती है । इस समय सोये रह जानेवालों के बल को उदय होता हुआ सूर्य हर लेता है - ('उद्यत्सूर्य इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे ।') = [अथर्व०] । (बृहती) = शक्ति व धन देकर यह उषा प्रबुद्ध पुरुषों का वर्धन करती है । (सनुत्री) = यह सब उत्तमताओं को देनेवाली है [सन् सम्भकौ] २. (उच्चा) = आकाश में ऊँची उठती हुई यह (उषाः) = उषा (व्यख्यत्) = सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशमय कर देती है । (युवतिः) = यह अशुभों को दूर करनेवाली [यु - अमिश्रणे] तथा शुभों को प्राप्त करानेवाली [यु - मिश्रणे] है । (पुनर्भूः) = यह फिर - फिर, प्रतिदिन आनेवाली है, (पूर्वहूतौ) = प्रभु की सर्वप्रथम पुकार व आराधाना के होने पर (प्रथमा) = आराधकों की शक्तियों का विस्तार करती हुई (आ अगन्) = यह सब ओर प्राप्त होती है । इस उषाकाल में यदि मनुष्य प्रभु के उपासन को छोड़कर व्यर्थ के अन्य कार्यों में नहीं लग जाता तो यह उषा उस आराधक की शक्तियों के विस्तार का कारण होती है । उषाकाल में हमें प्रभु आराधन के लिए तैयार होना चाहिए ।
भावार्थ
भावार्थ - उषा जागनेवालों के लिए शक्ति व धन का विजय करती है । इसमें जागकर हम प्रभु के उपासन में प्रवृत्त हों ताकि हमारी शक्तियों का विस्तार हो ।
विषय
उषा के दृष्टान्त से नववधू का आदर और उसके तथा गृहपत्नियों के कर्त्तव्यों का वर्णन ।
भावार्थ
( उषा ) प्रभात बेलाके समान उत्तम कमनीय गुणों से युक्त कन्या ( विश्वस्मात् भुवनात् ) समस्त संसार से ( पूर्वा ) पूर्व ( अबोधि ) प्रबुद्ध हो, जागे । वह ( वाजं ) ऐश्वर्य और अन्नको और संग्राम को (जयन्ती) विजय करने वाली सेना के समान सबके चित्तों पर विजय प्राप्त करती हुई ( बृहती ) बड़ी गुणवती ( सनुत्री ) यथायोग्य भोजन, मान, आदर का विभाग करने वाली ( युवतिः ) युवति, हृष्ट पुष्ट वयसवाली, ( उच्चा ) अपने उच्च, उत्कृष्ट गुणों को ( वि अख्यत् ) प्रकाशित करे । वह ( पुनर्भूंः ) उषा के समान पुनः पुनः प्रतिदिन सदा नये प्रसन्न रूप में प्रकट होती हुई ( पूर्वहूतौ ) विद्यमान, विद्यावृद्ध और वयो वृद्धों के आदर सत्कार के कार्य और गृहस्थाश्रम में ( प्रथमा ) सबसे मुख्य होकर ( आ अगन् ) प्राप्त हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दीर्घतमसः पुत्रः कक्षीवानृषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः– १, ३, ६, ७, ९, १०, १३, विराट् त्रिष्टुप् । २,४, ८, १२ निचत् त्रिष्टुप् । ५ त्रिष्टुप् ११ भुरिक् पङ्क्तिः ॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व मुलींनी पंचवीस वर्षांपर्यंत विद्याभ्यासात आपले आयुष्य घालवावे व पूर्ण विदुषी व्हावे. आपल्या सारख्याच पुरुषाबरोबर विवाह करून प्रातःकाळच्या वेळेप्रमाणे प्रफुल्लित असावे. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The great and generous dawn wakes up before the world, winning, collecting, and carrying health, wealth and beauty. Ever young, rising again and again, watching us from far and above, she arrives in response to our earliest invocation.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
That young woman is fit to marry who conquers or acquires all knowledge even in the household life where great experienced elderly scholars are invited and who is like the Dawn, who comes again and again giving light, who is great in virtues and distributes or diffuses knowledge. As the Dawn wakes up (so to speak) in the morning before all the world, so this educated lady like the Dawn wakes up early in the morning before all and being highly educated teaches about the great objects of the world to all students.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(वाजम्) विज्ञानम् = Knowledge. (पूर्वहूतौ) पूर्वेषां विद्यावृद्धानां हूतिः आह्वानं यस्मिन् गृहाश्रमे तस्मिन् = In the household life where experienced elderly scholars are invited.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
All girls should spend one fourth of their span of life in the acquisition of knowledge and after that, being highly educated every one of them should marry a suitable husband. They should be charming like the Dawn.
Translator's Notes
वाजम् is derived from वज-गतौ गतेस्त्रयोऽर्था ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्च अत्र ज्ञानार्थग्रहणम् |
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