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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 151 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 151/ मन्त्र 3
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    आ वां॑ भूषन्क्षि॒तयो॒ जन्म॒ रोद॑स्योः प्र॒वाच्यं॑ वृषणा॒ दक्ष॑से म॒हे। यदी॑मृ॒ताय॒ भर॑थो॒ यदर्व॑ते॒ प्र होत्र॑या॒ शिम्या॑ वीथो अध्व॒रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । वा॒म् । भू॒ष॒न् । क्षि॒तयः॑ । जन्म॑ । रोद॑स्योः । प्र॒ऽवाच्य॑म् । वृ॒ष॒णा॒ । दक्ष॑से । म॒हे । यत् । ई॒म् । ऋ॒ताय॑ । भर॑थः । यत् । अर्व॑ते । प्र । होत्र॑या । शिम्या॑ । वी॒थः॒ । अ॒ध्व॒रम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ वां भूषन्क्षितयो जन्म रोदस्योः प्रवाच्यं वृषणा दक्षसे महे। यदीमृताय भरथो यदर्वते प्र होत्रया शिम्या वीथो अध्वरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। वाम्। भूषन्। क्षितयः। जन्म। रोदस्योः। प्रऽवाच्यम्। वृषणा। दक्षसे। महे। यत्। ईम्। ऋताय। भरथः। यत्। अर्वते। प्र। होत्रया। शिम्या। वीथः। अध्वरम् ॥ १.१५१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 151; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे वृषणा यद्ये रोदस्योर्मध्ये वर्त्तमानाः क्षितयो महे दक्षसे वां युवयोः प्रवाच्यं जन्म भूषन् तत्सङ्गेन यद्यतोऽर्वत ऋताय होत्रया शिम्याऽध्वरं युवामाभरथः। ई प्रवीथः। तस्माद्भवन्तौ प्रशंसनीयौ स्तः ॥ ३ ॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (वाम्) युवयोः (भूषन्) अलंकुर्युः (क्षितयः) मनुष्याः (जन्म) विद्याप्रादुर्भावम् (रोदस्योः) द्यावाभूम्योर्मध्ये (प्रवाच्यम्) प्रवक्तुमर्हम् (वृषणा) विद्यावर्षयितारौ (दक्षसे) आत्मबलाय (महे) महते (यत्) ये (ईम्) सर्वतः (ऋताय) सत्यविज्ञानाय (भरथः) धरथः (यत्) यतः (अर्वते) प्रशस्तविज्ञानवते (प्र) (होत्रया) आदातुमर्हया (शिम्या) सुकर्मयुक्तया (वीथः) व्याप्नुथः (अध्वरम्) अहिंसाधर्मयुक्तं व्यवहारम् ॥ ३ ॥

    भावार्थः

    ये विद्वांसो बाल्यावस्थामारभ्य पुत्राणां कन्यानां च विद्याजन्म प्रवर्द्धयन्ति ते सत्यविद्यानां प्रचारेण सर्वान् विभूषयन्ति ॥ ३ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

    पदार्थ

    हे (वृषणा) विद्या की वर्षा करानेवाले (यत्) जो (रोदस्योः) अन्तरिक्ष और पृथिवी के बीच वर्त्तमान (क्षितयः) मनुष्य (महे) अत्यन्त (दक्षसे) आत्मबल के लिये (वाम्) तुम दोनों का (प्रवाच्यम्) अच्छे प्रकार कहने योग्य (जन्म) विद्या के जन्म को (भूषन्) सुशोभित करें उनके सङ्ग से (यत्) जिस कारण (अर्वते) प्रशंसित विज्ञानवाले (ऋताय) सत्यविज्ञान युक्त सज्जन के लिये (होत्रया) ग्रहण करने योग्य (शिम्या) अच्छे कर्मों से युक्त क्रिया से (अध्वरम्) अहिंसा धर्मयुक्त व्यवहार को तुम (आ, भरथः) अच्छे प्रकार धारण करते हो और (ईम्) सब ओर से उसको (प्र, वीथः) व्याप्त होते हो इससे आप प्रशंसा करने योग्य हो ॥ ३ ॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् बाल्यावस्था से लेकर पुत्र और कन्याओं को विद्या जन्म की अति उन्नति दिलाते हैं, वे सत्यविद्याओं के प्रचार से सबको विभूषित करते हैं ॥ ३ ॥

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    विषय

    ऋत व अध्वर

    पदार्थ

    १. हे प्राणापानो ! (क्षितयः) = मनुष्य (वाम्) = आप दोनों को (आभूषन्) = अपने जीवन में सुशोभित करते हैं आपके द्वारा अपने जीवन को अलंकृत करते हैं, परिणामतः हे (वृषणा) = सुखों का वर्षण करनेवाले प्राणापानो ! उन मनुष्यों के जीवन में (रोदस्योः) = द्यावापृथिवी का- मस्तिष्क व शरीर का जन्म प्रादुर्भाव व विकास (प्रवाच्यम्) = अत्यन्त प्रशंसनीय होता है। द्यावापृथिवी का यह विकास (दक्षसे) = उनकी उन्नति व वृद्धि के लिए होता है और (महे) = उनकी महिमा का कारण बनता है। २. द्यावापृथिवी का यह विकास उस समय उनकी महिमा का कारण बनता है (यत्) = जब (ईम्) = निश्चय से आप अपने इस उपासक को (ऋताय) = ऋत के लिए (भरथः) = पोषित करते हो । आपकी साधना से इसके जीवन में ऋत का वर्धन होता है । यह सत्य तथा नियमितता को अपनानेवाला बनता है। (यत्) = जब अर्वते वासनाओं का संहार करनेवाले इसके लिए (होत्रया) = वेदवाणी के साथ तथा (शिम्या) = शान्तभाव से की जानेवाली क्रियाओं के साथ (अध्वरम्) = अहिंसात्मक यज्ञों को (प्रवीथः) = प्रकर्षेण प्राप्त कराते हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ – प्राणसाधक के जीवन में 'ऋत व अध्वर' प्राप्त होते हैं। उस समय इसके शरीर व मस्तिष्क का प्रशंसनीय विकास होता है।

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    विषय

    स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य

    भावार्थ

    हे ( तृषणा ) विद्या, सुख, ज्ञान और वीर्य के सेचन और संवर्धन करने हारे विद्वान् स्त्री पुरुषो ! ( क्षितयः ) पृथिवी निवासी प्रजाजन ( महे दक्षसे ) बड़ी भारी आत्मबल की वृद्धि के लिये ही (वां) तुम दोनों के ( प्रवाच्यं ) अच्छी प्रकार गुरु-उपदेश प्राप्त करने योग्य ( जन्म ) विद्या जन्म को ( भूषन् ) अलंकृत करते हैं अर्थात् गुरु के अधीन शिक्षा का प्रबन्ध करते हैं । ( यत् ) जिससे आप दोनों ( ईम् ) सब प्रकार से ( ऋताय ) सत्य ज्ञान के प्राप्त करने के लिये ( भरतः ) अपने आप को पुष्ट करो और (यत्) जिससे ( अर्वते ) उत्तम ज्ञानवान् गुरु के प्रियाचरण करने के लिये उसके अधीन ( होत्रया ) वेदवाणी और ( शिम्या ) वैदिक कर्मानुष्ठान द्वारा ( अध्वरं ) अहिंसा आदि धर्मों से युक्त ब्रह्मचर्य आदि व्रतपालन को ( प्र वीथम् ) उत्तम रीति से पालन करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः- भुरिक् त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ५ विराट् जगती । ६, ७ जगती ८, ९ निचृज्जगती च ॥ नवर्चं सूक्तम् ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्वान बाल्यावस्थेपासून पुत्र व कन्यांना विद्या देऊन उन्नत करतात ते सत्याचा प्रचार करून सर्वांमध्ये भूषणावह ठरतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Generous Mitra and Varuna, sun and cosmic waters, fire and sun, people living on earth admire your celebrated rise from heaven through the skies for the sake of spiritual greatness of honour and smartness of perfect performance, since on their invocation with holy action you reach their yajna of love and holiness of non violence and bear all round fruits of yajna for the man of science and speed and for the man of truth and cosmic Law.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Ordained to adore the preacher and teacher.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O disseminators of knowledge (teachers and preachers)! you are praiseworthy as persons living in celestial space glorify and adorn your admirable birth (from the womb of knowledge or wisdom. It is aimed at acquiring more vigor. The truthful and enlightened persons, performing the acceptable noble acts uphold if from all sides.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those wise persons who promote the birth and growth of knowledge of the sons and daughters from childhood onward, they adorn and beautify all by the propagation of true knowledge.

    Foot Notes

    (क्षितयः ) मनुष्या: - Men. (अर्वते ) प्रशस्त विज्ञानवते (मनुष्याय ) - For a person endowed with good knowledge.

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