Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 151 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 151/ मन्त्र 7
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    यो वां॑ य॒ज्ञैः श॑शमा॒नो ह॒ दाश॑ति क॒विर्होता॒ यज॑ति मन्म॒साध॑नः। उपाह॒ तं गच्छ॑थो वी॒थो अ॑ध्व॒रमच्छा॒ गिर॑: सुम॒तिं ग॑न्तमस्म॒यू ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । वा॒म् । य॒ज्ञैः । श॒श॒मा॒नः । ह॒ । दाश॑ति । क॒विः । होता॑ । यज॑ति । म॒न्म॒ऽसाध॑नः । उप॑ । अह॑ । तम् । गच्छ॑थः । वी॒थः । अ॒ध्व॒रम् । अच्छ॑ । गिरः॑ । सु॒ऽम॒तिम् । ग॒न्त॒म् । अ॒स्म॒यू इत्य॑स्म॒ऽयू ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो वां यज्ञैः शशमानो ह दाशति कविर्होता यजति मन्मसाधनः। उपाह तं गच्छथो वीथो अध्वरमच्छा गिर: सुमतिं गन्तमस्मयू ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। वाम्। यज्ञैः। शशमानः। ह। दाशति। कविः। होता। यजति। मन्मऽसाधनः। उप। अह। तम्। गच्छथः। वीथः। अध्वरम्। अच्छ। गिरः। सुऽमतिम्। गन्तम्। अस्मयू इत्यस्मऽयू ॥ १.१५१.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 151; मन्त्र » 7
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे अध्यापकोपदेशकौ यः शशमानः कविर्होता मन्मसाधनो यज्ञैर्वां सुखं दाशति यजति च तं हाऽस्मयू युवामुपागच्छथो तावह अध्वरं गन्तं गिरः सुमतिं चाच्छ वीथः ॥ ७ ॥

    पदार्थः

    (यः) (वाम्) युवाभ्याम् (यज्ञैः) सङ्गतैः कर्मभिः (शशमानः) प्लवमानः (ह) किल (दाशति) ददाति (कविः) महाप्रज्ञः (होता) आदाता (यजति) सत्करोति (मन्मसाधनः) मन्म विज्ञानं साधनं यस्य सः (उप) (अह) विनिग्रहे (तम्) (गच्छथः) प्राप्नुथः (वीथः) कामयेथाम् (अध्वरम्) अहिंसामयं व्यवहारम् (अच्छ) उत्तमरीत्या। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (गिरः) सुशिक्षिता वाणीः (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (गन्तम्) प्राप्नुतम् (अस्मयू) अस्मानिच्छन्तौ ॥ ७ ॥

    भावार्थः

    येऽत्र सत्यविद्याकामुकाः सर्वेभ्यो विद्यादानेन सुशीलतां सम्पादयन्तः सुखं प्रददति ते सर्वैः सत्कर्त्तव्याः ॥ ७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

    पदार्थ

    हे अध्यापक और उपदेशको ! (यः) जो (शशमानः) सब विषयों को पार होता हुआ (कविः) अत्यन्त बुद्धियुक्त (होता) सब विषयों को ग्रहण करनेवाला (मन्मसाधनः) जिसका विज्ञान ही साधन वह सज्जन (यज्ञैः) मिलके किये हुए कर्मों से (वाम्) तुम दोनों को सुख (दाशति) देता है और (यजति) तुम्हारा सत्कार करता है (तं, ह) उसी के (अस्मयू) हमारी इच्छा करते हुए तुम (उप, गच्छथः) सङ्ग पहुँचे हो वे आप (अह) बे रोक-टोक (अध्वरम्) हिंसारहित व्यवहार को (गन्तुम्) प्राप्त होओ और (गिरः) सुन्दर शिक्षा की हुई वाणी और (सुमतिम्) सुन्दर विशेष बुद्धि को (अच्छ) उत्तम रीति से (वीथः) चाहो ॥ ७ ॥

    भावार्थ

    जो इस संसार में सत्य विद्या की कामना करनेवाले सबके लिये विद्या दान से उत्तम शीलपन का सम्पादन करते हुए सुख देते हैं, वे सबको सत्कार करने योग्य हैं ॥ ७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    यज्ञैः शशमान:

    पदार्थ

    १. हे प्राणापानो ! (यः) = जो (वाम्) = आपके प्रति (यज्ञैः शशमान:) = श्रेष्ठतम कर्मों से प्लुत [तीव्र] गतिवाला होता हुआ (ह) = निश्चय से (दाशति) = आत्मसमर्पण करता है, वह (कविः) = क्रान्तदर्शी बनता है। 'प्राणायाम द्वारा प्राणसाधना में प्रवृत्त होना और यज्ञशील बनना' यह मार्ग है, जिस पर चलने से मनुष्य तीव्र बुद्धि प्राप्त करता है | (होता) = यह सदा दानपूर्वक अदन करनेवाला बनता है। (यजति) = यज्ञशील होता है और (मन्मसाधनः) = स्तोत्रों को सिद्ध करनेवाला होता है, अर्थात् सदा प्रभु स्तवन में प्रवृत्त होता है । २. हे प्राणापानो ! (अह) = निश्चय से आप (तम्) = उसको (उपगच्छथः) = समीपता से प्राप्त होते हो। इसके जीवन में (अध्वरम्) = हिंसारहित यज्ञात्मक कर्मों को (वीथः) = आप चाहते हो [कामयेथे - सा०] अर्थात् इनका जीवन यज्ञमय हो जाता है। (अस्मयू) = हमारे हित की कामना करते हुए आप (गिरः अच्छ) = ज्ञान की वाणियों की ओर और सुमतिं [अच्छ] कल्याणी मति की ओर (आ गन्तम्) = [गमयतम्] हमें प्राप्त कराते हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना से हम क्रान्तदर्शी, यज्ञशील व स्तवन की वृत्तिवाले बनते हैं ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उत्तम विद्वानों के सत्संग की आज्ञा ।

    भावार्थ

    हे विद्वान् स्त्री पुरुषो, और गुरु शिष्य जनो ! ( वां ) आप दोनों को ( यः ) जो पुरुष ( यज्ञैः ) नाना प्रकार के दानों और सत्संग योग्य ज्ञानोपदेशों से ( शशमानः ) आदर सत्कार करता और उपदेश करता हुआ ( कविः ) विद्वान् ( होता ) ज्ञानप्रदाता, ( मन्मसाधनः ) ज्ञान विज्ञान को मननपूर्वक साधन करने वाला होकर ( दाशति ) तुम्हें उत्तम ऐश्वर्य देता और ज्ञानोपदेश करता है और जो ( यजति ) तुमसे सत्संग करता है तुम दोनों ( अह ) सदा ( तं उप गच्छथः ) उसके ही समीप सदा जाया आया करो और उस ( अध्वरम् ) अविनाशक, सौम्य अहिंसक, द्वेषरहित पुरुष को (वीथः) प्राप्त होओ। और ( अस्मयू ) हम सब के प्रिय होकर ( गिरः ) ज्ञान वाणियों और ( सुमतिम् ) शुभ मति को ( गन्तम् ) प्राप्त होवो और हमें भी प्राप्त कराओ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः- भुरिक् त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ५ विराट् जगती । ६, ७ जगती ८, ९ निचृज्जगती च ॥ नवर्चं सूक्तम् ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे या जगात सत्य विद्येची कामना करतात, सर्वांसाठी विद्यादानाने उत्तम शील संपादन करून सुख देतात त्यांचा सर्वांनी सत्कार करावा. ॥ ७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Mitra and Vanina, teachers, masters and eminent scholars inspired with love friendship and justice, whoever does honour and reverence to you and gives in charity and homage to divinity by yajnas, good reading, prayer, and noble company, whoever attends on you with reverence for service, the worshipful man who has mastered his subject or the poet of vision and imagination or the generous yajaka, or the man of knowledge for whom science and honest industry alone is the key to success, you go to him, I pray, meet him at his yajna of love, reverence and non-violence, and bless him with holy words, noble wisdom and discrimination.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The teacher and preacher are signified.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teacher and preacher ! you go and meet a person who is active in the pursuit of knowledge. Such people, in general, are very wise, accepter of noble virtues, possessor of great knowledge and giver of happiness with Yajnas. You recognize and appreciate well their non-violent and loving dealings. Deeply interested in our welfare, you love our refined speech and good intellect.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Such persons should be honored by all who desire to disseminate true knowledge and give happiness to all by imparting knowledge including the men and women of good character.

    Foot Notes

    ( यज्ञैः ) संगतैः कर्मभिः - Consistent and unifying noble acts. ( शशमान: ) प्लवमान: - Active. ( वीथ: ) कामयेथाम् - Desire or love.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top