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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 163 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 163/ मन्त्र 8
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - अश्वोऽग्निः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अनु॑ त्वा॒ रथो॒ अनु॒ मर्यो॑ अर्व॒न्ननु॒ गावोऽनु॒ भग॑: क॒नीना॑म्। अनु॒ व्राता॑स॒स्तव॑ स॒ख्यमी॑यु॒रनु॑ दे॒वा म॑मिरे वी॒र्यं॑ ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑ । त्वा॒ । रथः॑ । अनु॑ । मर्यः॑ । अ॒र्व॒न् । अनु॑ । गावः॑ । अनु॑ । भगः॑ । क॒नीना॑म् । अनु॑ । व्राता॑सः । तव॑ । स॒ख्यम् । ई॒युः॒ । अनु॑ । दे॒वाः । म॒मि॒रे॒ । वी॒र्य॑म् । ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनु त्वा रथो अनु मर्यो अर्वन्ननु गावोऽनु भग: कनीनाम्। अनु व्रातासस्तव सख्यमीयुरनु देवा ममिरे वीर्यं ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनु। त्वा। रथः। अनु। मर्यः। अर्वन्। अनु। गावः। अनु। भगः। कनीनाम्। अनु। व्रातासः। तव। सख्यम्। ईयुः। अनु। देवाः। ममिरे। वीर्यम्। ते ॥ १.१६३.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 163; मन्त्र » 8
    अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे अर्वन् यं त्वाऽनु रथोऽनु मर्य्योऽनु गावः कनीनामनु भगो व्रातासो देवास्ते वीर्यमनु ममिरे ते तस्य तव सख्यमन्वीयुः ॥ ८ ॥

    पदार्थः

    (अनु) (त्वा) त्वाम् (रथः) विमानादियानम् (अनु) (मर्यः) मरणधर्मा मनुष्यः (अर्वन्) अश्ववद्वर्त्तमान (अनु) (गावः) धेनवः (अनु) (भगः) ऐश्वर्यम् (कनीनाम्) कामयमानानाम् (अनु) (व्रातासः) व्रतेषु सत्याचरणेषु भवाः (तव) (सख्यम्) सख्युर्भावः कर्म वा (ईयुः) प्राप्नुयुः (अनु) (देवाः) विद्वांसः (ममिरे) निर्मिमते (वीर्यम्) पराक्रमम् (ते) तव ॥ ८ ॥

    भावार्थः

    यथाऽग्निमनुयानानि मनुष्या गच्छन्ति तथाऽध्यापकोपदेशकावनु विज्ञानं लभन्ते ये विदुषः सखीन् कुर्वन्ति ते सत्याचारा वीर्यवन्तो जायन्ते ॥ ८ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (अर्वन्) घोड़े के समान वर्त्तमान ! जिस (त्वा) तेरे (अनु) पीछे (रथः) विमानादि रथ फिर (अनु) पीछे (मर्य्यः) मरण धर्म रखनेवाला मनुष्य फिर (अनु) पीछे (गावः) गौएँ और (कनीनाम्) कामना करते हुए सज्जनों को (अनु) पीछे (भगः) ऐश्वर्य तथा (व्रातासः) सत्य आचरणों में प्रसिद्ध (देवाः) विद्वान् जन (ते) तेरे (वीर्यम्) पराक्रम को (अनु, ममिरे) अनुकूलता से सिद्ध करते हैं वे उक्त विद्वान् (तव) तेरी (सख्यम्) मित्रता वा मित्र के काम को (अनु, ईयुः) अनुकूलता से प्राप्त होवें ॥ ८ ॥

    भावार्थ

    जैसे अग्नि के अनुकूल विमानादि यानों को मनुष्य प्राप्त होते हैं, वैसे अध्यापक और उपदेशक के अनुकूल विज्ञान को प्राप्त होते हैं। जो विद्वानों को मित्र करते हैं, वे सत्याचरणशील और पराक्रमवान् होते हैं ॥ ८ ॥

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    विषय

    सर्वानुकूलता

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार जब मनुष्य प्रभु-दर्शन का प्रयत्न करता हुआ यज्ञशेष के रूप में वानस्पतिक भोजनों का ही सेवन करता है तब (रथः) = यह शरीर-रथ (त्वा अनु) = तेरे अनुकूल होता है। यह स्वस्थ होकर तेरी यात्रा की पूर्ति में सहायक होता है । (मर्यः अनु) = मनुष्य तेरे अनुकूल होता है—लोगों से तेरा विरोध नहीं होता। अविरोध में चलता हुआ तू उन्नति - मार्ग में आगे बढ़ पाता है। २. हे (अर्वन्) = वासनाओं का संहार करनेवाले जीव ! (गाव: अनु) = इन्द्रियाँ तेरे अनुकूल होती हैं। ये विषय-पङ्क में न फँसकर ज्ञानों व यज्ञों को सिद्ध करनेवाली होती हैं। (कनीनां भगः अनु) = कन्याओं का सौभाग्य तेरे अनुकूल होता है। तेरी पुत्रियाँ जहाँ जाती हैं, वहाँ वे अपने उत्तम व्यवहारों से तेरे यश को बढ़ाती हैं और जो कन्याएँ तेरे यहाँ पुत्रवधू के रूप में आती हैं, वे भी तेरे घर के सौभाग्य को बढ़ानेवाली होती हैं । ३. (व्रातासः) = मनुष्य के समाज (तव अनु) = तेरे अनुकूल होते हैं और (सख्यम् ईयुः) = तेरी मैत्री को प्राप्त करते हैं, इस प्रकार समाज में भी तेरी स्थिति उत्तम होती है । ४. (देवा:) = सब देव, अर्थात् सूर्य-चन्द्र-तारे आदि सब प्राकृतिक शक्तियाँ (अनु) = तेरे अनुकूल होती हैं और ते (वीर्यं ममिरे) = तेरी शक्ति का निर्माण करती हैं। इन देवों की अनुकूलता से तेरी शक्ति बढ़ती है और तेरा स्वास्थ्य अति सुन्दर होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - जीव के सात्त्विक होनेपर ही सारे संसार की अनुकूलता होती है।

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    विषय

    विद्वान् तेजस्वी के शासन में सब सम्पदाएं ।

    भावार्थ

    हे ( अर्वन् ) अश्व के समान बलवान् पुरुष ! ज्ञानवान् विद्वन् ! जिस प्रकार घोड़े के पीछे पीछे रथ, मनुष्य, गौ आदि सम्पत्ति, कन्याओं का सौभाग्य, और अनुगामी रक्षकों के दल चलते हैं, विजयेच्छु लोग अश्व के बल को जानते हैं उसी प्रकार ( त्वा अनु ) तेरे पीछे पीछे, तेरे अधीन ( रथः ) रथ और रमण करने योग्य पदार्थ हों, ( त्वा अनु मर्यः ) तेरे अधीन साधारण जन हों, (त्वा अनु गावः) तेरे अधीन गौ आदि पशु हों, ( त्वा अनु कनीनां भगः ) तेरे अधीन, तेरी रक्षा में ही तुझे चाहने वाले स्त्री, पुरुषों का सौभाग्य और ऐश्वर्य सुरक्षित रहे । ( तब अनु व्रातासः ) तेरे । अधीन नाना व्रताचरण करने हारे शिष्यगण या (व्रातासः) शिष्य समूह ( तव सख्यम् ) तेरे ही मैत्री भाव को ( ईयुः ) प्राप्त हों और ( देवा ) विद्वान् और दानशील पुरुष भी ( ते ) तेरे ( वीर्यं ) बल, वीर्य का ( अनु ममिरे ) उत्तम आदर करें, उसका महत्त्व जानें । (२) अध्यात्म में—हे आत्मन् ! तेरे ही अधीन, यह ( रथः ) रमण साधन और मरणशील देह है। तेरे अधीन वाणी और अन्य इन्द्रियें और तेरे अधीन ही ( कनीनाम् ) दीप्ति युक्त और विषयों की कामना करने वाली इन्द्रियों का सेवनीय सुख है । ( व्रातासः ) ये प्राण गण तेरे अधीन हैं। (देवाः) सब प्राण तेरे वीर्य बल को ही प्रधान मानकर उसके अधीन रहते हैं । देखो उपनिषदों में ‘वरिष्ठ प्राण’ का वर्णन । राजपक्ष में देखो (यजु० २९। १९)

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ अश्वोऽग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, ६, ७, १३ त्रिष्टुप् । २ भुरिक् त्रिष्टुप् । ३, ८ विराट् त्रिष्टुप् । ५, ९, ११ निचृत् त्रिष्टुप् । ४, १०, १२ भुरिक् पङ्क्तिः ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे माणसांना अग्नियुक्त विमान प्राप्त करता येते तसे अध्यापक व उपदेशक विज्ञान प्राप्त करतात. जे विद्वानाशी मैत्री करतात ते सत्याचरणी व पराक्रमी असतात. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, Arvan, energy and power of lightning motion, the chariot, the car and the flying birds of human creation depend on you and follow your laws. The mortal humanity admires and follows you. The cows and the maidens and their matrimony and joy depend on you. The wealth and honour of admirers depends on you. Devotees of sacred vows and yoga practices court your love and friendship. And divine personalities of nature and humanity both are keen to realise your energy, virility and creativity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The company of enlightened persons is beneficial to all.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O mighty and active person ! Like the horse, the learned among the graceful persons, seek your friendship. The enlightened persons favorably measure your vigor well and consequently the aircrafts, ordinary men, kine and supremacy follow them.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As men go through the fire and aero planes etc. they acquire the scientific and other knowledge from teachers and preachers. Those who form friendship with enlightened persons become powerful men of truthful character.

    Foot Notes

    (रथः) विमाना नियानम् = Aircraft and other good vehicles. (कनीनाम् ) कामयामाननां जनानाम् = Of graceful persons.

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