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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 23/ मन्त्र 20
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - आपः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    अ॒प्सु मे॒ सोमो॑ अब्रवीद॒न्तर्विश्वा॑नि भेष॒जा। अ॒ग्निं च॑ वि॒श्वश॑म्भुव॒माप॑श्च वि॒श्वभे॑षजीः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प्ऽसु । मे॒ । सोमः॑ । अ॒ब्र॒वी॒त् । अ॒न्तः । विश्वा॑नि । भे॒ष॒जा । अ॒ग्निम् । च॒ । वि॒श्वऽश॑म्भुवम् । आपः॑ । च॒ । वि॒श्वऽभे॑षजीः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा। अग्निं च विश्वशम्भुवमापश्च विश्वभेषजीः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप्ऽसु। मे। सोमः। अब्रवीत्। अन्तः। विश्वानि। भेषजा। अग्निम्। च। विश्वऽशम्भुवम्। आपः। च। विश्वऽभेषजीः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 23; मन्त्र » 20
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ताः कीदृश्य इत्युपदिश्यते।

    अन्वयः

    यथाऽयं सोमो मे मह्यमप्स्वन्तर्विश्वानि भेषजौषधानि विश्वशंभुवमग्निं चाब्रवीज्ज्ञापयत्येवं विश्वभेषजीरापः स्वासु सोमाद्यानि विश्वानि भेषजौषधानि विश्वशंभुवमग्निं चाब्रुवन् ज्ञापयन्ति॥२०॥

    पदार्थः

    (अप्सु) जलेषु (मे) मह्यम् (सोमः) ओषधिराजश्चन्द्रमाः सोमलताख्यरसो वा (अब्रवीत्) ज्ञापयति। अत्र लडर्थे लुङन्तर्गतो ण्यर्थः प्रसिद्धीकरणं धात्वर्थश्च। (अन्तः) मध्ये (विश्वानि) सर्वाणि (भेषजा) औषधानि। अत्र शेश्छन्दसि बहुलम् इति लोपः (अग्निम्) विद्युदाख्यम् (च) समुच्चये (विश्वशंभुवम्) यः सर्वस्मै जगते शं सुखं भावयति प्रकटयति तम्। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः क्विप् च इति क्विप्। (आपः) जलानि (च) समुच्चये (विश्वभेषजीः) विश्वाः सर्वा भेषज्य ओषध्यो यासु ताः। अत्र केवलमाम० (अष्टा०४.१.३०) अनेन भेषजशब्दान्ङीप् प्रत्ययः॥२०॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वे पदार्थाः स्वगुणैः स्वान् प्रकाशयन्ति तथौषधिगणपुष्टिकारकश्चन्द्रमा ओषधिगणग्राह्याणीति प्रकाशयन्त्यः सर्वौषधिहेतव आपः स्वान्तर्गतं समस्तकल्याणहेतुं स्तनयित्नुं प्रकाशयन्त्यर्थात् जलगतमौषधनिमित्तजलगतमग्निनिमित्तं चास्तीति वेद्यम्॥२०॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वे जल किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    जैसे यह (सोमः) ओषधियों का राजा चन्द्रमा वा सोमलता (मे) मेरे लिये (अप्सु) जलों के (अन्तः) बीच में (विश्वानि) सब (भेषजा) ओषधि (च) तथा (विश्वशंभुवम्) सब जगत् के लिये सुख करनेवाले (अग्निम्) बिजुली को (अब्रवीत्) प्रसिद्ध करता है, इसी प्रकार (विश्वभेषजीः) जिनके निमित्त से सब ओषधियाँ होती हैं, वे (आपः) जल भी अपने में उक्त सब ओषधियों और उक्त गुणवाले अग्नि को जानते हैं॥२०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सब पदार्थ अपने गुणों से अपने-अपने स्वभावों और उनमें ओषधियों की पुष्टि करानेवाला चन्द्रमा और जो ओषधियों में मुख्य सोमलता है, ये दोनों जल के निमित्त और ग्रहण करने योग्य सब ओषधियों का प्रकाश करते हैं, वैसे सब ओषधियों के हेतु जल अपने अन्तर्गत समस्त सुखों का हेतु मेघ का प्रकाश और जो जलों में ओषधियों का निमित्त और जो जल में अग्नि का निमित्त है, ऐसा जानना चाहिये॥२०॥

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    विषय

    फिर वे जल किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    यथा अयं सोमः मे (मह्यम्) अप्सु अन्तः विश्वानि (भेषजा)औषधानि विश्वशंभुवम् अग्निं च (अब्रवीत्)ज्ञापयति एवं विश्वभेषजजीः आपः स्वासु सोमात् यानि विश्वानि (भेषजा)औषधानि विश्वशंभुवम् अग्निं च अब्रुवन् ज्ञापयन्ति॥२०॥

    पदार्थ

    (यथा)=जैसे, (अयम्)=यह, (सोमः) ओषधिराजश्चन्द्रमाः सोमलताख्यरसो वा=ओषधियों का राजा चन्द्रमा वा सोमलता, (मे) मह्यम्=मेरे लिये, (अप्सु) जलेषु=जलों के, (अन्तः) मध्ये=बीच में, (विश्वानि)=समस्त, (भेषजा) औषधानि=औषधियां, (विश्वशंभुवम्) यः सर्वस्मै जगते शं सुखं भावयति प्रकटयति तम्=सब जगत् के लिये सुख करनेवाले, (अग्निम्)=बिजली को, (च) समुच्चये=और, (अब्रवीत्) ज्ञापयति=घोषित करता है, (एवम्)=ऐसे ही, (विश्वभेषजीः) विश्वाः सर्वा भेषज्य ओषध्यो यासु ताः=जिनके निमित्त से सब ओषधियाँ होती हैं, वे, (आपः) जलानि=जलों के, (स्वासु)=प्राणों में, (सोमात्)=सोम से (यानि)=जो, (विश्वानि) सर्वाणि=समस्त, (भेषजा) औषधानि=औषधियां, (विश्वशंभुवम्) यः सर्वस्मै जगते शं सुखं भावयति प्रकटयति तम्=सब जगत् के लिये सुख करनेवाले, (अग्निम्) विद्युदाख्यम्= बिजली को, (च) समुच्चये=और, (अब्रुवन्) ज्ञापयन्ति=घोषित करते हैं॥२०॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सब पदार्थ अपने गुणों से अपने को प्रकाशित करते है और ओषधि समूहों की पुष्टि करानेवाला चन्द्रमा ओषधि समूहों  को ग्रहण करते और प्रकाशित करते  हुए समस्त ओषधियों के कारण जल  मुख्य सोमलता है, ये दोनों जल के निमित्त और ग्रहण करने योग्य सब ओषधियों का प्रकाश करते हैं, वैसे सब ओषधियों के हेतु जल अपने अन्तर्गत समस्त मेघों का प्रकाश करते हैं अर्थात्  जो जलों में ओषधियों का निमित्त और जो जल में अग्नि का निमित्त है, ऐसा जानना चाहिये॥२०॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

     (यथा) जैसे (अयम्) यह (सोमः) ओषधियों का राजा चन्द्रमा या सोमलता (मे) मेरे लिये (अप्सु)  जलों के (अन्तः) बीच में (विश्वानि) समस्त (भेषजा) ओषधियों के द्वारा (विश्वशंभुवम्) सब जगत् के लिये सुख प्रदान करने वाले (च) और (अग्निम्) बिजली को (अब्रवीत्) प्रकट करता है, (एवम्) ऐसे ही (विश्वभेषजीः) जिनके निमित्त से सब ओषधियाँ होती हैं, वे (आपः) जलों और (स्वासु) प्राणों में (सोमात्) सोम से (यानि) जो (विश्वानि) समस्त (भेषजा) ओषधियां (च) और (विश्वशंभुवम्) सारे जगत् के लिये सुख प्रदान करने वाले (अग्निम्) बिजली को (अब्रुवन्) प्रकट करते हैं॥२०॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (अप्सु) जलेषु (मे) मह्यम् (सोमः) ओषधिराजश्चन्द्रमाः सोमलताख्यरसो वा (अब्रवीत्) ज्ञापयति। अत्र लडर्थे लुङन्तर्गतो ण्यर्थः प्रसिद्धीकरणं धात्वर्थश्च। (अन्तः) मध्ये (विश्वानि) सर्वाणि (भेषजा) औषधानि। अत्र शेश्छन्दसि बहुलम् इति लोपः (अग्निम्) विद्युदाख्यम् (च) समुच्चये (विश्वशंभुवम्) यः सर्वस्मै जगते शं सुखं भावयति प्रकटयति तम्। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः क्विप् च इति क्विप्। (आपः) जलानि (च) समुच्चये (विश्वभेषजीः) विश्वाः सर्वा भेषज्य ओषध्यो यासु ताः। अत्र केवलमाम० (अष्टा०४.१.३०) अनेन भेषजशब्दान्ङीप् प्रत्ययः॥२०॥
    विषयः- पुनस्ताः कीदृश्य इत्युपदिश्यते।

    अन्वयः- यथाऽयं सोमो मे मह्यमप्स्वन्तर्विश्वानि भेषजौषधानि विश्वशंभुवमग्निं चाब्रवीज्ज्ञापयत्येवं विश्वभेषजीरापः स्वासु सोमाद्यानि विश्वानि भेषजौषधानि विश्वशंभुवमग्निं चाब्रुवन् ज्ञापयन्ति॥२०॥

    भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वे पदार्थाः स्वगुणैः स्वान् प्रकाशयन्ति तथौषधिगणपुष्टिकारकश्चन्द्रमा ओषधिगणग्राह्याणीति प्रकाशयन्त्यः सर्वौषधिहेतव आपः स्वान्तर्गतं समस्तकल्याणहेतुं स्तनयित्नुं प्रकाशयन्त्यर्थात् जलगतमौषधनिमित्तजलगतमग्निनिमित्तं चास्तीति वेद्यम्॥२०॥

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    विषय

    गर्म पानी [जल+अग्नि]

    पदार्थ

    १. (सोमः) - सोमादि ओषधियों के गुणों के पूर्णतया ज्ञाता उस सर्वमहान् वैद्य प्रभु ने (मे) - मुझे (अब्रवीत्) - कहा कि (अप्सु - अन्तः) - जलों में (विश्वानि भेषजा) - सब औषध विद्यमान हैं , अर्थात् ये जल रोगमात्र के औषध हैं । "जल घातने" धातु से बनकर इसी भाव को कह रहा है कि जल सब रोगों को नष्ट करनेवाले हैं । 

    २. (च) - और सोम ने मुझे यह भी कहा कि (अग्निं विश्व - शं - भुवम्) - अग्नि सब शक्तियों को देनेवाली है । जब यह जल में प्रविष्ट होती है और जल को गर्म कर देती है तब यह गर्मजल रोगमात्र को शमन करनेवाला होता है और मनुष्य को शान्ति प्राप्त कराता है । 

    ३. (च) - और अग्नि से मिलने पर (आपः) - जल (विश्वभेषजीः) - सभी रोगों के भेषज हैं । इस प्रकार ये जल 'ज' जन्म से 'ल' लयपर्यन्त उपयोगी हैं । ये 'आपः ' हैं , हमारे जीवन में व्याप्त रहकर कार्य करनेवाले हैं । यहाँ मन्त्र के तृतीय चरण का सायणकृत अर्थ यह है कि सोम ने इन सब शक्तियों को देनेवाली अग्नि को भी जलों में कहा है , अर्थात् जलों में उस अग्नि का निवास है जो विविध कल्याणों को करनेवाली है । वस्तुतः यहाँ सूर्य - रश्मियों के द्वारा भावित जलों में विद्यमान विविध प्रभावयुक्त जीवनदायी विद्युतों की ओर संकेत है । यह हमारे नाना यन्त्रों का संचालन करनेवाली है और इस प्रकार कितने ही कष्टों का प्रतिकार कर देती है । 

    भावार्थ

    भावार्थ - जलों में सब औषध हैं और जब अग्नि जलों के साथ मिल जाती है तब यह सब कल्याण - ही - कल्याण करनेवाली होती है , तब जल रोगमात्र को दूर करनेवाले होते हैं । 

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    विषय

    आप्त पुरुषों, जलों और प्रजाजनों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( सोमः ) सब ओषधियों में उत्तम सोम नामक लता ही यह ( मे ) मुझे ( अब्रवीत् ) बतलाता है कि ( अप्सु अन्तः ) जलों के भीतर ही ( विश्वानि ) सब प्रकार के ( भेषजा ) रोगों को दूर करने के सामर्थ्य हैं । और वह सोम ही जलों में ( विश्वशम्भुवम् ) समस्त जगत् को सुख शान्ति देने वाले ( अग्निं च ) अग्नि को भी बतलाता है । और ( आपः च ) जलों को ही ( विश्वभेषजीः ) समस्त दुःखों के दूर करने का उपाय बतलाता है । आप्तों के पक्ष में स्पष्ट है। उनमें ही ज्ञान और उनसे ही सब रोग शान्ति के उपाय प्राप्त होते हैं, यह बात विद्वान् शिष्य बतलाता है । इत्येकादशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १- २४ मेधातिथिः काण्व ऋषिः ॥ देवता—१ वायुः । २, ३ इन्द्रवायू । ४-६ मित्रावरुणौ । ७-९ इन्द्रो मरुत्वान् । १०-१२ विश्वे देवाः । १३-१५ पूषा १६-२२ आपः । २३-२४ अग्नः । छन्दः—१-१८ गायत्री । १९ पुर उष्णिक्। २० अनुष्टुप्। २१ प्रतिष्ठा । २२-२४ अनुष्टुभः ॥ चतुर्विशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सर्व पदार्थ आपापल्या गुणांनी आपापल्या स्वभावाला प्रकट करतात व औषधी पुष्ट करणारा चंद्र व औषधांमध्ये मुख्य सोमलता हे दोन्ही जलाचे निमित्त असून, ग्रहण करण्यायोग्य सर्व औषधींना प्रकट करतात तसे सर्व औषधींचा हेतू असलेले जल आपल्या अंतर्गत संपूर्ण सुखाचा हेतू असून मेघाचा प्रकाश, जलातील औषधीचे निमित्त व अग्नीचे निमित्त आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥ २० ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Soma, the moon and the herbs, creates and shows there is universal medicine in the waters for me. And the waters, universal medicine, create the vital heat of life which is the universal sustainer of us all.

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    Subject of the mantra

    Then, what kind of those waters are, this subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    (yathā)=As, (ayam)=this, (somaḥ)=the king of the moon or that of herbs named as (me)=for me, (apsu)=of waters, (antaḥ)=inside, (viśvāni)=all, (bheṣajā)=by herbs, (viśvaśaṃbhuvam)=provider of delight to all world, (ca)=and, (agnim)=to the electricity, (abravīt) =reveal, (evam)=in the same way, (viśvabheṣajīḥ) =for whose cause are all the herbs, they, (āpaḥ)=waters, [aur]=and, (svāsu)=in the life breath, (somāt)=by the soma herb, (yāni)=which, (viśvāni)=all, (bheṣajā)=herbs, (ca)=and, (viśvaśaṃbhuvam) =provider of delight to all world, (agnim)=the electricity, (abruvan)=manifest.

    English Translation (K.K.V.)

    As for me, this king of the Moon or that of herbs, named as Somalatᾱ, inside the waters; reveal for me by all herbs, provider of delight to all worlds and provider of the electricity, in the same way for whose cause are all the herbs, they in the waters and in life breath by the Soma herb, which manifest all herbs and is provider of delight to all the worlds and electricity.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    There is latent vocal simile as figurative in this mantra. Just as all the substances illuminate themselves by their properties and the Moon, which nourishes the herbal medicine groups, while receiving and manifesting the medicine groups, water is the main softness due to all the medicines, both of these are the cause of water and give light to all the medicines which are acceptable. In the same way, for all the herbs, the water manifests all the clouds within it, that is, the one who is the cause of herbs in the waters and the one who is the cause of fire in the water, should be known like this.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How are they (The Waters) is taught again in the next Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Soma (Moon the king of all herbs or the Soma-moon creeper) denotes to me that within the waters dwell all balms that heal. The waters contain all healing herbs. The Agni particularly in the form of electricity is also the benefactor of the Universe.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (सोम:) ओषधिराजश्चन्द्रमा सोमलताख्यरसोवा = Moon the king of all herbs and the Juice of the moon-creeper. (अब्रवीत् ) ज्ञापयति । अत्र लडथै लुङ् अन्तर्गतोण्यर्थ प्रसिद्धीकरणधात्वर्थश्च । = Denotes or manifests.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As all substances reveal themselves through their properties, so the moon that nourishes all medicinal herbs and plants and Soma-the moon creeper tell us (so to speak) that the waters contain all healing powers.

    Translator's Notes

    By Soma we also may take besides the above meaning-Vaidya or physician of clam nature. सौम्यस्वभावो वैद्य: Rishi Dayananda in his commentary on Yaj. 24. 22 has interpreted सोम as सोमवल्लीव सर्वरोगनाशक: The destroyer of all diseases like the Soma Plant. In that case, the meaning becomes clearer. Hydropathy discovered by Lui Kuhni and others clearly substantiates the statement about the healing powers of the water contained in these and other mantras.

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