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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 27/ मन्त्र 9
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स वाजं॑ वि॒श्वच॑र्षणि॒रर्व॑द्भिरस्तु॒ तरु॑ता। विप्रे॑भिरस्तु॒ सनि॑ता॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । वाज॑म् । वि॒श्वऽच॑र्षणिः । अर्व॑त्ऽभिः । अ॒स्तु॒ । तरु॑ता । विप्रे॑भिः । अ॒स्तु॒ । सनि॑ता ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वाजं विश्वचर्षणिरर्वद्भिरस्तु तरुता। विप्रेभिरस्तु सनिता॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। वाजम्। विश्वऽचर्षणिः। अर्वत्ऽभिः। अस्तु। तरुता। विप्रेभिः। अस्तु। सनिता॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 27; मन्त्र » 9
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    यो विश्वचर्षणिस्तरुता सेनाध्यक्षोऽस्माकं सेनायां विप्रेभिर्नरैरर्वद्भिरश्वादिभिः सहितः सन्नो वाजं विजयप्रदः शत्रूणां पराजयकृदस्तु भवेत्, स एवास्माकं मध्ये सेनापतिरस्तु॥९॥

    पदार्थः

    (सः) सेनाध्यक्षः (वाजम्) संग्रामम् (विश्वचर्षणिः) विश्वे सर्वे चर्षणयो मनुष्या रक्ष्या यस्य सः। अत्र कृषेरादेश्च चः। (उणा०२.१००) अनेनानि प्रत्यय आदेश्चकारादेशश्च। (अर्वद्भिः) सेनास्थैरश्वादिभिः सेनाङ्गैः। अर्वा इत्यश्वनामसु पठितम्। (निघं०१.१४) (अस्तु) भवतु (तरुता) तर्त्ता तारयिता पारंगमयिता। ग्रसितस्कभितस्तभि० (अष्टा०७.२.३४) अनेनायं निपातितः। (विप्रेभिः) मेधाविभिः सह। अत्र बहुलं छन्दसि इति भिस ऐस् न। (अस्तु) भवतु (सनिता) ज्ञानस्य सुखस्य विभक्ता॥९॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्यः सर्वदुःखेभ्यः पारं गमयिता युद्धे विजयप्रापको युद्धकुशलो धार्मिको विद्वान् भवेत्, स एव नः सेनास्वामी भवतु॥९॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    जो (विश्वचर्षणिः) जिसके सब मनुष्य रक्षा के योग्य (तरुता) शत्रुनिमित्तक दुःखों के पार पहुँचने-पहुँचानेवाला (सनिता) ज्ञान और सुख का विभाग करके देनेहारा सेनापति हमारी सेना में (विप्रेभिः) बुद्धिचातुर्ययुक्त पुरुष (अर्वद्भिः) घोड़े आदि से सहित हो, हमको (वाजम्) युद्ध में विजय की प्राप्ति और शत्रुओं का पराजय करने हारा सेनापति है, वही हमारे बीच में सेना स्वामी (अस्तु) हो॥९॥

    भावार्थ

    जो मनुष्यों को सब दुःखरूपी सागर से पार करने और युद्ध में विजय देनेवाला विद्वान् है, वही अच्छे विद्वानों के समागम से सेना का अधिपति होने योग्य है॥९॥

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    विषय

    फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    यः विश्वचर्षणिः तरुता सेनाध्यक्षः अस्माकं सेनायां विप्रेभिः नरैः अर्वद्भिःअश्वादिभिः सहितः सन् नः वाजं विजयप्रदः शत्रूणां पराजयकृत् अस्तु भवेत् स एव अस्माकं मध्ये सेनापतिः अस्तु॥९॥

    पदार्थ

    (यः)=जो,  (विश्वचर्षणिः) विश्वे सर्वे चर्षणयो मनुष्या रक्ष्या यस्य सः=जिसके सब मनुष्य रक्षा के योग्य हैं, (तरुता) तर्त्ता तारयिता पारंगमयिता=शत्रुनिमित्तक दुःखों के पार पहुँचने-पहुँचानेवाला, (सेनाध्यक्षः)=सेनाध्यक्ष, (अस्माकम्)=हमारे, (सेनायाम्)=सेना के, (विप्रेभिः) मेधाविभिः सहबुद्धिचातुर्ययुक्त पुरुष=बुद्धिचातुर्ययुक्त पुरुष (नरैः)=मनुष्यों के लिये, (अर्वद्भिः) सेनास्थैरश्वादिभिः सेनाङ्गैः=घोड़े आदि सेना के अङ्गो (सहितः+सन्)=सहित होते हुए, (नः)=हमारे, (वाजम्) संग्रामम्=युद्ध में, (विजयप्रदः)=विजय की प्राप्ति, (शत्रूणाम्)=और शत्रुओं को (पराजयकृत्)=पराजित करनेवाला सेनापति, (अस्तु) भवेत्=हो, (सः) सेनाध्यक्षः=सेनाध्यक्ष, (एव)=ही, (अस्माकम्)=हमारे, (मध्ये)=बीच में, (सेनापतिः)= सेनापतिः (अस्तु) भवतु=हो  ॥९॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    मनुष्यों को सब दुःखों से पार करके युद्ध में विजय करनेवाला  युद्ध में कुशल धार्मिक विद्वान् बनना चाहिए , वही हमारी सेना का स्वामी हो॥९॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    (यः) जो (सेनाध्यक्षः) सेनाध्यक्ष (विश्वचर्षणिः) जिसके लिये सब मनुष्य रक्षा के योग्य हैं। वह (तरुता) शत्रु निमित्तक दुःखों के पार पहुँचाने वाला है । (अस्माकम्) हमारे (सेनायाम्) सेना के (विप्रेभिः) बुद्धि चातुर्य युक्त (नरैः) मनुष्यों के लिये (अर्वद्भिः)  घोड़े आदि सेना के अङ्ग (सहितः+सन्) सहित होते हुए (नः) हमारे (वाजम्)  युद्ध में  (विजयप्रदः) विजय की प्राप्ति (शत्रूणाम्) और शत्रुओं को (पराजयकृत्) पराजित करनेवाला सेनापति (अस्तु) हो। (सः)  सेनाध्यक्ष (एव) ही (अस्माकम्) हमारे (मध्ये) बीच में (सेनापतिः) सेनापति (अस्तु) हो॥९॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (सः) सेनाध्यक्षः (वाजम्) संग्रामम् (विश्वचर्षणिः) विश्वे सर्वे चर्षणयो मनुष्या रक्ष्या यस्य सः। अत्र कृषेरादेश्च चः। (उणा०२.१००) अनेनानि प्रत्यय आदेश्चकारादेशश्च। (अर्वद्भिः) सेनास्थैरश्वादिभिः सेनाङ्गैः। अर्वा इत्यश्वनामसु पठितम्। (निघं०१.१४) (अस्तु) भवतु (तरुता) तर्त्ता तारयिता पारंगमयिता। ग्रसितस्कभितस्तभि० (अष्टा०७.२.३४) अनेनायं निपातितः। (विप्रेभिः) मेधाविभिः सह। अत्र बहुलं छन्दसि इति भिस ऐस् न। (अस्तु) भवतु (सनिता) ज्ञानस्य सुखस्य विभक्ता॥९॥
    विषयः- पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः- यो विश्वचर्षणिस्तरुता सेनाध्यक्षोऽस्माकं सेनायां विप्रेभिर्नरैरर्वद्भिरश्वादिभिः सहितः सन्नो वाजं विजयप्रदः शत्रूणां पराजयकृदस्तु भवेत्, स एवास्माकं मध्ये सेनापतिरस्तु॥९॥

    भावार्थः(महर्षिकृतः)- मनुष्यैर्यः सर्वदुःखेभ्यः पारं गमयिता युद्धे विजयप्रापको युद्धकुशलो धार्मिको विद्वान् भवेत्, स एव नः सेनास्वामी भवतु॥९॥

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    विषय

    क्रियाशीलता व सत्सङ्ग

    पदार्थ

    १. प्रभुभक्त सदा क्रियाशील होता है । सदा श्रमशील होने से यह 'विश्वचर्षणिः' कहलाता है । "विश्वस्मिन् चर्षणिः" (स विश्वचर्षणिः) - यह सदा क्रियाशील प्रभुभक्त (अर्वद्भि) - अपने इन्द्रियरूप अश्वों से (वाजम्) - संग्राम को (तरुता) - तैर जानेवाला (अस्तु) - हो । श्रमशील को वासनाएँ आक्रान्त ही नहीं कर पातीं । 

    २. यह विश्वचर्षणि (विप्रेभिः) - ज्ञानी विद्वानों के साथ (सनिता) - संभजन करनेवाला (अस्तु) - हो , अर्थात् इनके सङ्ग में रहनेवाला हो । ज्ञानियों के सङ्ग में रहकर यह अपने ज्ञान को बढ़ाता हुआ अपने जीवन को पवित्र बना पाएगा । 

    भावार्थ

    भावार्थ - क्रियाशीलता व सत्सङ्ग - दो उपायों से हम जीवन - यात्रा को ठीक से पूरा कर पाते हैं । 

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    विषय

    पराक्रमी सेनापति, विद्वान् नायक

    भावार्थ

    ( सः ) वह ( विश्वचर्षणिः ) समस्त प्रजा का द्रष्टा, सब पर रक्षा के निमित्त दृष्टि रखने वाला, ( अर्वद्भिः ) अश्व आदि तुरंग बलों, से ( वाजं तरुता ) संग्राम को पार करता, और ( विप्रेभिः ) विद्वान् बुद्धिमान् पुरुषों के द्वारा ( वाजं सनिता ) अन्न, ऐश्वर्य और ज्ञान को समस्त प्रजा में विभक्त करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुनःशेप आजीगर्तिऋषिः । देवता—१-१२ अग्निः। १३ विश्वेदेवाः । छन्द:—१–१२ गायत्र्यः । १३ त्रिष्टुप् । त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो माणसांना सर्व दुःखसागरातून पार करविणारा व युद्धात विजय प्राप्त करून देणारा, धार्मिक युद्धकुशल विद्वान असतो तो सेनेचा अधिपती होण्यायोग्य असतो. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    May he, protector of humanity, be the winner of battle for progress with the horses that run fast and reach the goal. With the scholars and sages, may he be the generous benefactor and saviour of the people.

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    Subject of the mantra

    Then, what kind of he is? This subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    (yaḥ)=That, (senādhyakṣaḥ) Army Chief, (viśvacarṣaṇiḥ)=for whom all human beings are worthy of protection, (tarutā)=that is one who removes the sorrows caused by the enemy, (asmākam)=for us, (senāyām)=of forces, (viprebhiḥ)=together with wit, (naraiḥ)=for men, (arvadbhiḥ)=parts of the forces like horses etc. (sahitaḥ+san)= being together, (naḥ)=our,(vājam)=In the war, (vijayapradaḥ)=for attainment of victory, (śatrūṇām)=and to enemies, (parājayakṛt)=the commander who defeats, (astu)=be, (saḥ)=Head of the Army, (eva)(asmākam)=our, (madhye)=among, (senāpatiḥ)=Army Chief, (astu)=be.

    English Translation (K.K.V.)

    The army chief for whom all humans are protection worthy. He is the one who takes you beyond the sorrows caused by the enemy. May you be the commander in chief who brings victory in our war and defeats the enemies, being part of the army, including horses et cetera. The army chief should be the commander in our midst.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    Human beings should overcome all sorrows and become a skilled righteous scholar in the war, the winner, he be the master of our army.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is Agni is taught in the ninth Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    May the person who considers it to be his duty to protect all people, who takes us away from miseries, followed by wise heroes and possessing a good army of the horses, elephants who leads us to victory defeating our enemies, be our commander-in-chief and giver of happiness to us.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (विश्वचर्षणि ) विश्वे सर्वे चर्षणयः- मनुष्याः रक्ष्या येन सः। अत्र कृषेरादेशच चः (उणा० २.१० ) अनेन अनिः प्रत्ययः आदेः चकारादेशः च ।। = One who has to protect all persons. (तरुता) तर्ता तारयिता पारं गमयिता ग्रसित स्कभितस्तमतोत्तभितचत्त विकस्ता विशस्तृशंस्तुशास्तृतरुतृतरूतृ इति च (अष्टा० ७,२,३४) अनेनायं निपातितः ।। ४ = Take across miseries.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    He alone should be appointed as the commander of an army who takes people away from miseries, leads them to victory and is expert in the military science, being at the same time a righteous person.

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