ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 119/ मन्त्र 12
ऋषि: - लबः ऐन्द्रः
देवता - आत्मस्तुतिः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒हम॑स्मि महाम॒हो॑ऽभिन॒भ्यमुदी॑षितः । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हम् । अ॒स्मि॒ । म॒हा॒ऽम॒हः । अ॒भि॒ऽन॒भ्यम् । उ॒त्ऽई॑षितः । कु॒वित् । सोम॑स्य । अपा॑म् । इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अहमस्मि महामहोऽभिनभ्यमुदीषितः । कुवित्सोमस्यापामिति ॥
स्वर रहित पद पाठअहम् । अस्मि । महाऽमहः । अभिऽनभ्यम् । उत्ऽईषितः । कुवित् । सोमस्य । अपाम् । इति ॥ १०.११९.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 119; मन्त्र » 12
अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 6
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अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(अहं महामहः) मैं महाप्राण दीर्घायु होता हुआ (अभिनभ्यम्) अन्तरिक्ष के प्रति (उदीषितः) ऊपर उठे हुए सूर्य की भाँति मोक्ष में हूँ (कुवित्०) पूर्ववत् ॥१२॥
भावार्थ
परमात्मा के आनन्दरस का बहुत पान करनेवाला उपासक अन्तरिक्ष में उठे सूर्य की भाँति मोक्ष में पहुँचा हुआ महादीर्घ जीवन प्राप्त करता है ॥१२॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अहं महामहः-अभिनभ्यम्-उदीषितः) अहं नभ्यमन्तरिक्षमभि खलूदयं गतः सूर्य इव मोक्षेऽभिभवामि “प्राण-एव महः” [गो० १।५।१५] महाप्राणः सन् संसारेऽभि भवामि ॥१२॥
English (1)
Meaning
I am greatest of the greats, shining bright, radiating upwards to the skies and spaces, for I have drunk of the soma of the spirit divine.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्म्याच्या आनंदरसाचा अधिक पान करणारा उपासक अंतरिक्षात असलेल्या सूर्याप्रमाणे मोक्षात पोचून महादीर्घजीवन प्राप्त करतो. ॥१२॥
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