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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 43/ मन्त्र 6
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्र: छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    विशं॑विशं म॒घवा॒ पर्य॑शायत॒ जना॑नां॒ धेना॑ अव॒चाक॑श॒द्वृषा॑ । यस्याह॑ श॒क्रः सव॑नेषु॒ रण्य॑ति॒ स ती॒व्रैः सोमै॑: सहते पृतन्य॒तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश॑म्ऽविशम् । म॒घऽवा॑ । परि॑ । अ॒शा॒य॒त॒ । जना॑नाम् । धेनाः॑ । अ॒व॒ऽचाक॑शत् । वृषा॑ । यस्य । अह॑ । श॒क्रः । सव॑नेषु । रण्य॑ति । सः । ती॒व्रैः । सोमैः॑ । स॒ह॒ते॒ । पृ॒त॒न्य॒तः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विशंविशं मघवा पर्यशायत जनानां धेना अवचाकशद्वृषा । यस्याह शक्रः सवनेषु रण्यति स तीव्रैः सोमै: सहते पृतन्यतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विशम्ऽविशम् । मघऽवा । परि । अशायत । जनानाम् । धेनाः । अवऽचाकशत् । वृषा । यस्य । अह । शक्रः । सवनेषु । रण्यति । सः । तीव्रैः । सोमैः । सहते । पृतन्यतः ॥ १०.४३.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 43; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (मघवा) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (विशं विशं परि अशायत) मनुष्यादि प्राणिमात्र को प्राप्त है (वृषा जनानां धेनाः-अव चाकशत्) कामनाओं का बरसानेवाला मनुष्यों के स्तुतिवचनों को जानता है (यस्य-अह सवनेषु) जिस स्तोता के स्तुतिप्रसङ्गों में (तीव्रैः सोमैः शक्रः-रण्यति) जिसके प्रवृद्ध उपासनाप्रकारों में शक्तिमान् परमात्मा रमण करता है-प्रसन्न होता है (पृतन्यतः-सहते) उस स्तोता के शत्रुओं को-कामादि शत्रुओं को दबाता है-नष्ट करता है ॥६॥

    भावार्थ

    परमात्मा प्रत्येक मनुष्यादि प्राणी का अन्तःसाक्षी है, वह स्तुतिकर्ता मनुष्य की स्तुतिवाणी को जानता है। वह समस्त स्तुतिप्रसङ्गों में रमण करता है। स्तुति करनेवाले के कामादि शत्रुओं को नष्ट करता है ॥६॥

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    विषय

    शत्रु- मर्षण

    पदार्थ

    [१] (मघवा) = सम्पूर्ण ऐश्वर्यों का स्वामी प्रभु (विशं विशम्) = प्रत्येक प्रजा में (पर्यशायत) = निवास करता है। प्रभु में ही सारी प्रजाओं का निवास है और वे प्रभु ही सब प्रजाओं में वस रहे हैं। [२] (वृषा) = वे सब सुखों के वर्षण करनेवाले प्रभु (जनानाम्) = लोगों के साथ सम्बद्ध (धेनाः) = ज्ञान की वाणियों को (अवचाकशत्) = हृदयस्थ-रूपेण उपदिष्ट करते हैं। [कश गतिशासनयो: ] । इन वाणियों के अनुसार कार्यों को व्यवस्थित करने पर ही हमारे कल्याण का निर्भर है । [३] (अह) = अब (शक्रः) = इन्द्र - सर्वशक्तिमान् प्रभु (यस्य) = जिस व्यक्ति के (सवनेषु) = यशों में (रण्यति) = आनन्द का अनुभव करते हैं (स) = वह (तीव्रैः) = प्रबल (सोमैः) = सोमकणों के द्वारा (पृतन्यतः) = आधि-व्याधियों के रूप में आक्रमण करनेवाली वासनाओं को सहते पराभूत करता है, कुचल देता है । वासनाओं को जीतकर वह शरीर और मन में स्वस्थ बनता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु सब के हृदयों में निवास करते हैं, ज्ञान की वाणियों का उपदेश करते हैं । उनके अनुसार यज्ञशील होने पर हम सोम का रक्षण कर पाते हैं। इन तीव्र सोमकणों से हम रोगादि को जीत पाते हैं। शरीर व्याधिशून्य होता है तो मन आधियों से शून्य ।

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    विषय

    राजा प्रजा के सुखों का सदा ध्यान रक्खे और शत्रुओं का विजय करे।

    भावार्थ

    (मघवा) उत्तम ऐश्वर्य का स्वामी, राजा (विशं विशं परि अशायत) प्रजा प्रजा के ऊपर सुख से शासन करता हुआ, उनकी वृद्धि करे। और वह (वृषा) मेघ वा सूर्य के समान प्रजाओं पर सुखों की वर्षा करने और उनका उत्तम प्रबन्ध करने वाला पुरुष (जनानां धेनाः अव चाकशत्) सब मनुष्यों की वाणियों, प्रार्थनाओं को देखे, सुने, उन पर ध्यान दे। (शक्रः) शक्तिशाली पुरुष (यस्य) जिस प्रजाजन के (सवनेषु) ऐश्वर्यों के बीच में (रण्यति) आनन्द सुख लाभ करता है, (सः) वह (तीव्रैः सोमैः) तीव्र, वेगगामी, उत्तम नायकों और विद्वान् पुरुषों द्वारा (पृतन्यतः सहते) सेनाओं द्वारा युद्ध करके शत्रुओं को भी पराजित करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः कृष्णः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, ९ निचृज्जगती। २ आर्ची स्वराड् जगती। ३, ६ जगती। ४, ५, ८ विराड् जगती। १० विराट् त्रिष्टुप्। ११ त्रिष्टुप्। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (मघवा) ऐश्वर्यवान् परमात्मा (विशं विशं पर्यशायत) मनुष्यादिप्राणिमात्रं परिप्राप्नोति (वृषा जनानां धेनाः-अवचाकशत्) कामानां वर्षयिता मनुष्याणां स्तुतिवाचः “धेना वाङ्नाम” [निघ० १।११] पश्यति जानाति (यस्य-अह सवनेषु) यस्य स्तोतुर्हि स्तुतिप्रसङ्गेषु (तीव्रैः सोमैः शक्रः-रण्यति) प्रवृद्धैरुपासनाप्रकारैः शक्तिमान् परमात्मा रमते (पृतन्यतः सहते) तस्य स्तोतुः संग्रामं कुर्वतः कामादीन् शत्रून् सहते-अभिभवति-नाशयति ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The lord of glory abides with all people of the world whosoever they be. The generous lord knows, listens and grants all prayers of the people. Whosoever the devotee whose yajnas the mighty one joins and enjoys, that celebrant wins over all his rivals and adversaries by the power of his ardent soma offerings of holy action in yajna.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा प्रत्येक मनुष्य इत्यादी प्राण्याचा अंत:साक्षी आहे. तो स्तुतिकर्त्या माणसाची स्तुतिवाणी जाणतो. तो संपूर्ण स्तुती प्रसंगी रमण करतो. स्तुती करणाऱ्याचे काम इत्यादी शत्रू नष्ट करतो. ॥६॥

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