Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 58 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 58/ मन्त्र 2
    ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः देवता - मन आवर्त्तनम् छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यत्ते॒ दिवं॒ यत्पृ॑थि॒वीं मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ते॒ । दिव॑म् । यत् । पृ॒थि॒वीम् । मनः॑ । ज॒गाम॑ । दूर॒कम् । तत् । ते॒ । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । इ॒ह । क्षया॑य । जी॒वसे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्ते दिवं यत्पृथिवीं मनो जगाम दूरकम् । तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । ते । दिवम् । यत् । पृथिवीम् । मनः । जगाम । दूरकम् । तत् । ते । आ । वर्तयामसि । इह । क्षयाय । जीवसे ॥ १०.५८.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 58; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यत्-ते मनः) हे मानसिक रोग के रोगी ! तेरा मन (दिवं यत् पृथिवीं मनः दूरकं जगाम) द्युलोक या पृथिवीलोक के प्रति जागरण काल में दूर चला गया है, उस (ते तत्…) तेरे मन को हम लौटाते हैं यथास्थान प्राप्ति के लिए और दीर्घजीवन धारण के लिए ॥२॥

    भावार्थ

    मानस रोगी के रोगी का मन जागते हुए भ्रान्त होकर के ग्रह-तारों की  अन्यथा बातें करता हो, तो आश्वासन देकर स्वस्थ बनाना चाहिए ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मनः-आवर्त्तन। इस लोक में पुनः आने, जन्म लेने आदि के निमित्त मन का पुनः २ आवर्तन।

    भावार्थ

    हे मनुष्य ! (यत् ते मनः) जो तेरा मन (दिवं पृथिवीम् दूरकं जगाम) आकाश, भूमि को वा दूरस्थ पदार्थ तक भी चला जाता है, उसको भी (इह जीवसे क्षयाय) यहां जीवन लाभ करने और ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये (आ वर्त्तयामसि) पुनः लौटा लेते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बन्ध्वादयो गौपायना ऋषयः। देवता-मन आवर्तनम्॥ निचृदनुष्टुप् छन्दः॥ द्वादशर्चं सूकम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    द्युलोक व पृथिवीलोक की ओर

    पदार्थ

    [१] (यत्) = जो (ते मनः) = तेरा मन (दिवम्) = द्युलोक की ओर (दूरकं जगाम्) = दूर जानेवाला होता है और (यत्) = जो (पृथिवीम्) = पृथिवी की ओर दूर-दूर जाता है, (ते) = तेरे उस मन को (आवर्तयामसि) = वापिस लौटाते हैं इह क्षयाय = यहां ही रहकर गति के लिये और (जीवसे) = दीर्घ व सुन्दर जीवन के लिये । [२] मन भी द्युलोक में भटकता है तो कभी पृथिवीलोक में । कभी इस सिरे पर और कभी उस सिरे पर । यह प्रत्येक कार्य को सुन्दरता से कर पाता है और जीवन की प्रशस्तता का कारण बनता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम द्युलोक व पृथ्वीलोक में भटकने से मन को रोकते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यत्-ते मनः) हे मानसरोगस्य रोगिन् ! यत् तव मनः (दिवं यत् पृथिवीं मनः-दूरकं जगाम) द्युलोकं यत् खलु वा पृथिवीं जागरणे कालेऽपि दूरं गतम् (ते तत्…) तव तन्मनः प्रत्यावर्तयामो यथास्थानप्राप्तये जीवनधारणकरणाय ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Your mind that wanders far and roams over earth and heaven, we bring it back to normalcy, here to be at peace for the good life for you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    मानसिक रोग्याचे मन जागृत अवस्थेतही भ्रांत बनून द्युलोकातील ग्रहताऱ्यांची विनाकरण चर्चा करत असेल किंवा पृथ्वीवरील स्थानाच्या विनाकारण गोष्टी करत असेल तर त्याला आश्वासन देऊन स्वस्थ केले पाहिजे. ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top