ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 58/ मन्त्र 9
ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः
देवता - मन आवर्त्तनम्
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
यत्ते॒ पर्व॑तान्बृह॒तो मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । पर्व॑तान् । बृ॒ह॒तः । मनः॑ । ज॒गाम॑ । दूर॒कम् । तत् । ते॒ । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । इ॒ह । क्षया॑य । जी॒वसे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते पर्वतान्बृहतो मनो जगाम दूरकम् । तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । पर्वतान् । बृहतः । मनः । जगाम । दूरकम् । तत् । ते । आ । वर्तयामसि । इह । क्षयाय । जीवसे ॥ १०.५८.९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 58; मन्त्र » 9
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ते) हे मानसिक रोगी ! तेरा (यत्-मनः) जो मन (बृहतः पर्वतान् दूरकं जगाम) बड़े-बड़े पर्वतों के प्रति कल्पना से दूर चला गया है (ते तत्……) पूर्ववत् ॥९॥
भावार्थ
मानसरोगग्रस्त मनुष्य जब भ्रान्त-सी अवस्था में अपने को पहाड़ों पर भटकता हुआ अनुभव करे और वैसी ही बातें करे, तो उसे भी सान्त्वनापूर्ण आश्वासनों से शान्त करे ॥९॥
विषय
मनः-आवर्त्तन। इस लोक में पुनः आने, जन्म लेने आदि के निमित्त मन का पुनः २ आवर्तन।
भावार्थ
(यत् ते मनः बृहतः पर्वतान् दूरकं जगाम) जो तेरा मन बड़े २ पर्वतों को भी लक्ष्य कर दूर दूर तक जाता है (ते तत् इह क्षयाय जीवसे) उसको भी यहां रहने और जीवन लाभ के लिये (आवर्त्तयाममि) लौटा लेवें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बन्ध्वादयो गौपायना ऋषयः। देवता-मन आवर्तनम्॥ निचृदनुष्टुप् छन्दः॥ द्वादशर्चं सूकम्॥
विषय
ऊँचे पर्वतों की ओर
पदार्थ
[१] (यत्) = जो (ते मनः) = तेरा मन (बृहतः पर्वतान्) = इन उच्च श्रृंगवाले बड़े-बड़े पर्वतों की ओर (दूरकं जगाम) = दूर-दूर जाता है (ते) = तेरे (तत्) = उस मन को (आवर्तयामसि) = लौटाते हैं जिससे (इह क्षयाय) = वह यहाँ अपने क्रियमाण कर्म में ही निवास करे और (जीवसे) = उत्तम जीवन के लिये हो। [२] हमारा मन पहाड़ों में भटकता है, पहाड़ों की ऊँची चोटियों की ओर जाता है। इस मन को निरुद्ध करके अपने कर्त्तव्य कर्मों में ही स्थिर करना चाहिए ।
भावार्थ
भावार्थ- पर्वतों की ऊँची चोटियों में भटकनेवाले इस मन को हम निरुद्ध करें।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ते) हे मानसरोगग्रस्त जन ! तव (यत्-मनः) यन्मनः (बृहतः पर्वतान्) महतः पर्वतान् प्रति कल्पनया दूरकं जगाम दूरं गतम् (ते तत्……) पूर्ववत् ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Your mind that wanders far over mighty mountains and vast floating clouds, we bring back to normalcy, here to be at peace for your good life.
मराठी (1)
भावार्थ
मानसरोगग्रस्त मनुष्य जेव्हा भ्रांत अवस्थेत स्वत: पहाडावर भटकल्याचा अनुभव करतो व तसेच बोलत असेल तेव्हा त्यालाही सांत्वनापूर्ण आश्वासनांनी शांत करावे. ॥९॥
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