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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 58 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 58/ मन्त्र 6
    ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः देवता - मन आवर्त्तनम् छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यत्ते॒ मरी॑चीः प्र॒वतो॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ते॒ । मरी॑चीः । प्र॒ऽवतः॑ । मनः॑ । ज॒गाम॑ । दूर॒कम् । तत् । ते॒ । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । इ॒ह । क्षया॑य । जी॒वसे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्ते मरीचीः प्रवतो मनो जगाम दूरकम् । तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । ते । मरीचीः । प्रऽवतः । मनः । जगाम । दूरकम् । तत् । ते । आ । वर्तयामसि । इह । क्षयाय । जीवसे ॥ १०.५८.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 58; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (ते) हे मानसरोगग्रस्त जन ! तेरा (यत्-मनः) जो मन (प्रवतः-मरीचीः-दूरकं जगाम) प्रगति करती हुई आशा रश्मियों के प्रति दूर तक चला गया है (ते तत्……) पूर्ववत् ॥६॥

    भावार्थ

    मानसिक रोगी का मन आशाओं की तरङ्गों में बहता चला जाये, तो उसको आशारोधक आश्वासनों एवं सान्त्वनापूर्ण आश्वासनों से स्वस्थ करना चाहिए, क्योंकि आशाओं का कोई अन्त नहीं है ॥६॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ते) हे मानसरोगग्रस्त जन ! तव (यत्-मनः) यन्मनः (प्रवतः-मरीचीः-दूरकं जगाम) प्रगच्छत आशारश्मीन् दूरं गतम् (ते तत्……) पूर्ववत् ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Your mind that wanders far over heavenly heights and radiating rays of light, we bring back to normalcy here for you to be at peace for the good life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    मानसिक रोग्याचे मन आशेच्या तरंगात वाहत गेले तर त्याला आशारोधक आश्वासन व सांत्वनापूर्ण आश्वासनांनी स्वस्थ केले पाहिजे. कारण आशेचा काही अंत नाही. ॥६॥

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