ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 60/ मन्त्र 11
ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः
देवता - सुबन्धोर्जीविताह्वानम्
छन्दः - स्वराडार्च्यनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
न्य१॒॑ग्वातोऽव॑ वाति॒ न्य॑क्तपति॒ सूर्य॑: । नी॒चीन॑म॒घ्न्या दु॑हे॒ न्य॑ग्भवतु ते॒ रप॑: ॥
स्वर सहित पद पाठन्य॑क् । वातः । अव॑ । वा॒ति॒ । न्य॑क् । त॒प॒ति॒ । सूर्यः॑ । नी॒चीन॑म् । अ॒घ्न्या । दु॒हे॒ । न्य॑क् । भ॒व॒तु॒ । ते॒ । रपः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
न्य१ग्वातोऽव वाति न्यक्तपति सूर्य: । नीचीनमघ्न्या दुहे न्यग्भवतु ते रप: ॥
स्वर रहित पद पाठन्यक् । वातः । अव । वाति । न्यक् । तपति । सूर्यः । नीचीनम् । अघ्न्या । दुहे । न्यक् । भवतु । ते । रपः ॥ १०.६०.११
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 60; मन्त्र » 11
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वातः-न्यक्-अव वाति) वायु पृथिवी पर नीचे बहता है (सूर्यः-न्यक् तपति) सूर्य नीचे पृथिवी पर ताप देता है (अघ्न्या नीचीनं दुहे) गौ नीचे स्तनभाग से दूध स्रवित करती है (ते रपः-न्यक्-भवतु) हे कुमार ! तेरा मानसरोग नीचे अर्थात् शरीर से बाहर निकल जाये-निकल जाता है ॥११॥
भावार्थ
योग्य चिकित्सक मानसिक रोग के रोगी कुमार को आश्वासन दे कि जैसे ऊपर से वायु पृथिवी पर नीचे बहता है और जैसे सूर्य का ताप ऊपर से नीचे पृथिवी पर आता है तथा जैसे गौ का दूध स्तनों द्वारा नीचे आता है या बाहर आता है, ऐसे ही तेरा मन का रोग तेरे से निकलकर बाहर हो गया ॥११॥
विषय
पाप त्यागार्थ व्रत आदि से विनय की शिक्षा।
भावार्थ
(वातः न्यग् अव वाति) वायु अधीन होकर विनम्रभाव से बहता है, (सूर्यः न्यक् तपति) सूर्य उसके नीचे विनीत होकर तपता है, (अध्न्या नीचीनं दुहे) गौ भी नीचे होकर पालक को दूध देती है (न्यक् भवतु ते रपः) हे जाव ! तेरा भी दुःख और पाप नीचे ही छूट जावे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बन्ध्वादयो गौपायनाः। ६ अगस्त्यस्य स्वसैषां माता। देवता–१–४, ६ असमाता राजा। ५ इन्द्रः। ७–११ सुबन्धोजींविताह्वानम्। १२ मरुतः॥ छन्द:—१—३ गायत्री। ४, ५ निचृद् गायत्री। ६ पादनिचदनुष्टुप्। ७, १०, १२ निचृदनुष्टुप्। ११ आर्च्यनुष्टुप्। ८, ९ निचृत् पंक्तिः॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
वात- सूर्य- अघ्न्या
पदार्थ
[१] (वात:) = वायु मृत्यु को तेरे से (न्यग्) = नीचे (अववाति) = सुदूर ले जाती है। शुद्ध वायु का सेवन मृत्यु को तेरे से दूर करता है और इस प्रकार तेरा जीवन दीर्घ होता है। शुद्ध वायु सब रोगों का औषध बनता है और तुझे नीरोग बनाता है, नीरोग बनाकर यह मन को भी शान्ति देनेवाला होता है । शान्त मन दीर्घायुष्य का सर्वमहान् साधन है । [२] (सूर्यः) = यह प्रतिदिन उदय होनेवाला सूर्य भी मृत्यु को (न्यक्) = तेरे से नीचे ले जानेवाला होकर (तपति) = दीप्त होता है। सूर्य किरणों को छाती पर लेने से मृत्यु व रोग दूर होते हैं। [३] (अघ्न्या) = यह (अहन्तव्य गौ) = अपने दूध से हिंसा न होने देनेवाली गौ, (नीचीनम् दुहे) = मृत्यु को तेरे से नीचे ले जाती हुई दुहे दुग्ध का हमारे पात्रों पूरण करती है। यह गोदुग्ध का प्रयोग भी दीर्घायुष्य का प्रमुख साधन होता है। [४] इस प्रकार शुद्ध वायु के सेवन से, सूर्य किरणों को अपने शरीर पर लेने से तथा गोदुग्ध के प्रयोग से हम मृत्यु से दूर होते हैं । यहाँ मन्त्र में कहते हैं कि इनके प्रयोग से (ते रपः) = तेरा दोष (न्यग् भवतु) = नीचे जानेवाला होकर नष्ट हो जाए।
भावार्थ
भावार्थ - दीर्घजीवन के लिये [क] शुद्ध वायु सेवन, [ख] सूर्य किरणों में उठना-बैठना तथा [ग] गोदुग्ध का प्रयोग आवश्यक हैं।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वातः न्यक्-अववाति) वायुर्नीचैः पृथिव्यामधो वहति (सूर्यः-न्यक् तपति) सूर्यो नीचैः पृथिवीं तपति तापं प्रयच्छति (अघ्न्या नीचीनं दुहे) गौर्नीचैर्भूत्वा दुग्धं स्रवति (ते रपः-न्यक्-भवतु) हे कुमार ! तव मानसरोगो नीचैः शरीराद् बहिः निःसरतु ॥११॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The wind blows downwards, the heat of the sun goes downwards to the earth, the holy cow lets her milk flow down. O man, let your sin and evil too go down, leaving you free.
मराठी (1)
भावार्थ
योग्य चिकित्सकाने मानसिक रोगाच्या रोगी बालकाला आश्वासन द्यावे, की जसे वरून वायू खाली वाहतो व जसे सूर्याचा ताप वरून खाली पृथ्वीवर येतो व जसे गायींचे दूध स्तनांद्वारे खाली येते किंवा बाहेर येते, तसेच तुझ्या मनाचा रोग तुझ्यातून बाहेर निघून गेलेला आहे. ॥११॥
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