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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 60/ मन्त्र 3
    ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः देवता - असमाती राजा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    यो जना॑न्महि॒षाँ इ॑वातित॒स्थौ पवी॑रवान् । उ॒ताप॑वीरवान्यु॒धा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । जना॑न् । म॒हि॒षान्ऽइ॑व । अ॒ति॒ऽत॒स्थौ । पवी॑रवान् । उ॒त । अप॑वीरवान् । यु॒धा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो जनान्महिषाँ इवातितस्थौ पवीरवान् । उतापवीरवान्युधा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । जनान् । महिषान्ऽइव । अतिऽतस्थौ । पवीरवान् । उत । अपवीरवान् । युधा ॥ १०.६०.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 60; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यः) जो इन्द्र ऐश्वर्यवान् शासक (पवीरवान्) शस्त्रास्त्रवाला (महिषान्-इव जनान्) महान् योद्धा जनों को अथवा जैसे भैंसों को सिंह ऐसे ही योद्धाजनों को (युधा-अतितस्थौ) युद्ध से-युद्ध करके तिरस्कृत करता है-स्वाधीन करता है (उत-अपवीरवान्) अपितु बिना शस्त्रास्त्रवाला रहता हुआ भी स्वाधीन करता है ॥३॥

    भावार्थ

    राजा या शासक ऐसा होना चाहिए, जो शत्रुओं को संग्राम में शस्त्रास्त्रों द्वारा परास्त करके स्वाधीन करे अथवा बिना शस्त्रास्त्र के भी शारीरिक बल द्वारा जैसे सिंह भैंसों को पछाड़ता है, ऐसे शत्रुओं को पछाड़े ॥३॥

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    विषय

    राजा का हिंसावत् पराक्रमी होने का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (यः) जो (महिषान् इव जनान्) बड़े २ भैसों को सिंह के समान (वीरवान्) वज्रवत् खड्गवान् होकर (जनान् अति तस्थौ) बड़े २ जनों, जनपदों को भी विजय करता है (उत) और जो (युधा) युद्ध से (अप-वीरवान्) विपरीत शब्द बोलने वाले शत्रुओं को दूर कर देता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बन्ध्वादयो गौपायनाः। ६ अगस्त्यस्य स्वसैषां माता। देवता–१–४, ६ असमाता राजा। ५ इन्द्रः। ७–११ सुबन्धोजींविताह्वानम्। १२ मरुतः॥ छन्द:—१—३ गायत्री। ४, ५ निचृद् गायत्री। ६ पादनिचदनुष्टुप्। ७, १०, १२ निचृदनुष्टुप्। ११ आर्च्यनुष्टुप्। ८, ९ निचृत् पंक्तिः॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    युद्ध के द्वारा अग्र-स्थिति

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र में 'असमाति' अनुपम जीवनवाले का उल्लेख था । यह असमाति वह है (यः) = जो (जनान्) = सब लोगों को (अतितस्थौ) = लाँघकर ठहरा है, उसी प्रकार सब से आगे बढ़कर यह स्थित हुआ है (इव) = जिस प्रकार कि वन में मृगेन्द्र [ = शेर] सब (महिषान्) = बड़े-बड़े भैंसे आदि पशुओं को लाँघकर स्थित होता है। [२] 'यह 'असमाति' औरों से किस प्रकार लाँघ गया' ? इसका उत्तर 'युधा' शब्द से दिया गया है। यह आगे बढ़ा है (युधा) = युद्ध के द्वारा। इसने 'काम-क्रोध-लोभ' रूप शत्रुओं के साथ हृदयरूप रणक्षेत्र में युद्ध किया है। इस अध्यात्म-संग्राम में विजय प्राप्त करने के कारण ही यह सब से आगे बढ़ गया है। इसने जब इस युद्ध को किया है उस समय इसने यह नहीं देखा है कि (पवीरवान्) = वह वज्रवाला है (उत) = अथवा (अपवीरवान्) = वज्रवाला नहीं है । साधन जुटाने की प्रतीक्षा में ही यह खड़ा नहीं रह गया। आक्रमण करनेवाले कामादि शत्रुओं के साथ यह युद्ध में जुट गया और उसे यह श्रद्धा रही कि साधन तो प्रभु जुटा ही देंगे। ठीक कार्य में लगने पर प्रभु मदद करते ही हैं। जो व्यक्ति परिस्थियों की अनुकूलता व प्रतिकूलता को ही देखते रहते हैं वे संसार संग्राम में विजयी नहीं हुआ करते। यह 'असमाति' पूर्ण उत्साह के साथ युद्ध में लग जाता है और विजयी बनकर सब से आगे स्थित होता है। हम भी इस असमाति के सम्पर्क में आते हैं, इसे आदर देते हैं और उसके पदचिह्नों पर चलने का यत्न करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- कामादि शत्रुओं के साथ युद्ध के द्वारा ही मनुष्य उन्नत स्थिति में पहुँचता है ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यः) य इन्द्र ऐश्वर्यवान् शासकः (पवीरवान्) आयुधवान् “पविः शल्यो भवति, तद्वत् पवीरमायुधं तद्वानिन्द्रः पवीरवान्” [निरु० १२।३०] [महिषान्-इव जनान्] महतो योद्धॄन् जनान् “इवोऽत्रानर्थकः” “इवोऽपि दृश्यते” [निरु० १।११] यद्वा महिषः पशून् यथा सिंहः ‘लुप्तोपमावाचकालङ्कारः’ तथा योद्धॄन् जनान् (युधा-अतितस्थौ) योधनेन युद्धेन-अतिक्रम्य तिरस्कृत्य तिष्ठति स्वाधीनीकरोति (उत-अपवीरवान्) अपित्वनायुधवान् सन्नपि स्वाधीनीकरोति ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    We have come to the mighty hero who, whether armed or without arms, overthrows adversaries as a lion overthrows wild buffaloes.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजा किंवा शासक असा असला पाहिजे, की जो शत्रूंना युद्धात शस्त्रास्त्रांद्वारे पराभूत करून स्वाधीन करील किंवा शस्त्रास्त्रांशिवायही शारीरिक बलाद्वारे जसा सिंह रेड्यांना परास्त करतो तसे शत्रूंना परास्त करील. ॥३॥

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