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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 60/ मन्त्र 8
    ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः देवता - सुबन्धोर्जीविताह्वानम् छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    यथा॑ यु॒गं व॑र॒त्रया॒ नह्य॑न्ति ध॒रुणा॑य॒ कम् । ए॒वा दा॑धार ते॒ मनो॑ जी॒वात॑वे॒ न मृ॒त्यवेऽथो॑ अरि॒ष्टता॑तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । यु॒गम् । व॒र॒त्रया॑ । नह्य॑न्ति । ध॒रुणा॑य । कम् । ए॒व । दा॒धा॒र॒ । ते॒ । मनः॑ । जी॒वात॑वे । न । मृ॒त्यवे॑ । अथो॒ इति॑ । अ॒रि॒ष्टऽता॑तये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा युगं वरत्रया नह्यन्ति धरुणाय कम् । एवा दाधार ते मनो जीवातवे न मृत्यवेऽथो अरिष्टतातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । युगम् । वरत्रया । नह्यन्ति । धरुणाय । कम् । एव । दाधार । ते । मनः । जीवातवे । न । मृत्यवे । अथो इति । अरिष्टऽतातये ॥ १०.६०.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 60; मन्त्र » 8
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यथा वरत्रया युगम्) जैसे चमड़े की रस्सी-फीते से वृषभ आदि को (धरुणाय नह्यन्ति कम्) धारकदण्ड-गाड़ी के प्रतिष्ठा भाग-जूवे के लिए सुख से बाँधते हैं (एव) इसी प्रकार (ते मनः-जीवातवे दाधार) हे कुमार, तेरे मन को-मनोभाव-संकल्प को जीवन के लिए चिकित्सक जोड़ता है-बाँधता है (न मृत्यवे) मृत्यु के लिए नहीं (अथ-उ-अरिष्टतातये) अपितु रोगरहित होने के लिए-स्वस्थ होने के लिए ॥८॥

    भावार्थ

    रोगी कुमार को चिकित्सक ऐसे धैर्य बँधाये और ऐसा उपचार करे, जैसे चर्मरस्सी से बैल को जूवे में जोड़ा जाता है, ऐसे उसके मन को रोग के चिन्तन से हटाकर आश्वासन और मनोरञ्जन के द्वारा स्वस्थता की ओर लगा दिया जाये ॥८॥

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    विषय

    जुए के समान मन के वशीकरण का उपदेश।

    भावार्थ

    (यथा) जिस प्रकार (धरुणाय) धारण करने वाले दण्ड के (युगं) जुए को (वरत्रया नह्यन्ति) रस्सी से बांधते हैं (एवं) उसी प्रकार हे मनुष्य (ते मनः दाधार) तेरे मन रूप लगाम को आत्मा (जीवा तवे) जीवन के लिये धारण करता है, (न मृत्यवे) मृत्यु के लिये नहीं (अथो अरिष्टतातये) बल्कि मङ्गल, सुख के लिये धारण करे। राष्ट्र में मनस्तम्भक बल है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बन्ध्वादयो गौपायनाः। ६ अगस्त्यस्य स्वसैषां माता। देवता–१–४, ६ असमाता राजा। ५ इन्द्रः। ७–११ सुबन्धोजींविताह्वानम्। १२ मरुतः॥ छन्द:—१—३ गायत्री। ४, ५ निचृद् गायत्री। ६ पादनिचदनुष्टुप्। ७, १०, १२ निचृदनुष्टुप्। ११ आर्च्यनुष्टुप्। ८, ९ निचृत् पंक्तिः॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    मनो बन्धन

    पदार्थ

    [१] (यथा) = जैसे (युगम्) = रथ के जुए को (धरुणाय) = धारण करने के लिये (वरत्रया) = रस्सी से (नह्यन्ति) = बाँध देते हैं, और परिणामतः (कम्) = वहाँ सुख होता है। न बाँधने पर सब तितर-बितर हो जाने से यात्रा का ही सम्भव न होता । (एवा) = इसी प्रकार (ते मनः) = तेरे मन को (दाधार) = धारण करते हैं। इसे यज्ञ में व उपासन में लगाते हैं। जिससे कि (जीवातवे) = जीवन बड़ी ठीक प्रकार से चले (न मृत्यवे) = मृत्यु न हो जाए। मन के भटकने में मृत्यु ही है। (अथ उ) = और अब (अरिष्टतातये) = अहिंसन व शुभ के विस्तार के लिये तेरे मन को धारण करते हैं । [२] स्थिर मन जीवन का कारण है, अस्थिर मन मृत्यु की ओर ले जानेवाला है। स्थिर मन शुभ का मूल होता है। मन की अस्थिरता में हिंसन ही हिंसन है । इसलिए जैसे जुए को रस्सी से दृढ़तापूर्वक बाँध देने से रथ का ठीक से धारण होता है, इसी प्रकार हम मन को यज्ञों में व प्रभु में बाँधकर जीवन को धारण करनेवाले बनते हैं, यही अरिष्ट मार्ग है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - मन को स्थिर करके हम मृत्यु को छोड़कर जीवन के क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यथा वरत्रया युगं धरुणाय नह्यन्ति कम्) यथा हि चर्मरज्ज्वा वृषभादिकं धारकदण्डाय प्रतिष्ठारूपाय “प्रतिष्ठा वै धरुणम्” [श० ७।४।२।५] बध्नन्ति (एव) एवम् (ते मनः-जीवातवे दाधार) तव मनः-मनोभावं चिकित्सको जीवनाय धारयति (न मृत्यवे) न तु मृत्यवे (अथ-उ-अरिष्टतातये) अथापि कल्याणाय “शिवशमरिष्टस्य करे” [अष्टा० ४।४।१४३] तातिल् प्रत्ययः ॥८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    As they bind the yoke fast with thongs for the balance and stability of the chariot on the move, so does the lord hold fast your mind and spirit, not for death but for your life, fulfilment and freedom from evil and misfortune.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आजारी बालकाला चिकित्सकाने असे धैर्य द्यावे व असा उपचार करावा जसे चर्म वादीने बैलाला जोखडाला जुंपले जाते. तसे त्याच्या मनाला रोगाच्या चिंतनापासून दूर करून आश्वासन देऊन मनोरंजनाद्वारे स्वस्थतेकडे न्यावे. ॥८॥

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