ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 60/ मन्त्र 12
ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः
देवता - हस्तः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अ॒यं मे॒ हस्तो॒ भग॑वान॒यं मे॒ भग॑वत्तरः । अ॒यं मे॑ वि॒श्वभे॑षजो॒ऽयं शि॒वाभि॑मर्शनः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । मे॒ । हस्तः॑ । भग॑ऽवान् । अ॒यम् । मे॒ । भग॑वत्ऽतरः । अ॒यम् । मे॒ । वि॒श्वऽभे॑षजः । अ॒यम् । शि॒वऽअ॑भिमर्शनः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तरः । अयं मे विश्वभेषजोऽयं शिवाभिमर्शनः ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । मे । हस्तः । भगऽवान् । अयम् । मे । भगवत्ऽतरः । अयम् । मे । विश्वऽभेषजः । अयम् । शिवऽअभिमर्शनः ॥ १०.६०.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 60; मन्त्र » 12
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
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अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मे-अयं हस्तः भगवान्) मुझ चिकित्सक का यह एक हाथ सुखैश्वर्यवाला सुखैश्वर्य का दाता है (मे-अयं भगवत्तरः) मेरा यह दूसरा दक्षिण हाथ और अधिक सुखैश्वर्य देनेवाला है (मे-अयं विश्वभेषजः) मेरा हाथ सब रोगों का औषधरूप है (अयं शिवाभिमर्शनः) यह मेरा दूसरा हाथ कल्याण का स्पर्शवाला है, कल्याण को प्रवाहित करनेवाला है ॥ १२ ॥
भावार्थ
चिकित्सक बालक को अपने हाथों से स्पर्श करता हुआ आश्वासन दे कि तुझे स्वस्थ करना मेरे दाएँ-बाएँ हाथों का खेल है, तू घबरा नहीं। मेरे हाथों में तुझे स्वस्थ करने का औषध है और शान्ति देने की शक्ति भी है ॥ १२ ॥
विषय
हाथों के सौभाग्यवान् और कल्याणप्रद होने की प्रार्थना।
भावार्थ
(अयं मे हस्तः भगवान्) यह मेरा हाथ ऐश्वर्यवान् हो (अयं मे भगवत्-तरः) यह मेरा दूसरा दायां अंग और भी अधिक ऐश्वर्यवान् हो। यह मेरा हाथ (विश्व-भेषजः) सब रोगों को ओषधिवत् दूर करने वाला हो। (अयं शिवाभिमर्शनः) यह मेरा हाथ सुखयुक्त स्पर्श वाला हो। इति पञ्चविंशो वर्गः॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बन्ध्वादयो गौपायनाः। ६ अगस्त्यस्य स्वसैषां माता। देवता–१–४, ६ असमाता राजा। ५ इन्द्रः। ७–११ सुबन्धोजींविताह्वानम्। १२ मरुतः॥ छन्द:—१—३ गायत्री। ४, ५ निचृद् गायत्री। ६ पादनिचदनुष्टुप्। ७, १०, १२ निचृदनुष्टुप्। ११ आर्च्यनुष्टुप्। ८, ९ निचृत् पंक्तिः॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
मंगल- स्पर्शन
पदार्थ
[१] यदि एक व्यक्ति अस्वस्थ हो जाता है और उसके मन पर उस रोगमय का प्रभाव प्रकट होने लगता है तो एक उत्तम वैद्य उसके मन पर स्वास्थ्यकर प्रभाव डालने के लिये कहता है कि (मे) = मेरा (अयम्) = यह (हस्तः) = दायां हाथ (भगवान्) = भगवाला है, अद्भुत शक्तिवाला है [भग=stength] और (मे) = मेरा (अयम्) = यह वाम हस्त (भगवत्तर:) = और भी अधिक शक्तिशाली है । [२] यह मेरा हाथ क्या है । में (अयम्) = मेरा यह हाथ तो (विश्वभेषजः) = सब औषधोंवाला है, (अयं शिवा भिमर्शनः) = यह मंगल स्पर्शवाला है, यह छूते ही कल्याण करता है। इस प्रकार प्रेरणा देता हुआ वैद्य रोगी के मन को शुभ प्रभाव से समप्रून करने का प्रयत्न करता है और उसे स्वस्थ बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ - रोगी को वैद्य में विश्वास हो जाए तो उसका रोग शीघ्र ही दूर हो जाता है । सूक्त का प्रारम्भ इन शब्दों से हुआ है कि हम ज्ञानी तेजस्वी स्तोता पुरुषों के सम्पर्क में चलते हुए उन जैसे ही बनें। [१] मन को काबू करके दीर्घजीवन व शुभ को प्राप्त करनेवाले हों, [८- १० ] शुद्ध वायु, सूर्य किरण सम्पर्क व गोदुग्ध हमें नीरोग बनाये। [११] वैद्य का हस्त-स्पर्श ही हमारे रोग को दूर भगा दे, [१२] हम सृष्टि के केन्द्रभूत यज्ञों के समीप हों, यज्ञशील बनें और अग्रिम सूक्त के ऋषि 'नाभानेदिष्ठ' बनें। [अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः] विचारशील होते हुए 'मानव' हों। यह मानव सात होताओं का पूरण करता है-
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मे-अयं हस्तः-भगवान्) चिकित्सकस्य ममायमेको हस्तः सुखैश्वर्यवान् सुखैश्वर्यदाता (मे-अयं भगवत्तरः) चिकित्सकस्य ममापरो हस्तोऽतिशयेन सुखैश्वर्यकरः (मे-अयं विश्वभेषजः) चिकित्सकस्य ममैष हस्तो सर्वरोगस्यौषधं रोगचिकित्सन- साधनमस्ति (अयं शिवाभिमर्शनः) अयमपरो हस्तः कल्याणस्पर्शनः कल्याणमभि-प्रेरयति ॥१२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This my hand is the hand of good fortune, this is even the hand of greater good fortune, this is the solution to all my problems of the world. This hand is for the touch of holiness with life, the instrument of action for fulfilment.
मराठी (1)
भावार्थ
चिकित्सकाने बालकाला आपल्या हाताने स्पर्श करत आश्वासन द्यावे, की तुला स्वस्थ करणे माझ्या उजव्या, डाव्या हाताचा खेळ आहे. तू घाबरू नकोस. माझ्या हातात तुला स्वस्थ करण्याचे औषध आहे व शांती देण्याची शक्तीही आहे. ॥१२॥
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