ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 60/ मन्त्र 4
ऋषिः - बन्ध्वादयो गौपायनाः
देवता - असमाती राजा
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
यस्ये॑क्ष्वा॒कुरुप॑ व्र॒ते रे॒वान्म॑रा॒य्येध॑ते । दि॒वी॑व॒ पञ्च॑ कृ॒ष्टय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । इ॒क्ष्वा॒कुः । उप॑ । व्र॒ते । रे॒वान् । म॒रा॒यी । एध॑ते । दि॒विऽइ॑व । पञ्च॑ । कृ॒ष्टयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्येक्ष्वाकुरुप व्रते रेवान्मराय्येधते । दिवीव पञ्च कृष्टय: ॥
स्वर रहित पद पाठयस्य । इक्ष्वाकुः । उप । व्रते । रेवान् । मरायी । एधते । दिविऽइव । पञ्च । कृष्टयः ॥ १०.६०.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 60; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यस्य व्रते) जिस शासक के शासन कर्म में (इक्ष्वाकुः) मीठे रस भरे गन्ने की भाँति बोलनेवाला मधुर उपदेष्टा शिक्षामन्त्री (रेवान्) प्रशस्त धनवाला अर्थमन्त्री (मरायी) शत्रुओं को मारनेवाला सेनाध्यक्ष-रक्षामन्त्री (उप-एधते) समृद्ध होता है, उसके (पञ्च कृष्टयः) पाँच प्रकार के-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद, प्रजाजन (दिवि-इव) जैसे सूर्य के आश्रय में रश्मियाँ-किरणें प्रकाशमय और सबल होती हैं, ऐसे सबल हो जाते हैं ॥४॥
भावार्थ
जिस राजा के शासन में मधुरोपदेष्टा शिक्षामन्त्री, प्रशस्त धनवान् अर्थमन्त्री और शत्रुओं को मारनेवाला सेनाध्यक्ष समृद्धि पाते हैं, उसकी पाँचों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद प्रजाएँ और ज्ञानीजन, जैसे सूर्य के आश्रय में रश्मियाँ प्रकाशवाली और सबल होती हैं, ऐसे सबल होते हैं ॥४॥
विषय
प्रजा वृद्धयर्थ मधुरभाषी राजा की आवश्यकता।
भावार्थ
(यस्य) जिस राष्ट्र के (व्रते) शासन के कार्य में (इक्ष्वाकुः) गन्ने के समान मधुर रसयुक्त वाणी से बोलने वाला, वा दर्शन करके वाणी का प्रयोग करने वाला विवेकी पुरुष (रेवान्) धनवान्, (मरायी) शत्रुमारक, राजा (उप एधते) वृद्धि प्राप्त करता है, उस राज्य में (दिवि-इव) सूर्य सदृश तेजस्वी राजा के नीचे (पञ्च कृष्टयः) पांचों प्रजाजन वृद्धि को प्राप्त करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बन्ध्वादयो गौपायनाः। ६ अगस्त्यस्य स्वसैषां माता। देवता–१–४, ६ असमाता राजा। ५ इन्द्रः। ७–११ सुबन्धोजींविताह्वानम्। १२ मरुतः॥ छन्द:—१—३ गायत्री। ४, ५ निचृद् गायत्री। ६ पादनिचदनुष्टुप्। ७, १०, १२ निचृदनुष्टुप्। ११ आर्च्यनुष्टुप्। ८, ९ निचृत् पंक्तिः॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
इक्ष्वाकु
पदार्थ
[१] 'असमाति' वह है अनुपम जीवनवाला वह है, (यस्य) = जिसके (व्रते) -= गत मन्त्र में वर्णित काम-क्रोध-लोभ रूप शत्रुओं के साथ सतत युद्ध रूप व्रत में, अर्थात् इस अध्यात्म युद्ध को स्वयं अपनानेवाला (इक्ष्वाकुः) = [ इक्षु = इच्छा desire, आकु:-one who bends अञ्च्] इच्छाओं व कामनाओं को झुकानेवाला पुरुष (रेवान्) = उत्तम अध्यात्म सम्पत्तिवाला होता हुआ (मरायी) = शत्रुओं को मारनेवाला, काम-क्रोध-लोभ आदि शत्रुओं को नष्ट करनेवाला (उपैधते) = खूब ही वृद्धि को प्राप्त होता है । उसी प्रकार वृद्धि को प्राप्त होता है (इव) = जैसे (पञ्च कृष्टयः) = 'ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र व निषाद ' इन पाँच भागों में विभक्त हुए हुए मनुष्य दिवि ज्ञान के प्रकाश में वृद्धि को प्राप्त करते हैं। ज्ञान मनुष्य के जीवन को पवित्र करता है। ज्ञान से हमारी न्यूनताएँ दूर होती हैं और हम पूर्णता की ओर अग्रसर होते हैं । [२] कामनाओं को दबानेवाला 'इक्ष्वाकु' अध्यात्म संग्राम में जुटकर के आगे बढ़ता है । वह अध्यात्म- सम्पत्ति को प्राप्त करता हुआ वृद्धि को प्राप्त करता है ।
भावार्थ
भावार्थ- हम भी अध्यात्म-संग्राम का व्रत लें। इस संग्राम में कामादि शत्रुओं को मारकर आत्म- सम्पत्तिवाले बनें।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यस्य व्रते) यस्य शासकस्य शासनकर्मणि (इक्ष्वाकुः) इक्षुरिव वदति यः स मधुरोपदेष्टा शिक्षामन्त्री तथा (रेवान्) धनवान् अर्थमन्त्री च (मरायी) शत्रूणां मारयिता रक्षामन्त्री (उप-एधते) समृद्धो भवति तस्य (पञ्चकृष्टयः) पञ्चप्रजाजनाः ‘कृष्टयः-मनुष्यनाम” [निघ० २।३] (दिवि-इव) सूर्ये, सूर्याश्रये यथा रश्मयः प्रकाशमयः सबलाश्च भवन्ति ‘अत्र लुप्तोपमानवाचकालङ्कारः’ तथा शासकाश्रये कृष्टयः-प्रजाजनाः, ज्ञानिनश्च सबला भवन्ति ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
We have come to the ruling lord under whose order of law, justice and discipline, the enlightened, the opulent and the brilliant fighters and indeed all the five classes of people in their own professional fields live happy and free as in heaven on earth.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या राजाच्या शासनात मधुर उपदेशक शिक्षणमंत्री, प्रशंसनीय धनवान अर्थमंत्री व शत्रूंना मारणारा सेनाध्यक्ष समृद्ध असतात. सूर्याच्या आश्रयाने जशा रश्मी प्रकाशित होतात व सबल होतात तसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र व निषाद ही प्रजा व ज्ञानी लोक सबल होतात.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal