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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 62/ मन्त्र 8
    ऋषिः - नाभानेदिष्ठो मानवः देवता - सावर्णेर्दानस्तुतिः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    प्र नू॒नं जा॑यताम॒यं मनु॒स्तोक्मे॑व रोहतु । यः स॒हस्रं॑ श॒ताश्वं॑ स॒द्यो दा॒नाय॒ मंह॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । नू॒नम् । जा॒य॒ता॒म् । अ॒यम् । मनुः॑ । तोक्म॑ऽइव । रो॒ह॒तु॒ । यः । स॒हस्र॑म् । श॒तऽअ॑श्वम् । स॒द्यः । दा॒नाय॑ । मंह॑ते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र नूनं जायतामयं मनुस्तोक्मेव रोहतु । यः सहस्रं शताश्वं सद्यो दानाय मंहते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । नूनम् । जायताम् । अयम् । मनुः । तोक्मऽइव । रोहतु । यः । सहस्रम् । शतऽअश्वम् । सद्यः । दानाय । मंहते ॥ १०.६२.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 62; मन्त्र » 8
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अयं मनुः) यह मननशील विद्वान् ज्ञानदाता (नूनं प्रजायताम्) अवश्य प्रसिद्ध होवे (तोक्म-इव रोहतु) अल्प आयुवाले बालक के समान बढ़े (यः शताश्वं सहस्रम्) जो सौ संख्या घोड़ोंवाले वह भी सहस्रगुणित जितने ज्ञान (दानाय सद्यः-मंहते) दान के लिये तुरन्त प्रवृत्त हो ॥८॥

    भावार्थ

    ज्ञान का प्रदान करनेवाला दिनोंदिन बढ़े, छोटे बालक जिससे सहस्रगुणित ज्ञान आदान करने को समर्थ हो सकेगा ॥८॥

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    विषय

    जीव की सस्यांकुर के समान उत्पत्ति

    भावार्थ

    (अयं मनुः) यह मनुष्य वा जीव (तोक्मं) जल से भीजे बीज के समान (प्र जायताम्) अच्छी प्रकार उत्पन्न होता (प्र रोहतु) और उसी के समान अधिक उगता बढ़ता और फलता फूलता और फलता फूलता है। यह वही है (यः) जो (सद्यः) शीघ्र ही (सहस्रं शताश्वं) हजारों सैकड़ों अश्ववद् शत सूर्य-संवत्सर से युक्त (सहस्रम्) बलवत् कालचक्र को (सद्यः) शीघ्र ही (दानाय) दान देने या त्यागने के लिये ही (मंहते) प्रदान करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नाभानेदिष्ठो मानव ऋषिः। देवता-१-६ विश्वेदेवाङ्गिरसो वा। ७ विश्वेदेवाः। ८—११ सावर्णेर्दानस्तुतिः॥ छन्द:—१, २ विराड् जगती। ३ पादनिचृज्जगती। ४ निचृज्जगती। ५ अनुष्टुप्। ८, ९ निचृदनुष्टुप्। ६ बृहती। ७ विराट् पङ्क्तिः। १० गायत्री। ११ भुरिक् त्रिष्टुप्॥

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    विषय

    मनुष्य की सस्यांकुर के समान उत्पत्ति

    पदार्थ

    (अयं मनुः) = यह मनुष्य (तोक्मं) = जल से भीगे बीज के समान (प्र जायताम्) = अच्छी प्रकार उत्पन्न होता (प्र रोहतु) = और उसी के समान उगता बढ़ता और फलता फूलता है । यह वही है (यः) = जो (सहस्त्रं शताश्वं) = हजारों सैकड़ों पशुओं का (दानाय) = दान देकर (सद्यः) = शीघ्र ही (मंहते) = सत्कार योग्य हो जाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- दानवृत्तिवाले का सम्मान होता है ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अयं मनुः-नूनं प्रजायताम्) एष मननशीलो विद्वान् ज्ञानदाताऽवश्यं प्रसिद्धो भवतु (तोक्म-इव रोहतु) अपत्यम्-अल्पायुष्कं नवजातं बालकमिव वर्धताम् “तोक्म-अपत्यनाम” [निघ० २।२] (यः शताश्वं सहस्रम्) यः शतसङ्ख्याश्वकं तदपि सहस्रमिव ज्ञानम् “सर्वेषामेव दानानां ब्रह्मदानं विशिष्यते” [मनु० ४।२२३] (दानाय सद्यः-मंहते) दानाय सद्यः प्रवर्तते ॥८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May this man, for sure, arise and grow like a germinating seed in fertile soil, who creates and gives a thousand gifts of hundred horse-power achievement straight to be dedicated to charitable good.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्ञान प्रदान करणारा विद्वान वरचेवर उन्नत व्हावा. ज्यामुळे लहान बालकही सहस्रगुणित ज्ञान प्रदान करण्यास समर्थ होऊ शकेल. ॥८॥

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