Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 63 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 63/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गयः प्लातः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    को व॒: स्तोमं॑ राधति॒ यं जुजो॑षथ॒ विश्वे॑ देवासो मनुषो॒ यति॒ ष्ठन॑ । को वो॑ऽध्व॒रं तु॑विजाता॒ अरं॑ कर॒द्यो न॒: पर्ष॒दत्यंह॑: स्व॒स्तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः । वः॒ । स्तोम॑म् । रा॒ध॒ति॒ । यम् । जुजो॑षथ । विश्वे॑ । दे॒वा॒सः॒ । म॒नु॒षः॒ । यति॑ । स्थन॑ । कः । वः॒ । अ॒ध्व॒रम् । तु॒वि॒ऽजा॒ताः॒ । अर॑म् । क॒र॒त् । यः । नः॒ । पर्ष॑त् । अति॑ । अंहः॑ । स्व॒स्तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को व: स्तोमं राधति यं जुजोषथ विश्वे देवासो मनुषो यति ष्ठन । को वोऽध्वरं तुविजाता अरं करद्यो न: पर्षदत्यंह: स्वस्तये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कः । वः । स्तोमम् । राधति । यम् । जुजोषथ । विश्वे । देवासः । मनुषः । यति । स्थन । कः । वः । अध्वरम् । तुविऽजाताः । अरम् । करत् । यः । नः । पर्षत् । अति । अंहः । स्वस्तये ॥ १०.६३.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 63; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (विश्वेदेवासः) हे सब विषयों में प्रविष्ट विद्वानों ! (मनुषः-यति-स्थन) तुम मननशील जितने हो (यं जुजोषथ) जिस परमात्मा को तुम उपासित करते हो-सेवन करते हो (वः) तुम्हारे मध्य में (कः स्तोमं राधति) कौन स्तुतियोग्य परमात्मा को साधित करता है-साक्षात् करता है (वः) तुम्हारे मध्य में (तुविजाताः) बहुत प्रसिद्ध विद्वान् (वः) तुम्हारे मध्य में (कः) कौन (अध्वरम्-अरं करत्) अध्यात्मयज्ञ को पूर्ण करता है (यः-अंहः पर्षत्) जो पाप से हमें पार करता है (स्वस्तये) कल्याण के लिए ॥६॥

    भावार्थ

    विद्वानों के पास जाकर के अपने कल्याणार्थ उनसे जिज्ञासा प्रकट करे और कहे कि आप महानुभाव समस्त विद्याओं में प्रविष्ट हो, हम कैसे पाप से पृथक् रहें और परमात्मा का साक्षात्कार कैसे करें, यह हमें समझाइये, जिससे हम कल्याण को प्राप्त कर सकें ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सेव्य, वेदोपदेष्टा, सर्वतारक प्रभु।

    भावार्थ

    हे (विश्वे देवासः) समस्त विद्वान्, ज्ञानाभिलाषी जनो ! (वः) आप लोगों के (स्तोमं) स्तवन करने योग्य, उपदेष्टव्य वेदज्ञान को (कः राधति) कौन उपदेश करता है (यं जुजोषथ) जिसकी आप लोग प्रेम से सेवा करते और उपासना करते हो। हे (मनुषः) मननशील पुरुषो ! हे (तुवि-जाताः) बहुत संख्या में विद्यमान जनो ! आप (यति स्थन) जितने भी हो आप लोगों के (अध्वरम्) यज्ञ को (कः अरं करत्) कौन सुभूषित करता है ? (स्वस्तये यः) जो इस परम सुख प्राप्ति कल्याण के लिये (नः अति पर्षत्) हमें दुःखसागर से पार कर दे। उत्तर- (कः) जगत् का कर्त्ता प्रजापति।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गयः प्लात ऋषिः। देवता—१—१४,१७ विश्वेदेवाः। १५, १६ पथ्यास्वस्तिः॥ छन्द:–१, ६, ८, ११—१३ विराड् जगती। १५ जगती त्रिष्टुप् वा। १६ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। १७ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    स्तुतिमयता - यज्ञशीलता

    पदार्थ

    [१] हे (विश्वेदेवासः) = सब देववृत्ति के पुरुषो! (मनुषः) = विचारशील लोगो ! (यतिष्ठन) = आप जितने भी हो, (वः) = आपमें से (स्तोमं राधति) = जो स्तुति समूह को सिद्ध करता है, उस स्तुति- समूह को (यं जुजोषथ) = जिसको आप भी प्रीतिपूर्वक सेवन करते हो, जो स्तुति-समूह आपको भी बड़ा रुचिकर प्रतीत होता है, वह व्यक्ति ही (कः) = आनन्दमय जीवनवाला है । देववृत्ति का विचारशील पुरुष स्तुति में लीन होता है तो एक आनन्द का अनुभव करता है। [२] हे (तुवि - जाताः) = महान् विकासवाले पुरुषो ! (वः) = तुम्हारे में से (यः) = जो (अध्वरम्) = हिंसारहित यज्ञात्मक कर्मों को (अरं करद्) = अलंकृत करता है अथवा खूब ही करता है वही (कः) = आनन्दस्वरूप होता है और वह (नः) = हमें (अहः अतिपर्षत्) = पाप के पार ले जाता है, हमें पापों से बचाता है और इस प्रकार स्वस्तये उत्तम स्थिति के लिये होता है । हमें अपने क्रियात्मक जीवन से सद्गुणों का पाठ पढ़ाता हुआ वह पापों से बचानेवाला होता है और इस प्रकार हमारा जीवन उत्तम बनता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - आनन्द में वही है जिसका जीवन स्तुतिमय है व जो यज्ञशील है । सूचना - पाँचवें व छठे मन्त्र का सार यह है कि जीवन का उत्कर्ष 'आदित्यों के सम्पर्क में ज्ञान की वृद्धि, स्तुतिमयता व यज्ञशीलता' में ही है। इनकी आधारभूत वस्तु स्वास्थ्य है। [क] स्वस्थ होता हुआ मनुष्य, [क] ज्ञान प्रधान जीवन बिताये, [ग] स्तुति में लीन व [घ] यज्ञशील हो। इसी में सुख है ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Vishvedevas, brilliancies of nature and humanity, O thoughtful people, all of you born on the earth that abide on the vedi, who leads your song of divinity to success? Whom do you love and serve with adoration? Who leads your yajna to auspicious completion? He that cleanses us of sin and evil. That same divinity whom you love and adore, that same lord of yajna, serve and exhilarate for the sake of the good and all round well being of life. Be grateful and rejoice.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वानाजवळ जाऊन आपल्या कल्याणसाठी जिज्ञासा प्रकट करावी व त्यांना विनंती करावी, की तुम्ही महानुभाव संपूर्ण विद्येमध्ये प्रविष्ट आहात. आम्ही पापापासून कसे पृथक राहावे व परमात्म्याचा साक्षात्कार कसा करावा, हे आम्हाला समजावून सांगा, ज्यामुळे आमचे कल्याण होईल. ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top