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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 66 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 66/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसुकर्णो वासुक्रः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    सर॑स्वान्धी॒भिर्वरु॑णो धृ॒तव्र॑तः पू॒षा विष्णु॑र्महि॒मा वा॒युर॒श्विना॑ । ब्र॒ह्म॒कृतो॑ अ॒मृता॑ वि॒श्ववे॑दस॒: शर्म॑ नो यंसन्त्रि॒वरू॑थ॒मंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर॑स्वान् । धी॒भिः । वरु॑णः । धृ॒तऽव्र॑तः । पू॒षा । विष्णुः॑ । म॒हि॒मा । वा॒युः । अ॒श्विना॑ । ब्र॒ह्म॒ऽकृतः॑ । अ॒मृताः॑ । वि॒श्वऽवे॑दसः । शर्म॑ । नः॒ । यं॒स॒न् । त्रि॒ऽवरू॑थम् । अंह॑सः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सरस्वान्धीभिर्वरुणो धृतव्रतः पूषा विष्णुर्महिमा वायुरश्विना । ब्रह्मकृतो अमृता विश्ववेदस: शर्म नो यंसन्त्रिवरूथमंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सरस्वान् । धीभिः । वरुणः । धृतऽव्रतः । पूषा । विष्णुः । महिमा । वायुः । अश्विना । ब्रह्मऽकृतः । अमृताः । विश्वऽवेदसः । शर्म । नः । यंसन् । त्रिऽवरूथम् । अंहसः ॥ १०.६६.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 66; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (धीभिः सरस्वान्) कर्मों के द्वारा जो ज्ञानवान् (वरुणः) वरनेवाला उपदेशक (धृतव्रतः पूषा) कृतसङ्कल्प या दृढ़सङ्कल्पवाला पालक राजा (महिमा विष्णुः) अपने महत्त्व से व्यापक परमात्मा (वायुः) पुरोहित (अश्विना) सुशिक्षित स्त्रीपुरुष (ब्रह्मकृतः) ब्रह्मज्ञान का अध्यापक (अमृताः) जीवन्मुक्त (विश्ववेदसः) प्रवेश करने योग्य ज्ञानवाले (नः) हमारे लिए (अंहसः) पापसम्पर्क से-संसार से पृथक् (त्रिवरुथं शर्म यंसन्) तीन अर्थात् आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक दुखों के वारक-निवारक सुखशरण को प्रदान करें ॥५॥

    भावार्थ

    राजा, सुप्रबन्ध करनेवाला पुरोहित, उत्तम याजक, उपदेशक, ब्रह्मज्ञान का अध्यापक, सुशिक्षित स्त्रीपुरुष, जीवन्मुक्त महानुभाव हमें आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक दुःखों से पृथक् रखें तथा पाप से संसारबन्धन से अलग मोक्षधाम को परमात्मा प्राप्त करावे, ऐसी आकाङ्क्षा है ॥५॥

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    विषय

    श्रेष्ठों से शरण आदि की याचना।

    भावार्थ

    (सरस्वान् धीभिः) उत्तम ज्ञान और बल वाला, अपनी बुद्धियों और कर्म सामर्थ्यों से और (धृतव्रतः वरुणः) कर्म और व्रतों, नियमों का पालक श्रेष्ठ पुरुष, (विष्णुः) सब में प्रविष्ट प्रभु अपने (महिमा) महान् गुणों से और (वायुः) वायु और (अश्विना) विद्वान्, जितेन्द्रिय स्त्री पुरुष, और (अमृताः अविनाशी, दीर्घजीवी, (विश्व-वेदसः) समस्त ज्ञान को जानने वाले, (ब्रह्म-कृतः) वेद ज्ञान का उपदेश करने वाले जन (नः) हमें (अंहसः) पाप का (शर्म) नाश करने वाला (त्रि-वरूथं) तीनों प्रकार के दुःखों का वारण करने वाला गृहवत् शरण प्रदान करें। इति द्वादशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषि वसुकर्णो वासुक्रः॥ विश्वेदेवा देवताः। छन्द:– १, ३, ५–७ जगती। २, १०, १२, १३ निचृज्जगती। ४, ८, ११ विराड् जगती। ९ पाद-निचृज्जगती। १४ आर्ची स्वराड् जगती। १५ विराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    त्रिवरूथ शर्म

    पदार्थ

    [१] (धीभिः) = उत्तम बुद्धियों के साथ (सरस्वान्) = ज्ञान का अधिष्ठतृदेव - प्रभु, (धृतव्रतः) = सब उत्तम कर्मों का धारण करनेवाला (वरुणः) = निर्देषता का अधिष्टातृदेव - प्रभु, (पूषा) = पोषण की देवता अथवा सब प्राणशक्तियों के संचार से पोषण करनेवाला सूर्य, (विष्णुः) = व्यापकता का अधिष्ठातृदेव- प्रभु, (महिमा) = [मह पूजायाम्] पूजा की भावना, (वायुः) = गति, अश्विना प्राणापान ये सब (नः) = हमारे लिये (शर्म) = सुख को (यंसन्) = दें । [२] (ब्रह्मकृतः) = ज्ञान को औरों में उत्पन्न करनेवाले अथवा स्तोत्रों को करनेवाले, उपासना की वृत्तिवाले (अमृताः) = विषयों के पीछे न मरनेवाले (विश्ववेदसः) = सम्पूर्ण धनों व ज्ञानोंवाले देव (नः) = हमारे लिये (अंहसः) = पाप से (त्रिवरूथम्) = इन्द्रियों, मन व बुद्धि तीनों को रक्षित करनेवाले (शर्म) = शरण को (यंसन्) = दें। हमारी इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि सभी सुरक्षित हों, ये पापाक्रान्त न हो पायें ।

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्ञानियों का सम्पर्क हमें पापों से बचाये। हमारी इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि अथवा काम- क्रोध व लोभ से अभिभूत न हो जाएँ ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (धीभिः सरस्वान्) कर्मभिः “धीः कर्मनाम” [निघ० ५।१] यो ज्ञानवान् प्राप्तज्ञानः (वरुणः) वरयिता उपदेशकः (धृतव्रतः पूषा) धृतसङ्कल्पः कृतसङ्कल्पो दृढसङ्कल्पो वा पालको राजा (महिमा विष्णुः) स्वमहत्त्वेन व्यापकः परमात्मा (वायुः) पुरोहितः “वायुर्वाव पुरोहितः” [ऐ० ८।२] (अश्विना) सुशिक्षितौ स्त्रीपुरुषौ “अश्विना सुशिक्षितौ स्त्रीपुरुषौ” [यजु० ३८।१२ दयानन्दः] (ब्रह्मकृतः) ब्रह्मज्ञानाध्यापकाः (अमृताः) जीवन्मुक्ताः (विश्ववेदसः) प्रवेष्टव्यज्ञानवन्तः (नः) अस्मभ्यं (अंहसः) पापात् पापसम्पर्कतः-संसारात् पारं (त्रिवरूथं शर्म यंसन्) त्रीणि-आध्यात्मिकाधिदैविकाधिभौतिकदुःखवारकं सुखं शरणं वा प्रयच्छन्तु ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The rainy sky with its actions of showers, Vamna with its own laws of functioning, Pusha, nature’s energy of nourishment and growth, the mighty all pervasive Vishnu, the winds, and the Ashvins, all dedicated to the supreme spirit of the universe, immortal powers in direct contact with the Supreme Divine, may, we pray, give us peace and rest for body, mind and soul free from sin and evil.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजा सुप्रबंध करणारा पुरोहित, उत्तम याजक, उपदेशक ब्रह्मज्ञानाचा अध्यापक, सुशिक्षित स्त्री-पुरुष, जीवनमुक्त महानुभाव यांनी आम्हाला आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक दु:खांपासून पृथक ठेवावे व पापापासून जगाच्या बंधनापासून वेगळे मोक्षधाम परमात्म्याने प्राप्त करवावे, अशी आकांक्षा आहे. ॥५॥

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